बर्फ के बीच कुदरती सौंदर्य का खज़ाना है हिमाचल प्रदेश का लाहुल-स्पीति

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Rga news

लाहुल-स्पीति हिमाचल प्रदेश का सबसे बड़ा जनजातीय जिला है। बर्फ की चादर में लिपटा कुदरत का सौंदर्य आंखों के रास्ते जेहन में हमेशा के लिए बस जाता है। चलते हैं लाहुल-स्पीती के सफर पर।...

मैदानों में गर्मी की तपिश है तो देश में ऐसे भी क्षेत्र हैं, जहां बिछी है बर्फ की चादर। इन्हें नैसर्गिक स्वरूप में देखना हो तो चले आइए लाहुल-स्पीति। विशाल पर्वतों के दायरे, बर्फीली वादियों और इनके बीच बसी स्पीति घाटी। इस जगह पर बारिश नहीं, बस बर्फबारी होती है। साल के 6 माह जहां देखें बस बर्फ की सफेद चादर बिछी होती है। हरियाली का नामोनिशा नहीं। हां, लाहुल में आपको जंगल मिल जाएंगे, लेकिन यहां लद्दाख और तिब्बत की सीमा से सटी झीलों और हिमखंडों से घिरी स्पीति घाटी में यह हरियाली नहीं मिलेगी। दरअसल, लाहुल-स्पीति आने का एहसास अनिवर्चनीय है। गोंपा और बौद्ध भिक्षुओं के मंत्रोच्चारण की गूंज ऐसी अलौकिक अनुभूति से भर देती है कि आप उसे ताउम्र नहीं भुला पाते। प्राचीन काल से यह स्थान घुमक्कड़ों, बौद्ध साधकों, व्यापारियों और खोजियों को अपने मोहपाश में बांधता आया है। यदि आप एडवेंचर के शौकीन हैं तो आप पाएंगे कि यह आपके लिए रोमांच का एक आदर्श पड़ाव है।

टशीगंग: दुनिया का सबसे ऊंचा मतदान केंद्र

लोकसभा चुनाव के इस मौसम में देश के विभिन्न स्थानों की खासियतों के बारे मेंजानना रोचक है। लाहुल स्पीति भी खास है। यहां के मंडी संसदीय क्षेत्र के टशीगंग मतदान केंद्र को दुनिया का सबसे ऊंचा मतदान केंद्र होने का गौरव हासिल हुआ है। टशीगंग 15256 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। इस मतदान केंद्र में कुल 49 मतदाता हैं। इसमें 29 पुरुष व 20 महिलाएं हैं। खास बात यह है कि इस बार इतनी ऊंचाई पर यह मतदान केंद्र पहली बार मतदाताओं के लिए तैयार किया गया है। पहले यह मतदान केंद्र कम ऊंचाई वाले सामुदायिक भवन में था। बरसात के कारण जब यह सामुदायिक भवन पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया, तब इसे राजकीय प्राथमिक स्कूल टशीगंग के भवन में स्थापित किया गया था।

बारालाचा दर्रा: सैलानियों की पहली पसंद

लाहुल घाटी में बारालाचा दर्रा सैलानियों की पहली पसंद बनने लगा है। यह दर्रा मनाली व लाहुल को लेह से जोड़ता है। इस दर्रे पर आपको जून-जुलाई में भी बर्फ के दीदार हो सकते हैं। मनाली से लेह जाने वाला हर यात्री यहां रुककर बर्फ में अठखेलियों का आनंद लेता है। वास्तव में यह पूरा रास्ता दिलफरेब है। समुद्र तल से 4843 मीटर की ऊंचाई पर स्थित बारालाचा दर्रे पर आकर आप इस खूबसूरत कुदरती वरदान पर गर्व करेंगे। यदि आप ट्रैकिंग के लिए यहां आते हैं तो यहां आपको पर्यटकों की भीड़ मिलेगी।

