Exclusive : अमित शाह बोले- राष्ट्रीय सुरक्षा, विकास व नेतृत्व सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा

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कांग्रेस गरीबी बनाकर रखना चाहती है ताकि उसकी राजनीति चलती रहे। आज फिर से वादा कर रहे हैं तो कौन मानेगा।उनका कार्यकाल भ्रष्टाचार के लिए जाना जाता है। यह किसी को बताने की जरूरत नहीं।..

दो दौर के मतदान में लगभग पौने दो सौ यानी लगभग एक तिहाई लोकसभा सीटों का भविष्य ईवीएम में कैद हो गया है। बाकी सीटों के लिए विभिन्न दलों की मशक्कत और तेज हो गई है। ऐसे में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह शाम करीब पांच बजे अहमदाबाद पहुंचते हैं और सीधे कार्यकर्ताओं के साथ मीटिंग के लिए रवाना हो जाते हैं। वह गांधीनगर से खुद भाजपा के उम्मीदवार भी है। लिहाजा अपनी सीट के साथ साथ पूरे गुजरात का फीडबैक लेते हैं। 

रणनीति समझाते हैं और जिम्मेदारी तय करते हैं कि पिछली बार की तरह ही इस बार भी उन्हें राज्य की सभी 26 सीटें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की झोली में डालनी है। बैठकों के दौर और मिलने वालों की कतार से जब फुरसत मिलती है तो रात के 12 बज चुके हैं और उन्हें उसी वक्त कर्नाटक के हुबली के लिए प्रस्थान करना है क्योंकि दूसरे दिन सुबह से ही कर्नाटक में चार रैलियां हैं। साढ़े बारह बजे रात वह अहमदाबाद एयरपोर्ट पर इंतजार कर रहे हवाई जहाज में प्रवेश करते हैं और बैठते ही कुछ जरूरी फाइल व रिपोर्ट पर नजर डालते हैं। फिर शुरू होती है ‘दैनिक जागरण’के वरिष्ठ कार्यकारी संपादक प्रशांत मिश्र और राष्ट्रीय ब्यूरो प्रमुख आशुतोष झा से उनकी बात। अपने बेलाग और स्पष्ट तेवर के साथ वह कहते हैं- राष्ट्रवाद शुरू से हमारा एजेंडा रहा है और राष्ट्रीय सुरक्षा, विकास व नेतृत्व सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा। विपक्ष के पास खुद को बचाने की अपील के अलावा कोई मुद्दा नहीं है। जनता जो मुद्दे तलाशती है, जैसा नेतृत्व चाहती है वह हमारे पास है। बातचीत का अंशः

विपक्षी गठबंधन के प्रभाव को आप इस तर्क पर नकारते रहे हैं कि चुनाव अंकगणित नहीं होता है। लेकिन विपक्षी गठबंधन को आप केमिस्ट्री क्यों नहीं मानते हैं?

- विगत पांच वर्षों में देश की राजनीति में बहुत अंतर आया है। एक समय था जब एक दल के नेता दूसरे का हाथ थामते थे तो वह एक दूसरे का वोट ट्रांसफर करा लेते थे। आज वोटर किसी नेता के कहने पर वोट नहीं देता है। आज मतदाता अपने मुद्दे तय करता है और उसके आधार पर वोट डालता है। ऐसे में अगर ड्राइंग रूम में दो नेताओं का मिलन होता है तो चुनाव पर उसका असर नहीं दिखता है। यह चुनाव भी मुद्दा आधारित है। जहां मतदाता यह देख रहा है कि उसका भला कहां है, यह नहीं देखता है कि फलां नेता व दल का भला किसमें हैं। यह किसे नहीं पता कि जिन दलों का तथाकथित मिलन हुआ है वह किसकी भलाई के लिए हो रहा है। जो खुद अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहा है वह जनता का क्या भला करेगा। इसीलिए मैं कहता हूं कि अगर आप उत्तर प्रदेश की भी बात कर रहे हैं तो वहां गठबंधन के पास ऐसा कुछ नहीं है जो जनता को आकर्षित करे। उनके पास मुद्दा है खुद को बचाने का। इसमें ऐसी कोई केमिस्ट्री नहीं है जिसमें जनता की बात हो।

लेकिन फिलहाल तो यह दिख रहा है कि चुनाव में भी मुद्दे की बात नहीं हो रही है। क्या आप नहीं महसूस कर रहे हैं कि विकास के मुद्दे से भटक गया है चुनाव प्रचार?

