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मसूद अजहर के अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित होने से भाजपा को स्वाभाविक रूप से एक मुद्दा मिल जाएगा जिसका वह चुनाव अभियान में भरपूर लाभ उठाना चाहेगी।...
मसूद अजहर के अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित होने के साथ ही यह तय हो गया कि चीन जैश ए मुहम्मद के इस सरगना की ढाल नहीं बनेगा। चीन कई वर्षों से उसे बचाता आ रहा था, मगर आखिरकार उसने अपना रवैया बदला। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के बाकी सदस्य देशों की मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित करने की मुहिम में चीन ने अतीत में कई बार अड़ंगे लगाए। अजहर पर बदला रुख चीन की नीति में बड़ा बदलाव है, क्योंकि हाल में और यहां तक कि पुलवामा आतंकी हमले के बाद भी उसने मसूद अजहर का बचाव किया था।
पुलवामा हमले के बाद अमेरिका द्वारा प्रवर्तित और फ्रांस एवं ब्रिटेन द्वारा समर्थित संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव पर चीन ने अवरोध पैदा किया। इस प्रस्ताव का मकसद मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित करना था। मार्च के मध्य में उसने अमेरिकी प्रस्ताव में तकनीकी पेच फंसाकर इस प्रक्रिया को टाल दिया। ऐसा करते हुए चीन 2009 से चली आ रही अपनी नीति पर कायम था। यह समझना होगा कि चीन ने अपने दृष्टिकोण को आखिर क्यों बदला और भारत एवं मोदी सरकार के लिए इसके क्या मायने हैं?
पुलवामा हमले की जिम्मेदारी खुद जैश ए मुहम्मद ने ली थी। यह भारतीय सुरक्षा बलों पर सबसे जघन्य हमला था जिसने पूरे देश की चेतना पर करारी चोट की थी। समूचा देश इससे आक्रोशित था। 2016 में उड़ी हमले के बाद भारत द्वारा की गई सर्जिकल स्ट्राइक से प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट कर दिया था कि पाकिस्तान की ओर से होने वाले आतंकी हमले का भारत केवल राजनीतिक एवं कूटनीतिक दायरे में रहकर ही जवाब नहीं देगा। बालाकोट हमले के साथ अंतरराष्ट्रीय जगत को भी स्पष्ट रूप से यह संकेत दे दिया गया कि आतंकवाद के खिलाफ भारत की नीति बदल गई है और अब उसका रणनीतिक धैर्य जवाब देता जा रहा है।
बालाकोट हमले के बाद संयुक्त राष्ट्र में मसूद अजहर को घेरने का अमेरिकी प्रस्ताव इसका परिचायक था कि भारत का आक्रोश वाजिब है। अनौपचारिक रूप से उसने स्वीकार भी किया कि भारत को अपनी आत्मरक्षा का पूरा अधिकार है। अमेरिका और अन्य पश्चिमी देश पाकिस्तान को यह संदेश देना चाहते थे कि वह अब आतंकी खेल खेलना बंद करे, क्योंकि भारत अब उसके खिलाफ सैन्य कार्रवाई करने से नहीं हिचकेगा।
इससे यही जाहिर होता है कि पहले जहां भारत पर आतंकी हमले के बाद धैर्य बनाए रखने का दबाव होता था वहीं अब उस पर आतंकी हमले रोकने के लिए दबाव बढ़ गया है। पाकिस्तान के साथ अपने हितों को देखते हुए चीन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अमेरिका के प्रस्ताव का समर्थन करने का अनिच्छुक था। पुलवामा हमले के तुरंत बाद अमेरिका ने सुरक्षा परिषद में हमले की निंदा करने वाला प्रस्ताव पारित कराने का भी प्रयास किया। तब भी चीन ने उसमें अड़ंगा लगाया।
चीन के अड़ियल रवैये से आजिज आकर इस प्रस्ताव का समर्थन करने वाले अमेरिका सहित अन्य देश मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित करने का प्रस्ताव सुरक्षा परिषद की समिति में ले आए। इस प्रस्ताव पर चीन और ज्यादा कुपित हो गया। ऐसा इसलिए, क्योंकि सुरक्षा परिषद की समिति में जब किसी आतंकी का मसला उठता है तो उस आतंकी को केवल तकनीकी आधार पर ही नहीं बचाया जा सकता। उस देश को सार्वजनिक रूप से उस आतंकी की करतूतों का भी बचाव करना पड़ता है। इससे अलग-थलग पड़ने के साथ ही अंतरराष्ट्रीय शर्मिंदगी झेलने का जोखिम भी बढ़ जाता है।
