विश्व तंबाकू निषेध दिवस: छिन गई जुबान, होठों पर फिर भी जिंदगी के नगमे; पढ़िए पूरी खबर

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ओएनजीसी के संदीप गोयल की जिंदादिली को सलाम है क्योंकि मुहं के कैंसर की जंग में जीभ व जबड़े को खो देने के बाद भी उनके होठों पर जिंदगी के नगमे तारी रहते हैं।..

देहरादून:-जिंदादिली है तो जिंदगी है। जिस कैंसर का नाम सुनते ही लोगों की आधी जान निकल जाती है, उसे ओएनजीसी के मैटीरियल मैनेजमेंट के सुप्रीटेंडेंट संदीप गोयल ने आखिरी स्टेज में भी मात दे डाली। उनकी जिंदादिली को सलाम भी है, क्योंकि मुहं के कैंसर की जंग में अपनी जुबान (जीभ) व जबड़े को खो देने के बाद भी उनके होठों पर जिंदगी के नगमे तारी रहते हैं। गायकी के हुनरमंद 55 वर्षीय संदीप ने इतना सबकुछ होने के बाद भी गाने का शौक नहीं छोड़ा। अब भी जब वह मंच पर खड़े होते हैं तो उनके जज्बे को देखकर लोग सलाम किए बिना नहीं रह पाते।

वर्ष 2011 से पहले संदीप ओएनजीसी की शान हुआ करते थे। ओएनजीसी में गायिकी के सभी अवॉर्ड उनकी झोली में आते थे। फिर एक दिन ऐसा भी आया, जब पता चला कि उन्हें मुहं का कैंसर है और वह भी आखिरी स्टेज में पहुंच चुका है। संगीत के बाद जिस सिगरेट को वह अपनी दिनचर्या का अभिन्न हिस्सा मानते थे, उसी ने उनके जीवन को अंधी दिशा में ला खड़ा कर दिया था।

संदीप ने जीवन की आस ही छोड़ दी थी। ऐसे में उनके बचपन के जिगरी दोस्त मनोज कुमार सरीन व परिवार के लोगों ने हौसला बढ़ाया। मनोज उन्हें लेकर फरीदाबाद के एक नामी अस्पताल में पहुंचे और उनका इलाज शुरू किया गया। पांच साल तक चले इलाज और कई स्तर की सर्जरी के बाद संदीप ने कैंसर को हरा डाला। हालांकि, इसकी कीमत उन्हें अपनी जुबान व जबड़े को खोकर चुकानी पड़ी। लंबे इलाज के बाद वह पूरी तरह टूट चुके थे। 

वह न ढंग से बोल पा रहे थे, न ही खा पा रहे थे। अच्छी बात रही कि बचपन के दोस्त मनोज कुमार ने उनका साथ नहीं छोड़ा। मनोज उनके हर व्यवहार को करीब से देख रहे थे। जब की कोई मधुर गीत बज रहा होता तो संदीप बेचैन हो उठते और बेबस से नजर आते। मनोज ने ठान ली कि दोस्त की इसी बेबसी को उनकी ताकत बनानी चाहिए। उन्होंने हौसला बढ़ाया और गाने को प्रेरित किया।

 

क्योंकि कैंसर के इलाज में उनके जीभ व जबड़े को भले ही हटा दिया गया था, मगर गले के साउंड बॉक्स नहीं हटाया गया था। साथ ही जीभ का बड़ा हिस्सा निकाले जाने के बाद भी कुछ हद तक बोल पाने के लिए एक बेस तैयार कर दिया गया था। जरूरत थी तो बस हौसला कर गाने का रियाज करने की। आखिर मनोज की मेहनत सफल रही और संदीप ने जल्द ही मंच संभालना शुरू कर दिया। 

गीत के कई शब्द भले ही साफ न निकल पाते हों, मगर हुनर के बल पर आज फिर से वह संगीत समारोह में जान फूंक देते हैं। संदीप गोयल ने अब अपने जीवन के बुरे दौर को पीछे छोड़ दिया है और जब भी वह किसी समारोह में गीत गाते हैं तो यह संदेश देना नहीं भूलते कि धूमपान और तंबाकू का प्रयोग जीवन के लिए कितना घातक है।

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