 

-देखिए, एक डेढ़ घंटे के भाषण में पांच मिनट कोई राजनीतिक टिप्पणी आती है तो मीडिया केवल उसी पर ध्यान केंद्रित करता है। वह उसे ही उछालता है, लेकिन मतदाता पूरा भाषण सुनता है। मुद्दे पर बात काफी होती है, मतदाता उसे सुनता भी है, स्वीकारता भी है और उसके आधार पर अपना मन भी बनाता है।

लेकिन अभी हाल की ही बात लें तो एक बयान मायावती की ओर से आया, जवाब में योगी आदित्यनाथ ने कुछ बातें कहीं जिसका चुनाव आयोग ने संज्ञान लिया है, आपत्ति जताई है?

 

-मैं वहीं तो कह रहा हूं कि मीडिया केवल विवादित मुद्दों पर खेलता है, लेकिन जनता अपने मुद्दे तलाशती है।

आयोग ने कार्रवाई की और आपके एक स्टार कैपेंनर योगी आदित्यनाथ को चुनाव प्रचार से 72 घंटे के लिए रोका गया। इससे सहमत हैं?

 

-हमने अपना पक्ष रखा। भाजपा तू-तू मैं-मैं की तरह से चुनाव आयोग पर आरोप नहीं लगाती है। आयोग को जो सही लगे और को जो करना है करे। हम लोकतांत्रित व्यवस्था में भरोसा रखने वाले लोग हैं।

क्या भाषा की मर्यादा नहीं टूट रही है?

 

- हर चुनाव में कहीं न कहीं चूक हो जाती है। आप दो सौ भाषण करोगे तो आपसे भी कुछ गलती हो सकती है। यह मानवीय भूल होती है। चुनाव आयोग का काम है उसे रेगुलेट करना और इसमें किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए।

अगर मुद्दों पर चुनाव है तो वह मुद्दे क्या है जिन पर मतदान होगा?

 

-मेरी दृष्टि से नेतृत्व के अलावा देश की सुरक्षा इस चुनाव का अहम मुद्दा है। सुरक्षा से विकास का हर पहलू जुड़ा होता है। सिर उठाकर देश का विश्व की पांच शीर्ष अर्थव्‍यवस्‍था में जाना और उसका सही दिशा में बढ़ना देश और जनता दोनों के लिए महत्वपूर्ण है। पचास करोड़ लोगों के जीवन को व्यवस्थित करना अहम मुद्दा है। लोकतंत्र को मजबूत करना, चुनाव से जातिवाद, परिवारवाद तुष्टीकरण के नासूर को खत्म कर विकास आधारित व्यवस्था तैयार करना यह बड़ा मुद्दा है। मतदान इन मुद्दों पर होगा।

लेकिन चुनाव प्रचार तो मोदी केंद्रित हो रहा है। एक बार फिर मोदी सरकार..?

-ये सारे काम जो मैने आपको गिनाए वह नेतृत्व क्षमता पर ही निर्भर करता है। ऐसा नेतृत्व जो गरीबों के हित में सोच सके, देश को आगे बढ़ाने, उसके सिर को ऊंचा रखने के लिए बिना भय निर्णय कर सके। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने देश को वही नेतृत्व दिया है। ऐसा नेतृत्व जो बिना भय, बिना भेदभाव काम करता है, जिसके पूरी जीवन में एक भी दाग नहीं लगा है। कठोर फैसले लेने के वक्त भी झिझकता नहीं है और अतिसंवेदनशील है। वह विश्व के सबसे लोकप्रिय नेता के रूप में स्थापित हुए हैं। यह विश्व मानता है। मोदी सरकार का काम गिनाने बैठे तो सबेरा हो जाएगा। ढाई गुना स्पीड से सड़कें बनीं है, सवा दो गुना स्पीड से रेलवे का काम हुआ है, पहले पांच सौ गांव ऑप्टिकल फाइबर से जुड़े थे, अब चार साल में एक लाख गांव तक पहुंच गया है, वन रैंक  वन पेंशन देने का काम किया है, हर वर्ग के आरक्षण को बरकरार रखते हुए आर्थिक आधार पर पिछड़े अगड़े वर्ग के बच्चे को भी आरक्षण के दायरे में लाने का काम किया है। किसान सम्मान निधि से किसानों को सहायता दी तो आयुष्मान योजना के तहत 50 करोड़ लोगों को मुफ्त इलाज की व्यवस्था की है और जब स्वतंत्रता को 75 साल हो जाएंगे तो देश किस मुकाम पर होना चाहिए, इसके लिए देश के सामने 75 लक्ष्य रखे हैं। यह 75 लक्ष्य है कि हरेक को घर मिलेगा, हर एक को पीने का शुद्ध पानी उपलब्ध होगा, शून्य फीसद पर किसानों को ऋण मिलेगा, ऐसे कई लक्ष्य हैं जो आने वाले सालों मे पूरा होगा। यह काम मोदी जी की सरकार ही कर सकती है। अगले पांच साल में भारत एक विश्वशक्ति बनकर उभरेगा।

