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उत्तर बिहार के कई जिलों में एईएस से बच्चों की मौत का सिलसिला जारी है। इस बार भी इस रहस्यमयी बीमारी ने भयावह रूप धारण कर लिया है। इसके लक्षण और बचाव के बारे में जानें इस खबर में......
पटना:-उत्तरी बिहार के कई जिलों में हर साल सामान्य बुखार या अन्य लक्षण से शुरू होनेवाला एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) ने इस साल भी भयावह रूप धारण कर लिया है। इससे साल दर साल होनेवाली मौत और दिव्यांगता, दोनों चुनौती है। लेकिन इस मामले में खामोशी और चुप्पी इसका समाधान नहीं। कम से कम नौनिहालों की मौत पर तो बिल्कुल ही नहीं।
इस साल पांच जून की रात से उग्र हुई यह जानलेवा एईएस बीमारी इस सीजन में अब तक 57 बच्चों को लील चुकी है, जबकि 143 बच्चों का इलाज चल रहा है। पिछले एक हफ्ते के भीतर चमकी बुखार से 36 बच्चों की मौत से स्वास्थ्य विभाग में हड़कंप मच गया है।
मौत को मात देने को इलाज कैसे
चिकित्सक बार-बार कह रहे जितना जल्दी इलाज, उतना जल्दी क्योर। पर, इलाज कहां और कैसे? स्थानीय स्तर पर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को तो पंगु बना कर रखा गया है। एईएस के लक्षण वाले मरीजों को तो वे बाहर से ही रेफर कर रहे। मां-बाप के पास शहर आने के सिवा और कोई विकल्प बचता नहीं। और, यहां आते-आते बहुत देर हो जाती है।
कुव्यवस्था का 'वायरस'
पिछले नौ वर्षों में एईएस ने जिले के सैकड़ों मासूमों को लील लिया। मौत दर मौत के बाद भी कभी हाय-तौबा नहीं मची। इससे बचाव की पुख्ता व्यवस्था भी नहीं हो सकी। अब भी काफी कुछ मौसम पर निर्भर। इलाज भी बीमारी के मिलते-जुलते लक्षण के आधार पर ही होता है।
बीमारी के कारणों का पता नहीं चल पाया तो जागरूकता को हथियार बनाया। मगर, गांवों की जो स्थिति है, उससे कहीं नहीं लगता कि विभाग अपना कार्य ठीक से कर रहा। मासूमों की मौत रोकने का दावा हवा-हवाई ही लगता है। बीमारी के वायरस का भले ही पता नहीं चल रहा, कुव्यवस्था के 'वायरस' जगह-जगह पसरे हैं।
2012 में बीमारी ने लिया भयावह रूप
वर्ष 2012 में बीमारी ने भयावह रूप लिया। तीन सौ से अधिक बच्चे बीमार पड़े। इनमें 120 की मौत हो गई। अगले दो वर्षों में मौत का सिलसिला कुछ थमा। मगर, संख्या फिर भी डराने वाली। वर्ष 2014 में तत्कालीन केंद्रीय मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने जिले का दौरा किया। तत्कालीन मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी भी आए।
बीमारी का बढ़ता दायरा
मासूमों की लीलने वाली इस बीमारी का दायरा बढ़ता ही जा रहा। उत्तर बिहार के जिलों के अलावा यह नेपाल की तराई वाले क्षेत्र में भी फैल गया है। जो जिले प्रभावित हैं, उनमें मुजफ्फरपुर, पूर्वी चंपारण, पश्चिम चंपारण, शिवहर, सीतामढ़ी व वैशाली शामिल हैं।
मौत और मरीजों का आंकड़ा
वर्ष मरीज मौत
2010 59 24
2011 121 45
2012 336 120
2013 124 39
2014 342 86
2015 75 11
