मीकिन इमारत संस्कृति का संदेश दिया

Raj Bahadur's picture

RGA News

लखनऊ ..समय एक-सा नहीं रहता। वक्त के बदलाव के साथ स्थापित चीजें, मान्यताएं और पसंद-नापसंद भी बदल जाती है। जिसने कभी कामयाबी की बुलंदियों को छुआ होगा, वह एक दिन इतिहास की गर्त में भी समा सकता है। एक दौर था जब मोहन मीकिन में बनी रम का दुनिया भर में बोलबाला था, लेकिन धीरे-धीरे इसकी शोहरत में कमी आती गई और आज यह अपने अस्तित्व की जंग लड़ रही है। सुनहरे दौर से आज तक के सफर की कहानी खुद मोहन मीकिन की जुबानी आपको सुना रहा है। 154 वर्षो की सुनहरी यादों को समेटे।

मैं हूं, एक गुजरी दास्ता। वर्ष 1855 में मेरा जन्म हुआ था। मेरा आचल 22 एकड़ में फैला था। कई दशक बीत गए पर मैं आज भी अपने सीने में 154 वर्षो की सुनहरी यादों को समेटे उसी शान से खड़ी हूं। हालाकि समय के साथ मेरी इमारत अब दरकने लगी है। भले ही मैं खंडहर में तब्दील हो रही हूं, लेकिन मेरा एक दौर था जब मेरी सबसे पसंदीदा रम.ओल्ड मॉन्क के शौकीनों की कमी न थी। न केवल ¨हिंदुस्तान बल्कि दुनियाभर में मेरे चाहने वाले थे। वर्ष 2008 में विश्व के 100 से ज्यादा रीटेल वैल्यू वाले उत्पादों में मेरा दबदबा था। उस समय मेरा डार्क रम ब्राड देश का नंबर वन ब्राड बन चुका था। उस वक्त ओल्ड मॉन्क की माग इतनी थी कि देशभर में कई जगह मेरी शाखाएं थीं। जहांं लोगों का यह पसंदीदा ब्राड तैयार होता था। कई जगह वाइन की डिस्टलरी लगी हुई थी लेकिन फिर वक्त ने ऐसी करवट ली कि समय के साथ मेरा दायरा साल दर साल सिमटता चला गया। सियासी उठापटक का शिकार बनाकर 2009 में मुझे उड़ान भरने से रोक दिया गया पर इन सबके बावजूद भी मैंने कभी आस नहीं छोड़ी। मुडो यकीन था कि एक दिन मेरा वह पुराना सुनहरा अतीत फिर लौटेगा लेकिन ओल्ड मॉन्क को प्रसिद्धि के चरम पर पहुंचाने वाले पद्मश्री ब्रिगेडियर कपिल मोहन ने भी इसी बीच छह जनवरी 2018 को मेरा साथ छोड़ दिया। उनके जाने के साथ मेरी यह आस भी टूट गई।

News Category: 
Place: 

Scholarly Lite is a free theme, contributed to the Drupal Community by More than Themes.