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लोकसभा के सातवें अंतिम चरण में बिहार में आठ सीटों पर मतदान होना है। ये सीटें हाई प्रोफाइल सीटें हैं जिनपर शह-मात का समीकरण बुरी तरह उलझे हुए हैं। इन सीटों पर किसके सिर सजेगा ताज?...
पटना:-ब्राह्मण बहुल इस इलाके में भाजपा के अश्विनी कुमार चौबे की राह पिछली बार ददन यादव ने आसान बना दी थी। राजद के जगदानंद सिंह 1,32,338 मतों से परास्त हुए थे, जबकि बसपा उम्मीदवार ददन यादव 1,84,788 मत झटक ले गए। इस बार ददन मैदान में नहीं और वह भाजपा के लिए प्रचार कर रहे।
केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे को इसका सीधा लाभ बताया जा रहा, लेकिन ददन की हिस्सेदारी राजद के परंपरागत वोटों में ही रही थी। वैसे क्षेत्र विशेष में ददन का अपना प्रभाव भी है, लेकिन हर बार उनकी नई खेमेबाजी मतदाताओं को रास आए, इसकी गारंटी नहीं।
बहरहाल चौबे को जगदानंद सिंह कड़ी चुनौती दे रहे हैं। 2004 में वे यहां से सांसद भी रह चुके हैं और राजद में रघुवंश प्रसाद सिंह के बाद दूसरे निष्ठावान नेता हैं, जो लालू प्रसाद का साथ नहीं छोड़े। मतदाताओं के बीच राजद का यह इमोशनल कार्ड है।
आरा में सीधा मुकाबला
आरा की पहचान बाबू वीर कुंवर सिंह से जुड़ी हुई है, जिनकी वीरता इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं। वर्तमान में उसी बिरादरी से आने वाले आरके सिंह इतिहास का नया अध्याय लिखने की कोशिश कर रहे हैं। पिछली बार सिंह ने यहां भाजपा की पहली जीत दर्ज कराई थी।
इस बार जीत दोहराने की चुनौती है और साफ-सुथरी छवि उन्हें ताकत दे रही। वैसे भाकपा (माले) की ताकत भी
कम नहीं। यही कारण है कि राजद ने पाटलिपुत्र के एवज में यह सीट उसके हवाले की। राजू यादव उम्मीदवार हैं, जो पिछली बार तीसरे पायदान पर थे।
काराकाट इस बार सुर्खियों में
संयोग और समीकरण कुछ ऐसे बने कि काराकाट की लड़ाई भी सुर्खियों में आ गई। यहां एक ही बिरादरी के दो महाबली हैं। एक नाम वाले (जदयू उम्मीदवार महाबली सिंह) और दूसरे सियासत में मुकाम वाले यानी रालोसपा सुप्रीमो उपेंद्र कुशवाहा। पिछली बार 3,38,892 मत पाकर कुशवाहा विजयी रहे थे। राजद की कांति मात खा गई थीं। महाबली जदयू के उम्मीदवार थे।
अब सवाल यह है कि कुशवाहा को मिले वोट आखिर किसके थे? राजद मैदान में होता तो इसकी पैमाइश हो जाती, लेकिन इस बार कांति सिंह भारी मन से कुशवाहा के लिए वोट मांग रहीं। बावजूद इसके कुशवाहा अगर
उजियारपुर में भी दांव भिड़ाए तो उसकी असली वजह काराकाट में संशय रही होगी।
सासाराम में मीरा का कद बड़ा है, पर सामने हैं छेदी पासवान...
