प्रियंका वाराणसी से लड़ीं तो अच्छी बात, देश होगा उत्साहित मुकाबला जबरदस्त : सैम पित्रोदा

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सैम पित्रोदा ने दैनिक जागरण के सहायक संपादक संजय मिश्र से खास बातचीत में कई मुद्दों पर बेकाकी से अपनी राय रखी। पढ़े पूरा इंटरव्‍यू... ...

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के थिंक-टैंक के अहम हिस्सा, गांधी परिवार के करीबी पार्टी नेता सैम पित्रोदा का मानना है कि कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने का फैसला करती हैं तो यह अच्छी बात होगी। पूरे देश की निगाह इस जबरदस्त मुकाबले पर रहेगी। वे इस लोकसभा चुनाव को देश की बुनियादी वसूलों से जुड़ा चुनाव मानते हैं और कहते हैं कि गांधी परिवार खासकर राहुल गांधी को सुनियोजित तरीके से खत्म करने के लिए जबरदस्त हमले का शिकार बनाया गया है। सैम पित्रोदा ने दैनिक जागरण के सहायक संपादक संजय मिश्र से खास बातचीत में इस मसले पर खुलकर चर्चा की। पेश है इसके अंश...

लोकसभा चुनाव में दोनों पक्षों की ओर से जैसी आक्रामकता दिखाई जा रही है, क्या लोकतंत्र की यही सही दिशा है?
यह चुनाव सामान्य चुनाव नहीं है। यह हमारे इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण चुनाव है। न तो यह चुनाव कांग्रेस बनाम भाजपा, न नरेंद्र मोदी बनाम राहुल गांधी का और न ही गठबंधन का चुनाव है। यह भारत की आत्मा और विचारधारा से जुड़ा चुनाव है। इसी से तय होगा कि भारत किस दिशा में आगे बढ़ेगा। इसलिए यह तू-तू, मैं-मैं में हम फंसे तो बड़ी दिशा हम भूल जाएंगे। लोकतंत्र, स्वतंत्रता, समानता, बहुलतावाद, सहजता, आत्मनिर्भरता व प्रेम जैसे गांधीवादी विचार आजाद भारत की बुनियाद के मजबूत तत्व रहे। आज इन सभी चीजों पर प्रहार हो रहा है और सभी जगह झूठ चल रहा है। प्रधानमंत्री खुद झूठ बोलते हैं। ऐसे में जनता को इस चुनाव में गंभीरता से सोचना है कि हमारे राष्ट्र के बुनियादी मूल्यों को कैसे बचाया जा सके।

इन सवालों की अपनी अहमियत है, मगर सीमा की चुनौतियों को तो नकारा नहीं जा सकता?
सीमा की चुनौतियों को कोई सरकार नकार नहीं सकती। मगर हमारी दृष्टि में चुनाव में बार्डर पर क्या हो रहा है इसका कोई मतलब नहीं है। घर में क्या चल रहा है यह सवाल सबसे अहम है। चुनाव में बार्डर से ज्यादा महत्वपूर्ण सवाल है कि हम नौकरियां कैसे पैदा करेंगे। नोटबंदी और जीएसटी से देश व छोटे-मझोले कारोबार को क्या नुकसान हुआ यह मायने रखता है। चुनाव में एक मुद्दा भविष्य में भाईचारे, स्वतंत्रता और लोकतंत्र को कैसे आगे ले जाएंगे है तो दूसरा नौकरियां व अर्थव्यवस्था जिनका साथ-साथ चलना जरूरी है। अगर लोकतंत्र और स्वतंत्रता को कायम नहीं रखेंगे तो नौकरियों का सृजन नहीं होगा। मगर दुर्भाग्य है कि इस पर बहस की बजाए फालतू बातों में समय नष्ट किया जा रहा है।

