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लोकगीत गायक पद्मश्री हीरा लाल यादव का रविवार की सुबह निधन हो गया वह कई दिनों से बीमार चल रहे थे काफी समय से एक निजी अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। ..
वाराणसी:- पूर्वांचल से लेकर बिहार तक अपनी लोकगायकी से लाखों के हृदय में बसने वाले हीरा लाल यादव का रविवार की सुबह निधन हो गया, वह करीब 93 वर्ष के थे। कई दिनों से वह अस्वस्थ चल रहे थे और भोजूबीर में इलाज चल रहा था। अस्पताल से चौकाघाट स्थित आवास पर उन्हें लाया गया और यहीं उन्होंने अंतिम सांस ली। पुत्र सत्यनारायण यादव ने बताया कि दो दिन पहले ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने फोन कर स्वास्थ्य की जानकारी ली।
इसी वर्ष गणतंत्र दिवस के अवसर पर हीरा लाल यादव को पद्मश्री से सम्मानित किया गया। 16 मार्च को राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति भवन में महामहिम रामनाथ कोविंद ने पद्म अलंकार प्रदान किया था। अस्वस्थता के बाद भी वह राष्ट्रपति भवन पहुंचे थे। प्रधानमंत्री एवं गृहमंत्री ने पास पहुंचकर उनका आशीर्वाद लिया था। सत्तर वर्ष में पहली बार बिरहा को सम्मान मिला था। प्रधानमंत्री मोदी अपने भाषण में भी इसका उल्लेख कर चुके हैं। उनके निधन पर पर पीएम ने भी टवीट कर शोक व्यक्त किया है।
हीरालाल के निधन की सूचना से शोक की लहर फैल गयी। तमाम लोगों ने उनके आवास पर पहुंचकर संवेदना प्रकट की। भाजपा उत्तर प्रदेश के सह प्रभारी सुनील ओझा ने कहा कि काशी से अपने एक सच्चे लाल को खो दिया। भाजपा काशी प्रांत के उपाध्यक्ष धर्मेन्द्र सिंह ने कहा कि देश की लोकगायकी में कोई दूसरा हीरा नहीं मिलेगा। करीब सात दशक तक हीरा-बुल्लू की जोड़ी गांव शहर में बिरहा की धूम मचाती रही। दोनों ही गायक राष्ट्रभक्ति गीतों से स्वतंत्रता आंदोलन की अलख जगाते रहे। बुल्लू यादव का निधन पहले ही हो चुका था।
मूलरूप से वाराणसी जिले में हरहुआ ब्लाक के बेलवरिया निवासी हीरालाल यादव का जन्म वर्ष 1936 में चेतगंज स्थित सरायगोवर्धन में हुआ। उनका बचपन बहुत ही गरीबी में गुजरा था, भैंस चराने के दौरान शौकिया गाते-गाते अपनी सशक्त गायकी से बिरहा को आज राष्ट्रीय फलक पर पहचान दिलाई और बिरहा सम्राट के रूप में ख्यात हुए। यह कठोर स्वर साधना का प्रतिफल तो रहा ही गुरु रम्मन दास, होरी व गाटर खलीफा जैसे गुरुओं का आशीर्वाद भी इसमें शामिल रहा। उन्होंने वर्ष 1962 से आकाशवाणी व दूरदर्शन पर बिरहा के शौकीनों को अपना दीवाना बनाया। भक्ति रस में पगे लोकगीत और कजरी पर भी श्रोताओं को खूब झुमाया, वहीं गायकी में शास्त्रीय पुट ने बिरहा गायन को विशेष विधा के तौर पर पहचान दिलाई। उनके इसी समर्पण ने उनको पद्मश्री सम्मान तक दिलाया था।
यशभारती समेत एक दर्जन सम्मान : लोक गायन की बिसरती विधा बिरहा को आज तड़क-भड़क के दौर में भी आसमान देने वाले ख्यात कलाकार को कई बार शीर्ष सम्मान मिलते मिलते रह गए थे। इसे उन्होंने बेबाकी से सरकारों की राजनीति करार दिया और समय दर समय अपना हौसला कम न होने दिया। मगर इन स्थितियों से दिल ऐसा टूटा कि घर के बच्चों को उन्होंने गायकी से दूर ही कर दिया। उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्हें 93-94 में संगीत नाटक अकादमी सम्मान और 2014 में यशभारती के साथ ही विश्व भोजपुरी अकादमी का भिखारी ठाकुर सम्मान व रवींद्र नाथ टैगोर सम्मान भी मिला था।