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बरेली संवाददाता
बरेली : महात्मा ज्योतिबा फुले (ज्योतिराव गोविंद फुले) और सावित्री बाई फुले को बेशक विदेशी कंपनी गूगल उनके जन्मदिन पर डूडल बनाकर सम्मान देती है। मगर उनके नाम पर जो महात्मा ज्योतिबा फुले रुहेलखंड विश्वविद्यालय है। उसके पास उन्हें याद करने की फुर्सत ही नहीं है। वो बरेली-मुरादाबाद मंडल के उन छह लाख छात्र-छात्राओं को उनकी शख्सियत के बारे में भी बताने को तैयार नहीं है। शायद यही वजह है कि इस यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स उनके व्यक्तित्व से अंजान हैं।
11 अप्रैल। यह तारीख महात्मा ज्योतिबा फुले की पैदाइश की है। हर साल की तरफ बुधवार का यह दिन भी एमजेपी रुविवि में गुमनामी में गुजर गया। कैंपस में न तो ज्योतिबा फुले की याद में कोई कार्यक्रम हुआ, न किसी ने उन्हें श्रद्धांजलि दी। इस संबंध में कई प्रोफेसरों से बात की गई तो उन्होंने उनके जन्मदिन के कार्यक्रम की जानकारी से इन्कार किया। रुविवि के कुलसचिव अशोक कुमार अरविंद से संपर्क किया गया तो उन्होंने कॉल रिसीव नहीं की। करोड़ों उड़ा देते हैं, पर एक गोष्ठी तक नहीं की
रुविवि प्रशासन आए दिन विचार गोष्ठी, सेमिनार और वर्कशॉप पर सालाना करोड़ों रुपये उड़ा देता है। मगर महात्मा ज्योतिबा फुले के नाम पर एक गोष्ठी तक नहीं कराई जाती। उनकी इस अनदेखी की टीस प्रोफेसरों को भी है। हालांकि यह दीगर कि किसी प्रोफेसर ने अपने विभाग में भी उनके नाम पर कोई कार्यक्रम करने की पहल नहीं की। मानवता की बेमिसाल शख्सियत
11 अप्रैल, वर्ष 1827 को महाराष्ट्र के पुणे स्थित भिवानी में जन्मे ज्योतिराव फुले ने अपनी पूरी ंिजंदगी समाज सेवा में गुजारी। उनकी पत्नी सावित्री बाई फुले देश की पहली महिला शिक्षक के तौर पर जानी जाती हैं। नेतागिरी चमकाने वाले भी बेखबर
खेमों में बंट रही शख्सियतों के नाम पर राजनीति चमकाने वाले भी महात्मा ज्योतिबा फुले को याद करने के लिए आगे नहीं आते हैं। यही वजह कि इस अजीम शख्सियत के कारनामों से युवा पीढ़ी अंजान हैं।
वर्जन
महात्मा ज्योतिबा फुले के जन्मदिन पर कार्यक्रम की जानकारी मुझे नहीं है। मैं व्यक्तिगत काम से बाहर आया हूं। हालांकि उनकी मूर्ति बनवाई जा रही है।
यशपाल सिंह, मीडिया प्रभारी, रुहेलखंड विश्वविद्यालय