कांग्रेस ने भी सालाना 72 हजार की न्यूनतन आय योजना और 34 लाख लोगों को रोजगार का वादा किया है। क्या वह आपके लिए चुनौती नहीं है?

-देखिए लोग उनकी बातों का भरोसा करते हैं जिसका रिकॉर्ड सही हो। कांग्रेस तो छह दशक तक शासन में रही। हर बार गरीबी हटाओ की बात की लेकिन कुछ हुआ नहीं। सिर्फ चुनाव जीतने के लिए वादे किए गए। बल्कि कांग्रेस तो गरीबी बनाकर रखना चाहती है ताकि उसकी राजनीति चलती रहे। आज फिर से वादा कर रहे हैं तो कौन मानेगा। उनका कार्यकाल तो भ्रष्टाचार के लिए जाना जाता है। यह किसी को बताने की जरूरत नही। हमारा रिकॉर्ड दूसरा है। मोदी शासनकाल में हमने पांच  साल गरीबी कम करने के लिए ठोस काम किया है। सात करोड़ लोगों को गैस कनेक्शन, 8 करोड़ शौचालय बनाए, पचास करोड़ लोगों के जीवन में स्वास्थ्य बीमा लाया है ताकि पांच लाख तक की राशि का मुफ्त इलाज हो सके। यह गुणात्मक परिवर्तन लाने के लिए हुआ है। थोथा वायदा नहीं है, यह हो रहा है। सुचारू रूप से चल रहा है। ऐसे में मोदी जी कहें कि वह गरीबी हटाने के लिए काम कर रहे हैं तो लोग सहज स्वीकार करेंगे। लेकिन कांग्रेस नेताओं को तो यह नारा शोभा नहीं देता है। उसे जनता ने पर्याप्त समय दिया था लेकिन वह फेल हुए।

माना जाता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के विषय पर राष्ट्रीय दलों का रुख एक समान होता है। फिर ऐसा क्यों है देशद्रोह और अफस्फा जैसे मुद्दों पर आपकी और कांग्रेस की अलग-अलग राय है?

-मेरे जैसे कार्यकर्ता के लिए तो कांग्रेस का मेनीफेस्टो ही आश्चर्यजनक है। कोई कहता है कि हम देशद्रोह कानून हटा देंगे, कहीं उनका कोई साथी कहता है कि देश में दो प्रधानमंत्री होने चाहिए, एक कश्मीर में और एक पूरे देश का। कहीं कोई उनका साथी पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगा रहा है, तो उसके मेनीफेस्टों कमेटी के चेयरमैन कहते हैं कि आठ दस लोगों ने गलती की थी। हमें बातचीत करना चाहिए था बम नहीं गिराना चाहिए। यह क्या हो गया है कांग्रेस को..। वस्तुतः लगता है कि‘टुकड़े टुकड़े गैंग’ने ही उनके घोषणापत्र का पूरा आधार बनाया है। हमारे लिए देश की सुरक्षा प्रमुख विषय है। देश की सुरक्षा और वोट बैंक में हमें चुनने को कहा जाएगा तो देश की सुरक्षा चुनेंगे। देश अहम है। अगर देश नहीं बचा तो राजनीति क्या और किसके लिए।

दरअसल विपक्ष के कई दलों का मानना है कि देशद्रोह कानून का दुरुपयोग अल्पसंख्यकों को फंसाने के लिए किया जाता है?

