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रामनगर : सीएफएल बनाने वाली फैक्ट्री के बंद होने के बाद अब भारत सरकार की दवा बनाने वाली फैक्ट्री को भी निजी हाथों में देने की तैयारी हो गई है। फैक्ट्री में 250 आयुर्वेदिक व 125 प्रकार की यूनानी दवा बनाई जाती है। फैक्ट्री में प्रत्यक्ष रूप से 105 स्थायी, 15 संविदा व साढ़े तीन सौ दैनिक श्रमिक समेत कुल पांच सौ कर्मचारी रोजगार से जुड़े हैं। अप्रत्यक्ष रूप से भी गांव के पांच हजार लोगों की आजीविका भी फैक्ट्री पर निर्भर है। पर्वतीय क्षेत्रों के किसान गोमूत्र, गोबर के कंडे, जड़ीबूटी उपज व मिट्टी के बर्तन फैक्ट्री में बेचते हैं। आइएमपीसीएल फैक्ट्री वर्ष 1978 में स्व. एनडी तिवारी ने केंद्रीय उद्योग मंत्री उद्योग मंत्री रहते मोहान क्षेत्र में खोली थी। निजीकरण के बाद कर्मचारियों की छंटनी की भी संभावना है। कंपनी अपनी पॉलिसी के तहत कार्य करेगी। कर्मचारियों के मुताबिक तीन साल बाद खरीदार को दवा उत्पादन बंद कर दूसरा उत्पादन शुरू करने की भी छूट दी गई है। कर्मचारियों ने बताया कि टेंडर में भाग लेने में कंपनी का लक्ष्य 70 करोड़ रखा गया है जबकि वर्तमान में फैक्ट्री सौ करोड़ के आसपास कमा रही है। आधुनिकीकरण के लिए 50 करोड़ भारत सरकार अब तक यहां लगा चुकी है। ऐसे में फैक्ट्री की लागत का आंकलन संदेह के घेरे में है।
यह है फैक्ट्री का इतिहास
उत्पादन से सालाना करोड़ों का राजस्व देने की वजह से यह फैक्ट्री भारत सरकार की नवरत्न कंपनी के रूप में जानी जाती है। ऐसे में निजी हाथों में देने से यहां कार्यरत कर्मचारियों व इससे जुड़े गांव के लोगों में भी पलायन की चिंता सताने लगी है।