ए-सैट क्षमता: अंतरिक्ष में भी अब हम नहीं हैं किसी से कम, पाक और चीन को दे सकते हैं एक साथ जवाब

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Rga news

यह परीक्षण अंतरिक्ष में हथियारों की होड़ रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय जरूरतों को भी जताता है जिसमें कानूनी ढांचा भी हैस्त करना होगा।...

जब चीन ने अपने एंटी-सैटेलाइट (ए-सैट) हथियार का 2007 में परीक्षण किया तो अंतरिक्ष में हथियारों की संभावित होड़ को लेकर चिंता जताते हुए चीन की खूब आलोचना हुई। भारत द्वारा ए-सैट परीक्षण पर संयत प्रतिक्रियाएं यही दर्शाती हैं कि इस मोर्चे पर बड़े देशों की क्षमताएं इस स्तर तक पहुंच गई हैं कि रक्षा क्षेत्र के नीति नियंताओं को अब अंतरिक्ष में मंडराते युद्ध के खतरे से निपटने के उपायों पर विचार करना चाहिए। ए-सैट तकनीक और बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम्स (जो अपनी ओर आ रही मिसाइलों को मार गिराए) के बीच की कड़ियां रेखांकित करती हैं कि नए तौर-तरीके हमले एवं बचाव, दोनों स्तरों पर कितने मददगार होते हैं।

हमले और प्रतिरक्षा की क्षमता में संतुलन ही बाहरी अंतरिक्ष में हथियारों की होड़ के आकलन की कुंजी होगा। अंतरिक्ष से जुड़ी परिसंपत्तियां केवल संचार के लिए ही नहीं, बल्कि मैपिंग, नेविगेशन, मौसम अनुमान, निगरानी, इंटरसेप्शन, मिसाइल गाइडेंस और युद्धक सामग्र्री को सटीकता के साथ लक्षित केंद्र तक पहुंचाने के लिहाज से भी अहम हैं। ऐसे में अगर इन्हें नुकसान पहुंचा दिया जाए तो यह दुश्मन को एक तरह से अंधा बना सकता है।

 

भारत ने अंतरिक्ष में अपने ही एक उपग्रह को सफलतापूर्वक मार गिराया। इसके साथ ही भारत अमेरिका, रूस और चीन के बाद चौथा ऐसा देश बन गया जिसके पास यह क्षमता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टेलीविजन पर आकर देश को इस विशिष्ट उपलब्धि के बारे में बताया कि भारत उन चुनिंदा देशों में शामिल हो गया है जो अंतरिक्ष में घूमते हुए किसी लक्ष्य को साधकर उसे नष्ट कर सकते हैं। इस तकनीकी कामयाबी को अंतरराष्ट्रीय जगत में चीन की बढ़ती ए-सैट क्षमताओं का जवाब माना जा रहा है जिनमें जमीन से दागी जाने वाली डायरेक्ट एसेंट मिसाइल्स और लेजर्स भी शामिल हैं जो हमारे उपग्र्रहों को अक्षम बना सकते हैं।

वैश्विक स्तर पर ए-सैट उपग्रहों के विकास की कहानी वास्तव में परमाणु अप्रसार जैसी ही है। परमाणु हथियारों की ही तरह अमेरिका ने ही सबसे पहले सैटेलाइट को मार गिराने वाली तकनीक विकसित की और उसके बाद सोवियत संघ ने। परमाणु हथियारों के ढर्रे पर ही चीन भी इस होड़ में बाद में शामिल हुआ जिसका मकसद भारत को उकसाना था कि वह भी ऐसी क्षमताएं हासिल करे। भारतीय परीक्षण एक तरह से चीन को संदेश देने के लिए ही था। यह बात अलग है कि मोदी ने यह कहा कि यह परीक्षण किसी देश के खिलाफ नहीं किया गया। भारत चीन-पाकिस्तान की सामरिक सांठगांठ में खुद को फंसा हुआ पाता है। अंतरराष्ट्रीय साक्ष्यों से साफ है कि चीन ने ही पाकिस्तान को परमाणु बम जैसे विध्वंसक हथियार बनाने की तकनीक हस्तांतरित की है ताकि वह भारत को भीषण नुकसान पहुंचा सके। पाकिस्तान से संचालित हो रहे आतंकी संगठनों को अंतरराष्ट्रीय कार्रवाई से बचाने में चीन अभी भी उसकी ढाल बना हुआ है।

 

भारत द्वारा ए-सैट क्षमता परीक्षण का पाकिस्तान के लिए भी रणनीतिक निहितार्थ है जो परंपरागत सैन्य क्षमताओं के मामले में भारत से कमजोर है और इस कुंठा को वह परमाणु हथियारों की धमकी के रूप में व्यक्त करता है। उसका परमाणु सिद्धांत यही है कि वह मजबूत भारत के खिलाफ इसका पहले-पहल इस्तेमाल करने से नहीं चूकेगा। इसकी आड़ में वह जिहादी आतंकियों को तैयार करके भारत के खिलाफ छद्म युद्ध में लगा है। अब ए-सैट क्षमताओं के साथ भारत अपनी ओर आने वाली मिसाइलों को मार गिरा सकता है तो इससे पाकिस्तान की परमाणु हेकड़ी की हवा निकल सकती है। ए-सैट क्षमताएं बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम का एक ब्लॉक बनाने में मददगार होती हैं। अगर भारत ए-सैट क्षमता विकसित नहीं करता तो चीन भारत के साथ किसी संघर्ष की स्थिति में भारतीय उपग्र्रहों को नष्ट कर सकता था। भारत ने इस जोखिम को कम कर दिया है।