-भई मैं तो कहता हूं कि जो ऐसा आरोप लगाते हैं वह अल्पसंख्यक न होने के बावजूद ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’के नारे लगाए, फिर देखिए कि उनके ऊपर मुकदमा होता है या नहीं। जो देशद्रोह का काम करेंगे, वह फसेंगे, इसमें धर्म कहां आता है। कन्हैया कौन सा अल्पसंख्यक है। अपनी राजनीति की खातिर देश के हित तो ताक पर रखकर ऐसी दलील देने वालों को शर्म आनी चाहिए।

माना जाता है कि भाजपा को अल्पसंख्यकों का वोट नहीं मिलता है क्या यह सच है?

-पहली बात को भाजपा कभी भी जाति धर्म में बांटकर राजनीति नहीं करती है। यह संविधान की मूलभावना के खिलाफ है। यह तो कांग्रेस का फैलाया हुआ जाल है। उसे यह राजनीति रास आती है। हमने तो सात करोड़ सिलेंडर बांटे उसमें किसी की जाति या धर्म नहीं देखी। आवास बने, शौचालय बने, जनधन खाता खुला तो किसी की जाति या धर्म को देखकर नहीं।

घोषणापत्र में राजनीतिक दलों की ओर से किए जाने वाले कई वादों को लेकर सवाल उठते हैं। क्या आपको लगता है कि ऐसे नियम बनने चाहिए कि सिर्फ वहीं घोषणा की जा सके, जिसे पूरा किया जा सके?

-पहली बात को यह है कि हमने चुनाव सुधार को लेकर भी पहल की। दो हजार रुपये से ज्यादा का चंदा नगद में नहीं लिया जा सकता है। यह बहुत बड़ा चुनाव सुधार है। हमने प्रस्ताव किया कि पंचायत से लेकर संसद तक के चुनाव एक साथ हों ताकि देश का संसाधन भी बचे और वक्त भी। रही बात घोषणापत्र की तो चुनाव आयोग पहल करे, हमें कोई आपत्ति नहीं है। भाजपा ऐसे वादे नहीं करती है जिसे पूरा न किया जा सके। हम तो वह है जिसने वादों से आगे बढ़कर काम किया है।

अमेठी पर आपका ज्यादा जोर है लेकिन रायबरेली में थोड़ी नरमी। कोई खास कारण?

-हम हर चुनाव गंभीरता से लड़ते हैं और हर सीट पर मजबूती से मेहनत करते हैं। मुझे लगता है कि दोनों जगह हमारे लिए अच्छे नतीजे आएंगे।

कांग्रेस अध्यक्ष दूसरी सीट से लडने गए तो भाजपा ने इसे मुद्दा बना दिया। यह तो उनका अधिकार है?

-सवाल यह नहीं है कि उनका अधिकार क्या है। जनता तो यह देख रही है और पूछ रही है कि कौन सी सीट से लड़ने गए। उस सीट से क्यूं लड़ने गए यह महत्वपूर्ण है। आप खुद समझिए, जनता तो समझ चुकी है। मैं इतना कह सकता हूं कि अमेठी इस बार उनके लिए बहुत मुश्किल है।

दैनिक जागरण ने प्रधानमंत्री से भी पूछा था कि क्या पिछली बार की तरह वह इस बार भी दो सीटों से चुनाव लड़ेगे। उन्होंने कहा था कि संगठन को तय करना है। आप अध्यक्ष हैं तो बताएं..?

-अभी पार्टी ने इस पर विचार नहीं किया है। लेकिन वाराणसी से वह जरूर चुनाव लड़ेंगे।

उत्तर प्रदेश में भाजपा के लिए प्रतिद्वंद्वी कौन है, कांग्रेस या गठबंधन?

-देखिए हम तो सकारात्मक चुनाव लड़ने जा रहे हैं। कुछ सीटों पर कांग्रेस है, कुछ पर गठबंधन है कुछ पर शिवपाल की पार्टी भी है। लेकिन हम हर सीट पर हैं। हर किसी के लिए प्रतिद्वंद्वी हम ही हैं।

आप भाजपा के लिए पिछली बार से भी बड़ी जीत का दावा कर रहे हैं। लेकिन चुनाव विश्लेषक और विशेषज्ञ के रूप में आप कांग्रेस के लिए कोई भविष्यवाणी करेंगे?