संसदीय इतिहास में सासाराम का बनाया रिकार्ड अभी तक ध्वस्त नहीं हो पाया है और निकट भविष्य में इसकी संभावना भी नहीं। बाबू जगजीवन राम यहां से आठ बार निर्बाध विजयी रहे। मृत्यु ही उनकी संसदीय यात्रा पर विराम लगा पाई। लोकसभा अध्यक्ष रह चुकी कांग्रेस उम्मीदवार मीरा कुमार उन्हीं की पुत्री हैं।
छेदी पासवान भाजपा के उम्मीदवार हैं, जो यहां से तीन बार विजयी रहे हैं। दो जीत मीरा कुमार को भी नसीब हुई, लेकिन छेदी से हुए हर मुकाबले में उन्हें शिकस्त मिलती रही है।
नालंदा में हम बनाम जदयू
नालंदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गृहक्षेत्र है। यहां उनके पसंदीदा कौशलेंद्र कुमार जदयू के उम्मीदवार हैं। कौशलेंद्र लगातार दो चुनाव जीत चुके हैं। इस बार उन्हें हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के अशोक कुमार आजाद से टक्कर मिल रही है।
हम के अध्यक्ष जीतन राम मांझी हैं, जिन्हें लोकसभा के पिछले चुनाव के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपकर नीतीश कुमार राष्ट्रीय स्तर पर नए राजनीतिक समीकरण की व्यूह रचना करना चाह रहे थे। मांझी ने नाज नहीं रखा और नीतीश कुमार का जदयू भी वापस एनडीए में लौट आया।
जहानाबाद में त्रिकोण
नालंदा के बगल में जहानाबाद है, जहां से पिछली बार विजयी रहे डॉ. अरुण कुमार रालोसपा छोड़कर राष्ट्रीय समता पार्टी (सेकुलर) का गठन कर चुके हैं। इस पार्टी के वह इकलौते उम्मीदवार हैं। ज्यादा दिन नहीं हुए जब अरुण कुमार ने खुलेआम नीतीश कुमार के लिए भले-बुरे शब्दों का इस्तेमाल किया था। इस बार वह जहानाबाद में राजद के डॉ. सुरेंद्र यादव के साथ जदयू के चंदेश्वर प्रसाद चंद्रवंशी से जूझ रहे। गोलबंदी की स्थिति में त्रिकोण बन सकता है।
पटना साहिब: बागी और वोट बैंक
अभिनेता से नेता बने शत्रुघ्न सिन्हा यानी बिहारी बाबू केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं। साथ ही वह दो बार के सांसद और एक प्रखर वक्ता भी हैं। रविशंकर प्रसाद भी जाने-माने बैरिस्टर और कुशल वक्ता हैं। वर्तमान में वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में कानून मंत्री हैं। कायस्थ मतदाताओं के दमखम वाले इस क्षेत्र में दोनों उम्मीदवार एक ही बिरादरी से आते हैं।
कांग्रेस नेता शत्रुघ्न सिन्हा जहां लगातार तीसरी बार जीत के लिए दांव चल रहे हैं, वहीं रविशंकर प्रसाद पहली
बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। पटना साहिब भाजपा का गढ़ रहा है और कायस्थ मतदाताओं का भाजपा के प्रति काफी झुकाव है। बावजूद इसके सब कुछ इतना आसान भी नहीं है।
2014 में शत्रुघ्न सिन्हा ने कांग्रेस के कुणाल सिंह को ढाई लाख से अधिक वोटों से हराया था। कुणाल सिंह भोजपुरी फिल्म के सुपरस्टार रहे हैं। सिन्हा 2009 में अभिनेता शेखर सुमन को भी पटकनी दे चुके हैं।
पाटलिपुत्र : चाचा बनाम भतीजी
पाटलिपुत्र में लड़ाई दिलचस्प मोड़ पर पहुंच गई है। इस सीट पर केंद्रीय मंत्री रामकृपाल यादव यानी चाचा और राजद प्रत्याशी मीसा भारती यानी भतीजी के बीच कब्जे और बदले की लड़ाई चरम पर है। मीसा लगातार दूसरी बार रामकृपाल से मुकाबले में हैं। पाटलिपुत्र से 2009 में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद चुनाव हार गए थे। पिछली बार उनकी पुत्री मीसा मात खाई थीं।
इस बार रामकृपाल जहां मोदी के नाम पर वोट मांग रहे हैं, वहीं मीसा अपने पिता लालू के नाम पर। लालू परिवार के लिए यह प्रतिष्ठा की लड़ाई है। मीसा की जीत के लिए तेजस्वी यादव और राबड़ी देवी सभा और रोड शो कर रहे हैं। रामकृपाल के लिए अमित शाह के अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपील कर चुके हैं।