हरदा ने विधायकों को एकजुट कर हाईकमान के समक्ष किया शक्ति प्रदर्शन, धरा रह गया               

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यह स्थिति शायद ही पहले कभी रही हो कि नामांकन की आखिरी तिथि के एक दिन पूर्व टिकट तय हुए हों। कांग्रेस के लिए यह स्थिति सूबे की राजनीति में दमखम रहने वाले हरीश रावत ने ला ही दी। ...

हल्द्वानी : यह स्थिति शायद ही पहले कभी रही हो कि नामांकन की आखिरी तिथि के एक दिन पूर्व टिकट तय हुए हों। कांग्रेस के लिए यह स्थिति सूबे की राजनीति में दमखम रहने वाले हरीश रावत ने ला ही दी। उनके हरिद्वार सीट से इन्कार के बाद नैनीताल सीट पर दिलचस्पी ने कांग्रेस को अंतिम समय से टिकट घोषणा के मामले में लटकाए रखा। आखिरकार हरीश रावत अपनी मांग मनवा कर ही माने। वहीं उनके विरोधियों के सुर भी आखिरी दिन तब शांत पडऩे लगे जब हरदा ने 11 में से 8 विधायकों को एकजुट कर हाईकमान के समक्ष शक्ति प्रदर्शन कर डाला। टिकट हासिल कर चुके हरदा के सामने अब इस लंबी चली अंदरूनी लड़ाई को पाटना भी इतना आसान नहीं होगा यह स्पष्ट दिखने लगा है।

प्रदेश की पांच लोकसभा सीटों में से वीआइपी मानी जाती रही नैनीताल सीट ने कांग्रेस को पहली बार नाम घोषित करने में लंबा इंतजार करवा दिया। पूर्व सीएम, राष्ट्रीय महासचिव एवं असम के प्रभारी हरीश रावत की इस सीट से ही सदन तक पहुंचने की इच्छा ने प्रदेश की चार अन्य सीटों का गणित भी उलझाकर रख दिया। भाजपा ने जहां जिले से बाहर के प्रत्याशी प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट के रूप में सिटिंग एमपी भगत सिंह कोश्यारी की जगह नया चेहरा पेश किया तो हरदा की इच्छा भी जिद में बदल गई। वहीं नेता प्रतिपक्ष डॉ. इंदिरा हृदयेश प्रत्याशियों के पैनल तय होने से लेकर अंत तक खुद या पूर्व सांसद महेंद्र पाल सिंह के नाम पर अड़ी रहीं। खुलकर न सही मगर दोनों पक्षों की ओर से इशारों में हो रही बातों ने साफ कर दिया था कि पार्टी के भीतर सब कुछ ठीक नहीं चल रहा। आखिर में राजनीति के धुरंधर माने जाते रहे हरदा ने संख्याबल का दांव चला। 11 में से आठ विधायकों की दिल्ली में हाईकमान के समक्ष परेड करा डाली। मध्य रात्रि बाद इस परेड का परिणाम भी हरदा के पक्ष में ही गया और शेष अटकी चार सीटों के परिणाम भी सामने आ गए। 

हरदा ने टिकट के मोर्चे पर भले ही बाजी मार ली हो, लेकिन राह अब आगे भी कांग्रेस के लिए इतनी आसान नहीं है। भाजपा के लिहाज से जनता के लिए अजय भट्ट भले ही बाहरी प्रत्याशी हों, लेकिन संगठन की मजबूती उनके यहां भी काम ही आएगी। दूसरी ओर हरीश रावत को भले ही संगठन के स्तर पर उतना सपोर्ट न मिले, लेकिन उनकी क्षेत्र में व्यक्तिगत पकड़ काफी हद तक संगठन की कमजोरी से उबारने में मददगार ही होगी। फिलहाल हरदा ने पार्टी के भीतर से उठे पहले विरोध को दरकिनार कर बाजी मारकर अपनी ताकत का अहसास करा दिया हो, अब आगे भी विपक्षी की बजाय अपनी ही पार्टी को साधना उनके लिए चुनौती भी रहेगी।

अजय और हरीश दोनों ही पैराशूट

नैनीताल सीट पर अब दोनों बाहरी प्रत्याशियों के बीच मुकाबला होगा। लोकसभा चुनाव के लिहाज से जनता के लिए दोनों की पैराशूट प्रत्याशी हैं। 25 मार्च को नामांकन के बाद 11 अप्रैल को जनता अपना मत भी इन दोनों के पक्ष व विपक्ष में दे देगी। बावजूद इसके देखने वाली बात यह होगी कि दोनों में किस पैराशूट को जनता अधिक तरजीह देती है। अजय भट्ट भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष हैं तो हरदा प्रदेश के मुखिया रह चुके हैं। संघ में पकड़ और मोदी लहर अजय के साथ चलेगी तो हरदा का पिछली सरकार में केंद्र में रहने एवं प्रदेश की राजनीति का गहरा अनुभव उनके काम आएगा।

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