2016 30 04
2017 09 04
2018 35 11
2019 110 57
अमेरिका और इंग्लैंड की टीम नहीं खोज पाई वायरस
एईएस वर्षों बाद भी रहस्यमय पहेली बनी हुई है। अमेरिका और इंग्लैंड के विशेषज्ञों की टीम भी इसके कारणों का पता नहीं लगा सकी। सीडीसी अमेरिका की टीम लक्षणों की पड़ताल करती रही, लेकिन वायरस का पता नहीं लगा पाई। टीम के प्रमुख सदस्य डॉ. जेम्स कई बार आए। कैंप कर पीडि़त बच्चों के खून का नमूना संग्रह किया।
जेई, नीपा, इंटेरो वायरस, चांदीपुरा व वेस्टनील वायरस आदि पर शोध हुआ। मगर, वायरस नहीं मिला। इधर, एनआइसीडी दिल्ली की टीम ने भी मिलते-जुलते लक्षण वाले वायरस पर शोध किया। पर, टीम बीमारी की तह तक नहीं पहुंच पाई।
अब तक जांच की यह रही स्थिति
-बीमार बच्चों के खून, पेशाब, रीढ़ के पानी का संग्रह किया गया नमूना।
-आरएमआरआइ पटना, पुणे, सीडीसी दिल्ली और अटलांटा की टीम ने नमूना संग्रह कर शोध किया। मगर, रिपोर्ट में बीमारी का कारण पता नहीं चल सका।
पीड़ित को तेज बुखार के साथ बेहोशी
एसकेएमसीएच के शिशु रोग विभागाध्यक्ष डॉ. गोपाल शंकर सहनी के शोध में यह बात सामने आई थी कि जब गर्मी 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक व नमी 70 से 80 प्रतिशत के बीच होती है तो इस बीमारी का कहर बढ़ जाता है। पिछले कुछ दिनों से मौसम की चाल उसी हिसाब से है। बीमारी में बच्चे को तेज बुखार के साथ झटके आते हैं। हाथ-पैर में ऐंठन होती है, वह देखते-देखते बेहोश हो जाता है।
एईएस के लक्षण :
-तेज बुखार
-शरीर में ऐंठन
-बेहोशी
-दांत बैठना
-शरीर में चमकी आना
-चिकोटी काटने पर कोई हरकत नहीं
-सुस्ती व थकावट
लक्षण दिखे तो ये करें :
-तेज बुखार होने पर पूरे शरीर को ठंडे पानी से पोछें, मरीज को हवादार जगह में रखें।
-शरीर का तापमान कम करने की कोशिश करें।
-यदि बच्चा बेहोश न हो तो ओआरएस या नींबू, चीनी और नमक का घोल दें।
-बेहोशी या चमकी की अवस्था में शरीर के कपड़ों को ढीला करें।
-मरीज की गर्दन सीधी रखें।
लक्षण दिखे तो ये ना करें :
-मरीज को कंबल या गरम कपड़े में न लपेटें।
-बच्चे की नाक नहीं बंद करें।
-बेहोशी या चमकी की स्थिति में मुंह में कुछ भी न दें।
-झाड़-फूंक के चक्कर में समय न बर्बाद करें, नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र में ले जाएं।
सबसे पहले तापमान मेंटेन करते रहें
एसकेएमसीएच में शिशु रोग विभागाध्यक्ष डॉ. गोपाल शंकर साहनी के अनुसार, ऐसे मरीज के आते ही वार्ड के मुताबिक उसके शरीर का तापमान मेंटेन करते हैं। हाई फीवर को कम करने की दवा दी जाती है। इसके बाद लक्षण के आधार पर इलाज तय होता। इस बीच जांच के लिए कुछ सैंपल भी लिए जाते हैं।
क्या है चमकी बुखार या एईएस
सच तो यही है कि कई अनुसंधान के बाद भी न तो इस बीमारी के कारण का पता चल सका और न ही इससे बचाव की पुख्ता व्यवस्था हो सकी। बीमारी के मिलते-जुलते लक्षण के आधार पर ही इलाज होता है। इस कारण इसका नाम एईएस (एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रॉम) या इंसेफेलौपैथी दिया गया। हालांकि स्थानीय भाषा में इस बीमारी को चमकी बुखार कहा जाता है।
