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अर्थव्यवस्था में उपभोग बढ़ने से उत्पादन बढ़ता है। इसका सीधा फायदा बंद पड़े सूक्ष्म लघु और मध्यम उद्योगों को मिलेगा।...
केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा की हताशा से यह दिखने लगा है कि मोदी सरकार की विदाई तय है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनावी भाषणों और वित्त मंत्री अरुण जेटली के ब्लॉग में उनकी सरकार के प्रदर्शन के ब्योरे से पांच साल में दो करोड़ रोजगार और किसानों की आय दोगुनी करने की बात बिल्कुल गायब है। सच मानें तो इसका कारण यह है कि उन्होंने इस बारे में बात करने के लिए भरोसा ही खो दिया है। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि प्रधानमंत्री की दो सबसे बड़ी आर्थिक नीतियों नोटबंदी और वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी का भी कोई जिक्र नहीं किया जाता। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में आर्थिक विकास दर, आयात-निर्यात, राजकोषीय घाटा, रोजगार, ग्रामीण अर्थव्यवस्था, उद्योगीकरण, बचत, निवेश और बैंकिंग जैसे इन सभी क्षेत्रों में अर्थव्यवस्था को नुकसान हुआ है। सबसे खतरनाक बात यह है कि या तो मोदी सरकार ने आंकड़ों को बाहर नहीं आने दिया या फिर अपनी सुविधा से आंकड़ों को तोड़-मरोड़कर पेश किया। इस वजह से अंतरराष्ट्रीय समुदाय में हमारी छवि पर प्रतिकूल असर पड़ा है।
मोदी-जेटली की जुगलबंदी वाली आर्थिक नीतियों की वजह से अभी हाल में तिमाही वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद में भारी गिरावट आई। अनुमान है कि 1.6 लाख करोड़ रुपये के कर राजस्व की कमी, वास्तविक राजकोषीय घाटे को बढाकर 4.5 प्रतिशत कर देगी। इससे अर्थव्यवस्था की विकास दर और धीमी होने के साथ ही असमानता बढ़ेगी। मोदी सरकार ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को तबाह कर दिया। किसानों की आय दोगुनी करने के नाम पर उन्हें ठगा। अगर हम आंकड़ों की मानें तो आने वाले चार वर्षों में किसानों की आय दोगुनी करने के लिए कृषि विकास दर 10 प्रतिशत या उससे अधिक होनी चाहिए जोकि निकट भविष्य में असंभव सी दिखती है। भाजपा सरकार की उदासीनता की वजह से ग्रामीण इलाकों में पूरे पांच साल तक दिहाड़ी में वृद्धि नहीं हुई। मोदी सरकार में कृषि विकास दर संप्रग सरकार की तुलना में आधी हो गई है और उसका प्रतिकूल प्रभाव हमारे किसानों पर पड़ा है।
अगर नोटबंदी की बात करें तो उसकी वजह से लाखों नौकरियां तबाह हो गईं। कालाधन वापस लाने के नाम पर लोगों को ठगा गया। इसी तरह जीएसटी को देखें तो उसे भी बिना किसी तैयारी के जल्दबाजी में लागू किया गया। इस वजह से सूक्ष्म, छोटे और मध्यम उद्योगों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा। एक तरफ नोटबंदी और दूसरी तरफ जीएसटी के रूप में गब्बर सिंह टैक्स, दोनों की वजह से अर्थव्यवस्था बर्बाद हो गई। महिलाओं और युवाओं का रोजगार छीन लिया गया। प्रधानमंत्री मोदी भारत के ऐसे पहले प्रधानमंत्री हैं जिनकी विरासत नौकरियों को बर्बाद करने की रहेगी। एक रिपोर्ट के अनुसार सिर्फ 2018 में ही 1.1 करोड़ रोजगार खत्म हुए। एनएसएसओ के लीक आंकड़ों के मुताबिक बेरोजगारी अपनी 45 साल की चरम सीमा पर है और सरकार इस पर बात करने को भी तैयार नहीं। इस सरकार के द्वारा दिए हुए सभी आंकड़े संदेह के घेरे में रहे हैं। कई श्रेणियों में जारी किए गए आंकड़ों पर विशेषज्ञों ने कमियां निकाली हैं। जीडीपी के आंकड़े भी इसमें शामिल हैं जिन पर सवालिया निशान लगे हैं।