क्या यह राजनीतिक दलों जिसमें विपक्ष भी शामिल है, उसकि जिम्मेदारी नहीं कि तू-तू-मैं-मैं चुनाव में हावी न हो?
विपक्ष को कठघरे में खड़ा करना सबसे आसान है। हकीकत यह है कि प्रधानमंत्री जो बोलते हैं, उसे ही मीडिया में दिखाया या पढ़ाया जाता है। मीडिया से लेकर सोशल मीडिया सभी जगह प्रचार पर यह सरकार बेहिसाब पैसा खर्च कर रही है। इसीलिए हमारे प्रासंगिक मुद्दों को मीडिया तवज्जो नहीं दे रहा मगर पीएम कुछ भी कह दें तो चल जाता है। पीएम ने बार्डर को लेकर कोई बात सबसे महत्वपूर्ण बता दी तो सारी मीडिया उस पर टूट पड़ती है और इस वक्त रोजगार का सवाल अहम है कोई नहीं पूछता। पुलवामा में जो हुआ हम सब नाराज हैं और इसकी घोर निंदा करते हैं। मगर यह पूछा तो जाना ही चाहिए कि हमारी सुरक्षा इतनी कमजोर क्यों थी कि इतने जवान शहीद हुए।

बालाकोट पर आपके बयान को प्रधानमंत्री ने बड़ा मुद्दा बनाया क्या आपको नहीं लगता कि आपसे चूक हुई?
कोई चूक नहीं हुई। मैं फिर वही बयान दूंगा कि आप कौन होते हैं यह पूछने वाले कि मैं राष्ट्रवादी हूं या नहीं। प्रधानमंत्री होने से यह अधिकार नहीं मिल जाता कि आप मेरे राष्ट्रवादी मूल्यों पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करें। आप मेरा ट्रैक रिकार्ड देखिए 30 साल मैंने देश के लिए नि:स्वार्थ काम किया और एक रुपया तनख्वाह नहीं लिया और आप हम पर सवाल उठा रहे हैं। हम चुप रहेंगे यह संभव नहीं और सत्ता झूठ के खिलाफ मैं लडूंगा। मेरे बयान पर पीएम का ट्वीट करना या भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का प्रेस कांफ्रेंस करना बड़ा अचरजकारी था लोकतंत्र में सवाल करना हमारा हक है। इसलिए हम कहेंगे कि हमारे सवालों को ट्विस्‍‍‍ट करके हम पर हमला करने के लिए मीडिया का इस्तेमाल मत करिए।

कांग्रेस न्याय स्कीम के जरिए एक वर्ग को लुभा रही है। 34 लाख सरकारी नौकरियों के वादे के अलावा रोजगार का व्यापक मॉडल क्या होगा स्पष्ट नहीं है?
हमारा चुनाव घोषणापत्र सबसे पहले वादा हम निभाएंगे की बात करता है और न्याय में 72000 देश के सबसे गरीब 5 करोड़ परिवारों को मिलेगा इसमें शक नहीं। निर्माण, फूड प्रासेसिंग, कृषि, बुनियादी ढांचा, पर्यावरण जैसे क्षेत्रों में रोजगार के व्यापक अवसर हैं और कांग्रेस ने इसकी रूपरेखा बनाई है। ऊर्जा क्षेत्र से लेकर छोटे व मझोले उद्योग में नौकरियां पैदा की जाएंगी और हम जानते हैं कि यह कैसे होगा। दुर्भाग्य कि बात है कि पांच साल में नौकरियां छीनी है। अकेले नोटबंदी ने 50 लाख से ज्यादा लोगों को बेरोजगार बना दिया।