-किसी भी राजनीतिक दल के लिए ऐसी कोई बात करना ठीक नहीं होगा। लेकिन मुझे लगता है कि चुनाव की शुरुआत में ही कांग्रेस के लिए कठिन स्थिति तैयार हो गई है।

आपने लगभग डेढ़ सौ ऐसी सीटों पर भी रणनीति बनाई थी जहां कभी नहीं जीते। उसके बारे में कुछ कहेंगे?

-हम कम से कम 65 नई सीटें जीतने जा रहे हैं। इसमें पश्चिम बंगाल भी है, उत्तर पूर्व भी, ओडिशा भी दक्षिण भी। पश्चिम बंगाल मे हम आधी सीटें तो निश्चित तौर पर जीतेंगे, लेकिन आंकड़ा कहां रुकेगा यह चुनाव आगे बढ़ने पर ही कहा जा सकता है। केरल के अंदर भी चार पांच सीटों पर हम अच्छी स्थिति में हैं।

पिछली बार भाजपा ने कुछ राज्यों में सौ फीसद सीटें जीती थी। क्या इसे फिर से दोहराने की आशा है आपकी?

-कुछ राज्य मत कहिए, 15 यूनिट में हमने सौ फीसद सीटें जीती थीं। मुझे लगता है कि हम ज्यादातर राज्यों में इस प्रदर्शन को दोहराएंगे। कुछ राज्यों में एक दो सीटें कम हो सकती हैं लेकिन दूसरे राज्यों में हमारी संख्या बढ़ेगी। 

आपके घोषणापपत्र की शुरुआत राष्ट्रवाद से ही हुई है। क्या बालाकोट के कारण आपके राष्ट्रवाद के एजेंडे को धार मिली है?

- हमारे लिए राष्ट्रवाद कोई नया मुद्दा नहीं है। जनसंघ के समय ही राष्ट्रवाद हमारे के लिए अहम है। इसे चुनावी राजनीति से मत जोड़िए। 

हाल में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा है कि मोदी प्रधानमंत्री बनेंगे तो कश्मीर समस्या का हल आसान होगा। आपको इस कथन के पीछे क्या लगता है?

-मुझे लगता है कि एअरस्ट्राइक ने उन्हें यह बयान देने के लिए प्रेरित किया होगा।

क्या चुनाव के बाद राजग का दायरा बढ़ेगा, खासकर टीआरएस और वाईएसआर कांग्रेस?

-दायरा तो हमारा पहले ही बढ़ा हुआ है। पिछली बार के मुकाबले ज्यादा साथी हैं। लेकिन अगर आपके पूछने का अर्थ है कि क्या हमें जरूरत होगी.. तो मैं स्पष्ट रूप से बता दूं कि भाजपा पूर्ण बहुमत पाएगी। पिछली बार से भी ज्यादा सीटें आएंगे। पिछली बार बहुमत के बावजूद हमने राजग की सरकार बनाई थी। इस बार भी वैसा ही होगा। रही बात कोई साथ आना चाहे तो क्या..। यह उन्हें तय करना होगा कि हमारी विचारधारा को स्वीकार कर आते हैं तो सबका स्वागत है। हमें सरकार बनाने के लिए किसी बाहरी की जरूरत नहीं होगी।

पिछले चुनाव में आप उत्तर प्रदेश के महासचिव थे। इस बार अध्यक्ष के रूप में लड़ रहे हैं। दोनों चुनाव कितना भिन्न है?

-पिछले चुनाव में कांग्रेस के भ्रष्टाचार और कुशासन के खिलाफ जनता में आक्रोश था। दूसरी तरह गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में मोदी जी के प्रदर्शन और सुशासन के प्रति लोगों में आकर्षण था। इसके आधार पर लोगों का लगा था कि मोदी देश में परिवर्तन कर सकते हैं। इस बार वह आशा पूरी हुई और अब लोगों में आकांक्षा है कि हम यह भी कर सकते है, वह भी कर सकते हैं। यह आशा का नहीं, आकांक्षा का चुनाव है। लोकतंत्र के लिए यह शुभलक्षण है।

आपके अध्यक्ष रहते हुए भाजपा ने कई जीत हासिल की, कुछ पराजय भी मिला। क्या आपको लगता है कि 2019 का लोकसभा चुनाव सबसे बड़ी चुनौती के रूप में आया है?