अगर बैंकिंग सेक्टर पर नजर डालें तो पता लगता है कि मोदी राज में बैंकिंग धोखाधड़ी चार गुना बढ़ गई है। समस्याओं से जूझ रहे एनबीएफसी क्षेत्र को भी सरकार से कोई सहयोग नहीं मिल रहा। बैंकिंग क्षेत्र जहां मुश्किलों से जूझ रहा है वहीं दूसरी ओर नीरव मोदी और मेहुल चोकसी जैसे लोगों को देश छोड़कर जाने दिया गया जो बैंकों को करोड़ों रुपये का चूना लगा गए। ऐसे लोगों और विलफुल डिफॉल्टरों यानी जानबूझकर बैंकों का कर्ज न चुकाने वालों की वजह से बैंकों के एनपीए में भारी बढ़ोत्तरी हुई जिसने अर्थव्यवस्था को और खस्ताहाल कर दिया। इसके साथ ही निर्यात दर और विदेशी निवेश दोनों में भारी गिरावट आई है। अगर हम अन्य संकेतकों पर गौर करें तो बचत की जो दर 2014 में 20 प्रतिशत के आसपास थी वह अब घटकर 17 प्रतिशत रह गई है।
सबसे अधिक आश्चर्यचकित करने वाली बात निवेश में कमी आना है। मोदी सरकार में औसत निवेश की दर संप्रग के पहले और दूसरे कार्यकाल के औसत की तुलना में आठ प्रतिशत कम हो गई है। मोदी सरकार में प्रतिवर्ष केवल औसतन 3430 फैक्ट्रियां लगीं जो संप्रग के दौर में सालाना 10,000 फैक्ट्रियों के औसत से बहुत कम है। कम निवेश और नए उद्योगों के न लगने से नई नौकरियों का सृजन नहीं हो सका और गलत आर्थिक नीतियों की वजह से करोड़ों नौकरियां खत्म हो गईं।
मनमोहन सरकार की आर्थिक नीतियां समावेशी विकास के सिद्धांत पर केंद्रित थीं। इसके उलट मोदी-जेटली का मॉडल घाटे का राष्ट्रीयकरण और मुनाफे का निजीकरण है। मोदी सरकार के पांच वर्षों के कार्यकाल में अर्थव्यवस्था बर्बादी के कगार पर है और इसमें सुधार के लिए आने वाली सरकार को तुरंत उचित कदम उठाने होंगे। कांग्रेस पार्टी के पास अनुभवी नेताओं और पेशेवर लोगों की काबिल टीम है। उसके पास अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर लाने के लिए एक कार्ययोजना है।
हम इसकी झलक कांग्रेस पार्टी के घोषणापत्र में देख ही चुके हैं। सबसे पहले जो 24 लाख सरकारी पद रिक्त हुए हैं, उन पर साल भर के भीतर भर्तियां पूरी कर ली जाएंगी। जो युवा उद्यमी बनना चाहते हैं उन्हें तीन साल तक किसी सरकारी अनुमति की जरूरत नहीं होगी और उनके ऊपर कोई कर नहीं लगाया जाएगा। किसानों की समस्या के समाधान के लिए कर्ज माफी की जाएगी जो हमारे किसानों को तुरंत राहत देगी और फिर एक विशेष योजना के तहत उनकी हालत में सुधार के प्रयास किए जाएंगे। कांग्रेस पार्टी किसानों को कर्ज माफी से कर्ज मुक्ति तक ले जाएगी।
न्याय योजना के तहत देश के सबसे निर्धन पांच करोड़ परिवारों को सालाना 72,000 रुपये की सहायता मिलेगी। इसमें भी जहां तक संभव हो सकेगा, ये पैसा परिवार की महिलाओं के खाते में दिया जाएगा। इससे न सिर्फ गरीबी खत्म होगी, बल्कि अर्थव्यवस्था को भी गति मिलेगी। उदाहरण के लिए जब न्याय योजना पूर्ण रूप से क्रियान्वित होगी तब सालाना 3.6 लाख करोड़ रुपये नागरिकों के हाथ में जाएगा जिससे वे अपनी रोजमर्रा की जरूरत का सामान या फिर शिक्षा या स्वास्थ्य जैसी सेवाओं के लिए खर्च कर सकेंगे।
अर्थव्यवस्था में उपभोग बढ़ने से उत्पादन बढ़ता है। इसका सीधा फायदा बंद पड़े सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों को मिलेगा। वहां उत्पादन फिर से शुरू होगा और सिर्फ खोई हुई नौकरियां ही नहीं मिलेंगी, बल्कि नए रोजगार भी सृजित होंगे।