उम्मीदें जगाती रोहतांग टनल

रोहतांग सुरंग को लाहुल-स्पीति के लिए एक वरदान माना जा रहा है। हालांकि अभी यह सुरंग खुली नहीं है। पिछले करीब 10 साल से इसका काम चल रहा है। बर्फ से लदे पहाड़ों के बीच में बनी यह सुरंग लाहुल-स्पीति की खूबसूरती में चार चांद लगाती है। छह महीने तक बर्फ की कैद में रहने वाली घाटी रोहतांग सुरंग का तोहफा मिलने के बाद साल भर पर्यटकों के लिए खुली रहेगी, फिर पर्यटकों को गर्मी के मौसम का इंतजार नहीं करना पड़ेगा, तब आप वर्ष के किसी भी समय यहां आ सकते हैं।

सबसे बड़ी थंका पेंटिंग

यहां शशूर गोंपा यानी मठ जांस्कर के लामा देव ग्यात्शो ने 17वीं शताब्दी में स्थापित किया था, जो भूटान के राजा नवांम नामग्याल के मिशनरी थे। देव ग्यात्शो मृत्यु तक मठ में ही रहे। मान्यता है कि जब उनका अंतिम संस्कार किया गया, तब उनका दिल जला नहीं था। यहां ग्यात्शो का काला चित्र व प्रतिमा भी देखी जा सकती है। यहां आप सबसे बड़ी थंका पेंटिंग भी देख सकते हैं, जो पंद्रह फीट से अधिक लंबी है। जून-जुलाई में मठ में छम (देव समारोह) का आयोजन होता है, जो लाहुल में सर्वाधिक लोकप्रिय है। इस मौसम में यहां आएं तो आप भी इस आयोजन में जरूर शिरकत करें।

अनूठा भूचेन नृत्य

यहां पिन वैली का भूचेन नृत्य देशभर में लोकप्रिय है। ये विशेष धार्मिक अनुष्ठान के साथ नृत्य करते हैं। इस नृत्य के दौरान उनका छाती पर पत्थर तोड़ने का दृश्य दर्शकों को अचरज में डाल देता है। हालांकि यह उनकी संस्कृति है, जिसेबड़े प्यार से सहेजकर रखा गया है।

सबसे बड़ा मठ कीह गोंपा

समुद्र तल से 13504 फीट ऊंचा कीह गोंपा काजा से 12 किमी. दूर है। इस मठ की स्थापना 13वीं शताब्दी में हुई थी। इसका निर्माण बौद्ध गुरु रिग्छेन संगपा ने कराया था। यह स्पीति का सबसे बडा मठ है, जहां हर साल सैकड़ों बौद्ध भिक्षु शिक्षा ग्रहण करते हैं। इस मठ में प्राचीन हस्तलिपियों व थंका पेंटिंग कासंग्रह मौजूद है।

दुनिया की सबसे ऊंची सड़क

समुद्र तल से 14800 फीट की ऊंचाई पर बसा स्पीति का कौमिक गांव दुनिया की सबसे ऊंची सड़क से जुड़ा गांव है। चीन की सीमा के पास बसा यह गांव सबसे ऊंचा होने के कारण सैलानियों के आकर्षण का केंद्र बना रहता है। काजा से लगभग 22 किमी. दूर स्थित है कौमिक गांव।

कैसे जाएं?

हिमाचल के कुल्लू जिले की पर्यटन नगरी मनाली से रोहतांग व कोकसर होते हुए लाहुल पहुंचा जा सकता है। मनाली से जिला मुख्यालय केलंग की दूरी 110 किमी. है। गर्मियों में शिमला से किन्नौर से होते हुए स्पीति घाटी व कुंजम दर्रे से होकर लाहुल पहुंचा जा सकता है। जम्मू से किश्तवाड़ व पांगी होते हुए भी लाहुल-स्पीति आया जा सकता है। लेह से मनाली आने वाले सैलानी लाहुल घाटी से होकर गुजरते हैं। यहां तक पहुंचने का साधन सिर्फ सड़कें ही हैं। सर्दी में सरकार हवाई उड़ानें संचालित करवाती है, लेकिन वे सैलानियों के लिए नहीं होतीं।

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