-हमारे लिए तो हर चुनाव चुनौती की तरह होता है। भाजपा के कार्यकर्ता किसी भी चुनाव को हल्के में नहीं लेते। हम तो इसे ऐसे अवसर के रूप में देखते हैं जिसमें अपने कामकाज को जनता तक पहाचाएं, उनके संवाद करें।

भाजपा ने धारा 370 और 35 ए के बारे में वादा किया है। कितना गंभीर है?

-आज जो स्थिति है उसमें आपको पता है कि राज्यसभा में हमारा बहुमत नहीं है। लेकिन 2020 के बाद स्थिति बदलेगी। और हम मानते हैं कि धारा 370 कश्मीर के विकास के लिए घातक है। देश की एकता और अखंडता के लिए घातक है।

तो क्या माना जाए कि आपकी सरकार बनती है तो 2020 के बाद इस पर कदम उठेगा?

-हम जब भी कर पाएंगे तुरंत करना शुरू करेंगे।

पहले आपने 75 प्लस को जिम्मेदारी वाले पद से दूर रखने का फैसला किया था। अब चुनाव लड़ने पर भी रोक लग गई। क्या फैसला हमेशा के लिए होना होगा?

-यह फैसला चुनाव समिति ने किया है और एक नीति के रूप में निर्णय हुआ है। यह किसी के खिलाफ नहीं है। यह पार्टी का फैसला है।

दिल्ली को लेकर असमंजस की स्थिति क्यों है?

-(हंसते हुए) हमारे के लिए कौन का असमंजस। हम तो सातों सीटों पर लड़ने वाले हैं। यह सवाल तो आपको कांग्रेस और आम आदमी पार्टी से करना चाहिए। वह तय नहीं कर पा रहे हैं कि क्या करें, भाजपा से कैसे लड़ें।

इवीएम को लेकर फिर से विवाद खड़ा हो गया है। विपक्ष एकजुट है और उसकी आपत्ति है?

-मैं तो कहता हूं कि विपक्ष एक बार घोषणा कर देनी चाहिए कि इवीएम के माध्यम से अगर उन्हें बहुमत मिलता है तो वह सरकार नहीं बनाएंगे। अभी तीन राज्यों मे जीते हैं तो ईवीएम ठीक है, अब हार दिखाई दे रहा है तो ईवीएम के सिर फोड़ रहे हैं। यह उचित नहीं है।

आपके लोकसभा चुनाव लड़ने को लेकर अटकल तेज हो गई है। क्या आपको नई भूमिका मिलेगी, सरकार में आएंगे?

-आप जिस नई भूमिका की बात कर रहे हैं उसके लिए मुझे चुनाव लड़ने की आवश्यकता नहीं थी। मैं राज्यसभा का सदस्य हूं। दरअसल मैं पांच बार विधायक चुन कर आया। जब विधायक का कालखंड खत्म हुआ तब लोकसभा का चुनाव नहीं था। अब लोकसभा चुनाव आया है और पार्टी ने अनुमति दी है तो जनादेश लेकर संसद आना चाहता हूं। इसका ज्यादा अर्थ निकालने की कोई आवश्यकता नहीं है।

यानी चार पांच महीने बाद जिन राज्यों में चुनाव होने हैं, वह भी आपकी अध्यक्षता में ही होगा?

-यह तो पार्टी तय करेगी कि किसकी अध्यक्षता में होगा। मेरा तो कार्यकाल समाप्त हो गया है। फिलहाल तो चुनाव के कारण एक्सटेंशन मिला हुआ है।

क्या गांधीनगर का नतीजा रिकॉर्ड बनाएगा, आपकी जीत की मार्जिन क्या होगी?

-रिकॉर्ड मतदाताओं की संख्या पर निर्भर करता है। सीट बड़ी है या छोटी मार्जिन उस पर निर्भर करता है। जरूरी चीज है लोगों का विश्वास।

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