करें दुआ हो बारिश, तभी बचेंगे 'वारिस'
पिछले 10 वर्षों में एईएस ने जिले के सैकड़ों मासूमों की जिंदगी छीन ली। कई परिवार बिखर गए। जिसने मौत को मात दी, उसे दिव्यांगता ने घेरा। फिर, जिंदगी भर का दर्द। हर साल अप्रैल से लेकर जून तक उच्च तापमान और नमी की अधिकता के बीच यह बीमारी भयावह रूप लेती रही।
इस अंतराल में बारिश होती तो थोड़ी राहत दिख जाती। नहीं तो नौनिहालों की मौत का सिलसिला...। डॉक्टर बताते हैं कि तापमान गिरने से बीमारी का प्रकोप कम होता है। पिछले कई वर्षों के आंकड़े का हवाला देते हैं, रिकॉर्ड दिखाते हैं।
बात सही भी है कि जिस साल अच्छी बारिश हुई, बीमारी दबी रही। मौसम के तल्ख होते ही, इसका उग्र रूप। बच्चे इस बीमारी की चपेट से उस दिन से बाहर आ जाते हैं, जिस दिन बारिश की बूंदें गिर जाती हैं। ये बूंदें बच्चों के लिए अमृत से कम नहीं। अब तो एसकेएमसीएच व अन्य अस्पतालों में पीडि़त बच्चों का इलाज कर रहे चिकित्सक भी बारिश को ही बड़ा सहारा मान रहे।
नियमित अंतराल में बारिश से राहत
आंकड़े भी बता रहे कि जिस वर्ष अप्रैल से जून तक बारिश नहीं हुई, अधिक बच्चों की मौत हुई। 2012 में 336 बच्चे प्रभावित हुए। इनमें 120 की मौत हो गई। वहीं, 2014 में प्रभावितों की संख्या 342 पहुंच गई। इनमें 86 की मौत हो गई।
पिछले तीन वर्षों से इन अवधि में हल्की ही सही, नियमित अंतराल में बारिश होने से कम बच्चों की मौत हुई। 2016 व 17 में चार-चार तो 2018 में 11 बच्चों की मौत हुई। इस वर्ष बारिश नहीं के बराबर हुई। यही कारण रहा कि अब तक 44 मासूमों की मौत हो चुकी है।
सीएम ने भी जताई गहरी चिंता
सूबे के सीएम नीतीश कुमार ने भी सोमवार को इस मामले पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव को इसपर पूरा ध्यान देने की नसीहत दी। सीएम ने कहा था कि बच्चों की मौत पर सरकार चिंतित है और इससे कैसे निपटा जाए इस पर काम चल रहा है?
राज्य स्वास्थ्य मंत्री ने दी सफाई, कहा-एईएस से मौत नहीं
बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने इन मौतों का कारण एईएस नहीं हाईपोगलेसिमिया बताया है। मंगल पाण्डेय ने सोमवार को कहा था कि अभी तक 11 बच्चों के मौत की पुष्टि हुई है लेकिन इसमें एईएस यानि इनसेफेलाइटिस से अभी तक किसी बच्चे की मौत नहीं हुई है। उन्होंने कहा कि 11 में से 10 बच्चों की मौत हाईपोगलेसिमिया हुई है जबकि एक बच्चे की मौत जापानी इनसेफेलाइटिस से हुई है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री का अजीबोगरीब बयान
केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने कहा, मुजफ्फरपुर में बच्चों की मौत दुखद घटना है। चुनाव की वजह से अधिकारी चुनाव में व्यस्त हो गए थे, जिसकी वजह से जागरूकता की कमी रह गई। अगर बिहार सरकार केंद्र सरकार से मदद मांगेगी तो केंद्र सरकार पूरी मदद करेगा।