जीत के साथ ही पंजाब में दलित नेतृत्व को लेकर हंसराज हंस की राह खुली

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भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर उत्तर-पश्चिमी दिल्ली से चुनाव जीतने वाले सूफी गायक हंसराज हंस के लिए अब दलित नेतृत्व को लेकर पंजाब की राह भी खुल गई है।...

जालंधर:-भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर उत्तर-पश्चिमी दिल्ली से चुनाव जीतने वाले सूफी गायक हंसराज हंस के लिए अब दलित नेतृत्व को लेकर पंजाब की राह भी खुल गई है। दस दिसंबर 2016 को भाजपा में शामिल होने के बाद हंस सियासत में काफी सक्रिय हुए हैं। उन्हें स्वच्छ छवि वाले दलित चेहरे के रूप में भी देखा जा रहा है।

दोआबा की दलित राजनीति में खासी पैठ रखने वाले हंस पहले अकाली दल व कांग्रेस में भी रहे हैैं। 2009 के लोकसभा चुनाव में जालंधर सीट से चुनाव लड़कर उन्होंने 3,71,658 वोट हासिल किए थे। इस बार लोकसभा चुनाव में दिल्ली में शानदार जीत हासिल करने वाले हंस को लेकर पार्टी पंजाब में भी दलित कार्ड खेल सकती है।

दरअसल, दलित वोट बैंक को साधते हुए भाजपा ने उत्तर-पश्चिमी दिल्ली से दलित नेता उदित राज का टिकट काटकर हंस को प्रत्याशी बनाया था। बताया जा रहा है कि चुनाव से ठीक पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं हंस को टिकट की पेशकश की थी। इससे पूर्व करीब दो वर्ष लगातार हंस ने इस हलके में ही नहीं बल्कि दिल्ली में कई रैलियां व जनसभाएं करवाकर पार्टी में अपनी बेहतर स्थिति बना ली थी। जिसके चलते पार्टी ने उन पर विश्वास जताते हुए चुनाव मैदान में उतारा था।

उधर, जालंधर को पंजाब के दोआबा क्षेत्र का केंद्र माना जाता है। हंस जालंधर के गांव सफीपुर के रहने वाले हैैं। हंस को पंजाब की दलित राजनीति से भली भांति वाकिफ होने के चलते उन्हें पंजाब की सियासत में सक्रिय किया जा सकता है। हाल ही में जालंधर से ही एक दलित नेता को बैकफुट पर भेजने के बाद हंस को विकल्प के रूप में देखा जा रहा है।

सूफी गायक से लेकर तय किया राजनीति का सफर

हंस ने गायकी से राजनीतिक सफर में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। एक बार तो उन्होंने राजनीति से तौबा करने का फैसला कर लिया था। 2001 में पंजाब की गठबंधन सरकार ने हंस को 'राज गायक' की उपाधि से नवाजा। इसके अगले वर्ष ही पंजाब विधानसभा चुनाव के दौरान उन्होंने गठबंधन के पक्ष में प्रचार किया।

वर्ष 2009 में सक्रिय राजनीति की शुरुआत करने वाले हंस ने शिरोमणि अकाली दल से जालंधर लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ा। अपने प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के मोहिंदर सिंह केपी को उन्होंने कड़ी टक्कर दी थी। इसके बाद शिअद में खुद को उपेक्षित महसूस करते हुए हंस ने 2014 में कांग्रेस का दामन थाम लिया। यहां भी उनकी पारी दो वर्ष की रही। पार्टी से खफा होकर 2016 में हंस भाजपा में शामिल हो गए।

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