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Lok Sabha Election 2019. लोहरदगा में शहरी मतदाता मुखर खामोश हैं ग्रामीण वोटर। सामने वाले का गणित गड़बड़ाने के लिए प्लान बी पर भी काम कर रहे राजनीतिक दल ।...
लोहरदगा:-Lok Sabha Election 2019 - लोहरदगा संसदीय सीट हाईप्रोफाइल है। यहां से केंद्रीय राज्य मंत्री सुदर्शन भगत इस बार हैट्रिक लगाने के लिए मैदान में उतरे हैं। सुदर्शन केंद्रीय मंत्री हैं, जाहिर है इस सीट के साथ भाजपा की प्रतिष्ठा जुड़ी है। कांग्रेस ने सुदर्शन भगत की हैट्रिक रोकने के लिए लंबे मंथन के बाद पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुखदेव भगत पर भरोसा जताया है। यानी लड़ाई दो भगतों की है।
लोहरदगा में राजनीतिक दल सिर्फ वोट हासिल करने की रणनीति पर ही काम नहीं कर रहे, यहां सामने वाले का गणित गड़बड़ाने की योजना का प्लान 'बी' भी बनाया जा रहा है। दूसरों के वोट में सेंधमारी, डमी प्रत्याशी खड़े करने जैसे कई पैंतरे आजमाए जाएंगे। लोहरदगा से राजपथ का भी सीधा रास्ता भी खुलता है। यहां से सुदर्शन भगत के अलावा इंद्रनाथ भगत और रामेश्वर उरांव भी केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं।
लोहरदगा सीट हाईप्रोफाइल है लेकिन मंत्री सुदर्शन भगत कतई हाईप्रोफाइल नहीं हैं। उनकी छवि सीधी-साधी है। यह लोगों से बातचीत करने पर यह पता चल भी जाता है। जरियो स्थित कृष्णा हवेली रिसोर्ट के संचालक मनोज साहू मंत्री से जुड़ा किस्सा साझा करते हुए बताते हैं कि रात 11 बजे मंत्री के पास जब किसी काम से पहुंचे तो उन्होंने खुद अपने हाथों से बनाकर चाय पिलाई। सुदर्शन भगत की सादगी के सभी कायल हैं। उनके घर के रहन-सहन और पारिवारिक पृष्ठभूमि में भी सादगी झलकती है।
गुमला के डुमरी प्रखंड के टांगरडीह गांव में हमारी मुलाकात उनकी मां मन्ना देवी से हुई। बेटे को तीसरी बार टिकट मिला है। मां, की राजनीति में रुचि नहीं है लेकिन बेटे को आगे बढ़ता देख उनकी खुशी आंखों से छलक ही जाती है। लेकिन, चुनावी मुकाबला सिर्फ सादगी की छवि से ही नहीं जीते जाते। अगर ऐसा होता तो पिछले चुनाव में सुदर्शन भगत मोदी लहर के बावजूद महज साढ़े छह हजार वोटों से नहीं जीतते। खुद अपने विधानसभा क्षेत्र में भगत पीछे रहे गए थे।
जाहिर है लोहरदगा में तमाम फैक्टर काम करते हैं। लोहरदगा संसदीय क्षेत्र में शहरी मतदाता मुखर दिखता है जबकि ग्रामीण उतना ही मौन। साइलेंट वोटर 2004 के चुनाव में फील गुड की हवा निकाल चुका है। विकास एजेंडा है। सड़क व बिजली के क्षेत्र में यह दिखता भी है। लेकिन वयोवृद्ध कांग्रेस नेता बैरागी उरांव इसे भी काटते हैं। कहते, सड़के हमने बनावाई थी, यह सरकार तो बस उस पर कवर डाल रही है।
अपर बाजार लोहरदगा के राजेश अग्रवाल बाक्साइट की ढुलाई से होने वाले प्रदूषण से परेशान हैं। कहते हैं कि बाक्साइट की ढुलाई शहर के बीच से होकर गुजरने वाली सड़कों से हो रही है। इससे प्रदूषण तो फैल ही रहा है आए दिन दुर्घटना भी होती है। घाघरा के विजय जायसवाल बताते हैं कि गुमला और लोहरदगा में बाईपास बन जाता तो समस्या कुछ हद दूर हो जाती।
कांग्रेस को आतंरिक लड़ाई से पार पाना होगा
लोहरदगा में बाबा दुखन शाह के सालाना उर्स में चादरपोशी हमने भी की। वापसी में कांग्रेस नेता साबिर खान से मुलाकात हो गई। कहते हैं कि अभी उर्स को लेकर व्यस्त हैं। चुनाव का माहौल भी अभी गरमाया नहीं है। दिख भी जाता है, बगल के कांग्रेस दफ्तर में शाम सात बजे इक्का-दुक्का लोग ही दिखाई दे रहे हैं। बातचीत के सिलसिला आगे बढऩे पर पास खड़े प्रो. कुद्दूस कुरैशी बोले, यहां मुकाबला टफ होगा। लेकिन यहां अल्पसंख्यक कांग्रेस के साथ है।
लोहरदगा मेंं कांग्रेस को पहले अपनी आंतरिक लड़ाई से पार पाना होगा। भाजपा से लड़ाई तो इसके बाद शुरू होगी। टिकट तो सुखदेव भगत को मिला, पूर्व सांसद रामेश्वर उरांव और सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी अरुण उरांव भी यहां से प्रबल दावेदार थे।
मुद्दा : रेल लाइन व बाईपास निर्माण बड़ा मुद्दा
लोहरदगा से गुमला होते हुए छत्तीसगढ़ के कोरवा तक जाने वाली रेल लाइन का निर्माण राजनीतिक दलों के आश्वासन के बाद भी अब तक नहीं हो सका है। गुमला में 2008 में सोनिया गांधी ने इस रेल लाइन के निर्माण का वादा किया था। वादा पूरा नहीं हुआ और 2009 में भाजपा के सुदर्शन भगत इसे मुद्दा बनाकर दिल्ली पहुंच गए। हालांकि इसका निर्माण इस सरकार के कार्यकाल में भी नहीं हुआ है। गुमला और लोहरदगा में बाईपास का निर्माण भी बड़ा मुद्दा मांग है।
जातीय फैक्टर : बड़ा फैक्टर नहीं, लेकिन अल्पसंख्यक कांग्रेस के साथ
लोहदरगा में जाति बड़ा फैक्टर नहीं है। यहां सरना (आदिवासी) का वोट सभी को मिलता है। हां, अल्पसंख्यक और इसाईयों का बड़ा तबका कांग्रेस के साथ खड़ा दिखता है। सदान का अधिकांश वोट भाजपा को मिलना तय है।