आज दुनिया में जरूरी नहीं कि कोई पक्ष ताकत के इस्तेमाल से ही दूसरे खेमे को झुकाकर मांगें मनवा ले। अब ऐसी तकनीकी क्षमता की महत्ता बढ़ गई है जो दुश्मन को पस्त करके दबाव बढ़ा सके। आखिरकार दुश्मन की क्षमताएं ही मायने रखती हैं, मंशा नहीं, क्योंकि मंशा तो कभी भी बदल सकती है। भारत का ए-सैट क्षमता वाले किसी देश के साथ सुरक्षा समझौता नहीं है और इस मामले में अपनी हिफाजत उसे खुद करनी है। इसके उलट जापान, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश इस मामले में अमेरिकी सुरक्षा दायरे में आते हैं। वहीं अमेरिका और रूस इतने सक्षम हैं कि चीन ने अगर उनके उपग्र्रहों को निशाना बनाने की जुर्रत की तो वे भी उसके उपग्र्रहों को भी नहीं बख्शेंगे। ऐसे में चीनी क्षमताओं को लेकर भारत के पास प्रतिरोधक क्षमता का अभाव था। इस लिहाज से भारत द्वारा सफलतापूर्वक उपग्रह को नष्ट करना एक अहम पड़ाव है जो अंतरिक्ष में भारत की कमजोरी को दूर करता है।

वैसे तो केवल युद्ध जैसे हालात में ही स्पेस वॉर की स्थिति बन सकती है, लेकिन युद्ध से बचने के लिए प्रतिरोधक क्षमता की भी जरूरत होती है। भारत और चीन के बीच एशियाई भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता अब अंतरिक्ष की देहरी तक पहुंच गई है। वर्ष 2014 में कम लागत वाले मंगलयान के साथ लाल ग्र्रह की होड़ में भारत एशिया का सिरमौर बन गया। वर्ष 2017 में एक ही राकेट से सौ से अधिक उपग्र्रहों को प्रक्षेपित करके भी भारत ने रूस द्वारा 37 उपग्र्रह प्रक्षेपित करने के विश्व कीर्तिमान को ध्वस्त किया। वहीं चीन अंतरिक्ष में छह दल भेजने के साथ पृथ्वी की कक्षा में दो प्रयोगशाला भी बना चुका है।

वर्ष 2013 में अमेरिका और रूस के बाद चांद पर रोवर उतारने वाला वह तीसरा देश बना। गत दिसंबर में चंद्रमा के दूरस्थ हिस्से में प्रोब और रोवर उतारने वाला वह दुनिया का पहला देश बना। उसका पहला मंगल मिशन भी अगले साल शुरू होगा। सैन्य मोर्चे पर चीन-भारत की अंतरिक्ष होड़ का विस्तार एशियाई स्पेस वॉर के परिदृश्य को ही दर्शाता है। भारत द्वारा 30,000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से घूमने वाले उपग्र्रह को मार गिराना चीन की क्षमताओं की बराबरी करने की दृढ़ता ही दिखाता है। पेंटागन के अनुसार रूस की ही तरह चीन ने भी आक्रामक अंतरिक्ष क्षमताएं दिखाई हैं। उसने जमीन से लेजर रोशनी के माध्यम से अमेरिकी उपग्र्रह को चिन्हित करने का कारनामा भी किया है। इससे निशाना बनाना आसान होगा।

वर्ष 2007 में चीन द्वारा किए गए ए-सैट परीक्षण की ही तरह भारत के हालिया ऐसे परीक्षण ने पर्यावरणीय प्रदूषण की उस बहस को नए सिरे से छेड़ा है कि अपने ग्रह को दूषित करने के बाद हम अंतरिक्ष में कचरा फैला रहे हैं। अमेरिका के अनुसार भारतीय परीक्षण से अंतरिक्ष में 270 टुकड़े फैल गए हैं जिनकी संख्या और बढ़ सकती है, लेकिन चूंकि यह अंतरिक्ष में बहुत नीचे किया गया है तो उम्मीद है कि हफ्ते भर के भीतर तमाम कण वापस पृथ्वी पर गिर जाएं।

यह परीक्षण अंतरिक्ष में हथियारों की होड़ रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय जरूरतों को भी जताता है जिसमें कानूनी ढांचा भी दुरुस्त करना होगा। 1967 की आउटर स्पेस ट्रीटी बुनियादी रूप से अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष कानूनों के प्रवर्तन पर केंद्रित है। इसमें अंतरिक्ष में हथियार तैनात करने या ए-सैट परीक्षणों पर प्रतिबंध नहीं है।

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