भारत ने संयुक्त राष्ट्र में अपने काबिल विशेष दूत सैयद अकबरुद्दीन की अगुआई में खामोशी के साथ, लेकिन सही कूटनीतिक पत्तों के साथ अपनी चाल चली। इस बीच चीन ने अमेरिका के प्रस्ताव को मार्च तक किसी तरह लटका दिया। बाद में यह मामला अमेरिका और चीन के बीच फंस गया। चीन ऐसे संकेत दे रहा है कि वह दुनिया की महाशक्ति के रूप में अमेरिका को चुनौती देना चाहता है। वहीं ट्रंप इस चुनौती की हवा निकालने को आतुर हैं। अमेरिका और उसके समर्थक देश फ्रांस और ब्रिटेन ने चीन से कहा कि वे इस प्रस्ताव को परिषद के सामने लाने के लिए दृढ़संकल्पित हैं ताकि उसके दोहरे चरित्र को बेनकाब कर सकें।
बीते कुछ हफ्तों से चीन इसी दुविधा से जूझता रहा कि क्या वह ऐसा आभास कराना चाहता है कि पाकिस्तान के साथ उसके हित इतने ज्यादा जुड़े हुए हैं कि उसके लिए वह मसूद अजहर को लेकर अपनी अंतरराष्ट्रीय छवि भी दांव पर लगा सकता है जिसके तार पाकिस्तानी फौज से भी जुड़े हुए हैं? हाल में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने द्वितीय बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव समिट में भाग लेने के लिए चीन का दौरा किया। चीन ने उन्हें तवज्जो देते हुए चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे यानी सीपैक को लेकर उनसे व्यापक समर्थन मांगा। यह इस बात को दिखाने की कोशिश थी कि पाकिस्तान के साथ चीन के हित दिनोंदिन मजबूत होते जा रहे हैं। इससे मसूद अजहर पर चीन के रुख में आए बदलाव से पाकिस्तानी जनता में उपजे आक्रोश को कुछ हद तक शांत करने में मदद मिलेगी।
पाकिस्तान में तमाम लोग यही सोचते रहे कि पाक के साथ अपने रिश्तों को देखते हुए मसूद अजहर के मामले में चीन कभी भी पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शर्मसार नहीं होने देगा। हालांकि पाकिस्तानी नीति निर्माता चीन से अभी भी इसी अपेक्षा में लगे थे कि वह भारत में चल रहे चुनावों के बाद ही यह कदम उठाए, क्योंकि अभी ऐसा करने से भाजपा चुनावों में इस मुद्दे को भुना सकती है। ऐसा लगा भी कि चीन इसी राह पर है, लेकिन अमेरिकी दबाव और भारत में मोदी की वापसी की संभावना को देखते हुए उसे अपना रुख बदलना पड़ा।
चीन के रुख में बदलाव भारत के लिए निश्चित रूप से एक बड़ी कूटनीतिक कामयाबी है, क्योंकि वह बीते कई वर्षों से मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित कराने के लिए प्रयास कर रहा था। भले ही पाकिस्तान अजहर के खिलाफ कोई कार्रवाई न करे जैसा कि उसने हाफिज सईद जैसे आतंकी के मामले में किया, तब भी इस आतंकी सरगना पर पाबंदी भारत के लिए एक बड़ी सफलता है।
मसूद अजहर के अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित होने से भाजपा को स्वाभाविक रूप से एक मुद्दा मिल जाएगा जिसका वह चुनाव अभियान में भरपूर लाभ उठाना चाहेगी। अजहर का मामला भारत-चीन संबंधों के लिए भी एक सबक है। चीन तब तक भारत की चिंताओं पर गौर नहीं करता जब तक कि बड़ी शक्तियां उस पर इसके लिए दबाव नहीं डालतीं।
वर्ष 2008 में परमाणु आपूर्तिकर्ता देशों के समूह में भी ऐसा ही हुआ था। तब अमेरिकी राष्ट्रपति बुश द्वारा भारत के मुखर समर्थन के बाद ही चीन के तेवर ढीले पड़े थे। इस मामले में भी यही देखने को मिला। स्पष्ट है कि वुहान जैसी भावना से ज्यादा अंतरराष्ट्रीय हितों के साथ संयोजन अधिक आवश्यक है।