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कोर्ट ने हत्यारोपी को बरी किया और विवेचना में घोर लापरवाही पर विवेचक पर कार्रवाई को पत्र भेजा।...
कानपुर:- हत्या के एक मामले में कोर्ट का फैसला ऐसे मामलों की विवेचना करने वाले पुलिस कर्मियों के लिए सबक से कम नहीं है। हत्या की वारदात में लापरवाही करना एक विवेचक को भारी पड़ गया है। अपर सत्र न्यायाधीश ममता गुप्ता ने हत्या के दोनों आरोपितों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया लेकिन विवेचक पर कार्रवाई के लिए डीजीपी को पत्र भेजा है।
यह था मामला
बिधनू निवासी त्रिलोक कुमार ने 18 जनवरी 2017 को थाने में तहरीर दी कि उनका सगा भाई 50 वर्षीय राम सिंह 15 दिन पहले सम्राट सिक्योरिटी एजेंसी में काम करने गया था। पुलिस द्वारा सूचना प्राप्त हुई ओरछा गांव व फत्तेपुर के बीच शव पड़ा है। सूचना पर पहुंचा तो शव भाई का था। पुलिस ने मामले में हत्या और साक्ष्य छिपाने का मुकदमा दर्ज किया था।
दो अभियुक्त भेजे गए थे जेल
बिधनू पुलिस ने विवेचना के दौरान राम सिंह के सुपर वाइजर सुरेश सचान और चौकीदार अनुज तिवारी को आरोपित किया था। हत्या के मामले में दोनों आरोपितों को गिरफ्तार जेल भेज दिया गया था। पुलिस ने घटनास्थल से कुल्हाड़ी बरामद की थी।
पोस्टमार्टम रिपोर्ट में हुई थी पुष्टि
पोस्टमार्टम रिपोर्ट में डाक्टर ने शव मिलने के डेढ़ दिन पूर्व मृत्यु होना बताया। मृत्यु का कारण सिर पर लगी चोटों थीं जो किसी शख्त कुंदालय से पहुंचायी गई थीं। मौके पर मिली कुल्हाड़ी इसकी गवाह भी बनी थी।
बोले विवेचक, कोई फर्द नहीं बनायी
एसआइ सक्षम पाल सिंह ने विवेचना की थी। कोर्ट में जिरह के समय एसआइ ने कहा कि मौके पर मिली कुल्हाड़ी की कोई फर्द नहीं बनायी। इस पर अदालत ने फटकार लगाते हुए कहा कि अत्यंत विचित्र बात है कि कुल्हाड़ी पर अभियुक्तों के फिंगरप्रिंट थे या नहीं, इस विषय पर कोई रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की। यह कृत्य दर्शित करता है कि विवेचक द्वारा समुचित रूप से कार्यवाही नहीं की गई है। ऐसा कोई साक्ष्य संग्रह करने की कोशिश नहीं की गई, जिससे अभियोजन मामले को सक्षम रूप से न्यायालय के समक्ष रख सकता।
डीजीपी को कार्रवाई के लिए भेजा पत्र
सहायक जिला एवं शासकीय अधिवक्ता जितेंद्र पांडेय के मुताबिक न्यायालय ने डीजीपी उत्तर प्रदेश को पत्र भेजकर विवेचक के खिलाफ कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं। न्यायालय ने टिप्पणी करते हुए कहा कि हत्या जैसे गंभीर मामलों में विवेचक को पूर्ण संवेदना के साथ विवेचना करनी चाहिए। उन्हें आवश्यक साक्ष्य एकत्रित करने चाहिए ताकि अभियोजन न्यायालय में सक्षम रूप से मामले को प्रस्तुत कर सके और सभी पक्षों के लिए न्याय की हानि न हो।