ऐसी धारणा यह है कि पीएम मोदी के मजबूत नेतृत्व के मुकाबले कांग्रेस की अगुआई वाला विपक्ष कमजोर है ऐसे में मौजूदा सत्ता में लौटने के आपके हौसले का आधार क्या है?
मैं जनता से यही कहूंगा कि मीडिया से संदेश मत लीजिए क्‍योंकि कि सत्ता के पैसे के बल पर प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। आप खुद सोचिए कि सरकार ने पांच साल में क्या किया और आपको कैसा देश बनाना है। नोटबंदी, जीएसटी का क्या आपको फायदा हुआ या पांच साल में नौकरी मिली। महिलाओं की सुरक्षा बढ़ी और पांच साल में क्या मिला इस पर सोचिए। सच्चाई यह है कि मनमोहन सरकार ने देश को नये मुकाम पर पहुंचाया। टेलीकाम, कंप्यूटर से लेकर तमाम क्षेत्रों में राजीव गांधी के समय जो बुनियाद रखी गई उससे 25 सालों में हम दुनिया में अग्रणी हुए। अब वक्त है कि राहुल गांधी के समय नये क्षेत्रों के बीज लगाए जाएं ताकि हम देश को अगले पायदान पर ले जा सकें।

इवीएम पर सुप्रीम कोर्ट ने पांच इवीएम की गिनती तय कर संशय के सवालों पर विराम लगा दिया है फिर भी विपक्ष संतुष्ट नहीं, आखिर विपक्ष को इतना डर क्यों है?
कोई भी दूसरा बड़ा देश इवीएम का उपयोग नहीं कर रहा। सबने प्रयोग किया मगर छोड़कर वापस बैलेट पत्र मतदान को अपना लिया। दूसरा कारण है कि इवीएम का हमारा डिजाइन 15 साल पुराना है। तीसरा इससे जुड़े लॉजिस्टिक के कई स्तर हैं जो फूलप्रूफ नहीं। कभी होटल तो कभी ट्रक या बस में इवीएम चुनाव के दौरान मिलता है और आप इस पर भरोसा करने की बात कहते हैं। हमें भी इवीएम की पूरी चेन पर संदेह है और कुछ गड़बड़ है। मगर क्या गड़बड़ है, यह मालूम नहीं। अगर रूलिंग पार्टी ने इवीएम में हेर-फेर कर लिया तो फिर चुनाव का क्या मतलब रह जाएगा। इसलिए चुनाव आयोग को देश को विश्वास दिलाना होगा कि यह चुनाव निष्पक्ष हैं और इवीएम टेंपर नहीं हुआ है।

अगर कांग्रेस सत्ता में आयी तो आपके तीन सबसे अहम क्या एजेंडे होंगे?
सबसे अहम होगा हमारी संस्थाओं को आर्डर में लाना जिन्हें पांच साल में ध्वस्त कर दिया गया है। इनकी स्वायत्तता और निष्पक्षता सुनिश्चित करना चाहे वह संवैधानिक संस्थाएं हों, पुलिस या नौकरशाही। नौकरियां पैदा करना दूसरा सबसे अहम लक्ष्य होगा क्योंकि युवाओं की तकदीर दांव पर है। इसके साथ किसानों को सही लाभकारी दाम दिलाना। सुरक्षा को सुदृढ़ करना ताकि हमारी महिलाएं सुरक्षित महसूस कर सकें। तीसरा अहम काम रिफार्म होगा चाहे और वह राजनीतिक, प्रशासनिक, आर्थिक, श्रम, पुलिस और न्यायिक सुधार।

प्रियंका गांधी वाड्रा के वाराणसी से चुनाव लड़ने की चर्चाएं गरम है, क्या आपको लगता है कि प्रियंका वहां से चुनाव लड़ेंगी या लड़ना चाहिए?
सबसे पहले तो यह प्रियंका गांधी का फैसला होगा। हम अपने विचार बोल सकते हैं। मगर चुनाव लड़ने या नहीं लड़ने का फैसला उन्हें लेना है। अगर वह चुनाव लड़ने का फैसला करती हैं तो अच्छी बात है। कांग्रेस पार्टी और उसके कार्यकर्ता बेहद उत्साहित होंगे। मैं आश्वस्त हूं कि देश भी उत्साहित होगा और एक बेहद जबरदस्त मुकाबला देखने को मिलेगा। वाराणसी के लोग उनके लिए कड़ी मेहनत करेंगे मगर यह निर्णय उनका होगा। इसलिए अभी देखिए थोड़े दिन की बात है पता चल जाएगा।

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