जलकर ख़ाक़ हुए रोहिंग्या कैंप से उठता सवालों का धुआं

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RGANews
दिल्ली में ओखला बैराज से मदनपुर खादर की तरफ़ जाने वाली सड़क रविवार को अमूमन खाली रहती है मगर आज यहां कुछ ज़्यादा ही चहल-पहल थी।

यहां पर साल 2012 से बसे रोहिंग्या शरणार्थियों की बस्ती की ओर जाने वाली सड़क पर पुलिस का बैरिकेड लगा हुआ था और साथ में कुछ पुलिसकर्मी भी तैनात थे।

यहां से पैदल थोड़ा आगे बढ़ने पर प्लास्टिक के जलने की गंध आ रही थी। कुछ क़दम आगे चलने पर पानी का टैंकर खड़ा नजर आया, जिससे कुछ बच्चे पानी भर रहे थे।

पास पहुंचकर देखा कि दाहिनी ओर 50 गुणा 50 फुट के प्लॉट पर शामियाने के नीचे क़रीब 100 लोग बैठे हुए थे, जिनमें ज़्यादातर महिलाएं, बच्चे और बुज़ुर्ग थे।

अधिकतर लोग ख़ामोश थे और साफ़ तौर पर विचलित नज़र आ रहे थे। बस नन्हे-मुन्ने बच्चे खाने की चीज़ों को हाथ में लिए बेफ़िक्र होकर इधर-उधर दौड़ रहे थे।

यहां से कुछ ही आगे पुलिस ने सड़क को बैरिकेड टेप से बंद किया हुआ था, मगर मीडियाकर्मियों को आगे तक जाने की इजाज़त थी, क्योंकि जहां जलकर राख हो चुकी झुग्गियां सड़क के बाईं ओर है।

वहां पहुंचने पर नज़र आया कि आग कितनी भयंकर रही होगी। कोई नहीं कह सकता कि यहां पर कल रात 230 से ज़्यादा लोगों की रिहाइश थी।

सबकुछ ख़ाक में मिल चुका है। झुग्गियों का नामो-निशां तक बाक़ी नहीं रहा है। कहीं-कहीं पर सिर्फ़ धातु के सामान रह गए हैं, जैसे कि कूलर के खोल, बाल्टियां, जले हुए बर्तन और छोटे सिलिंडर, जिन्हें आग नहीं जला पाई। राहत की बात यह रही कि किसी को कोई गंभीर चोट नहीं आई है।

आग रात से तीन बजे के क़रीब लगी थी और सुबह तक उस पर काबू भी पा लिया गया था, मगर दोपहर एक बजे कहीं-कहीं से धुआं उठ रहा था।

भयंकर आग

सामने के एक अहाते के दरवाज़े पर खड़ी एक महिला बहुत ही उदास निगाहों से राख के ढेर की ओर देख रही थी। कुछ ही पलों में वह लगभग बिलखती हुई वहां से उस ओर चली गई, जहां पर अन्य सभी रोहिंग्या शरणार्थी बैठे हुए थे।

सामने के उस अहाते के अंदर बैठी महिलाओं से बात की। यहां पर हिंदू परिवार रहते हैं। इन महिलाओं ने बताया कि आग से खूब ऊंची लपटें उठ रही थीं और अगर सामने पक्की दीवार न होती तो उनकी झोपड़ीनुमा रिहाइश भी आग पकड़ लेती।

यहां रहने वाली किशना बताती हैं, "रात को सभी सो रहे थे तो चीखने-चिल्लाने की आवाज़ें सुनाई दीं। लगा कि शायद सामने ये लोग आपस में लड़ रहे होंगे। तभी बाहर देखा कि काला धुआं और ऊंची लपटें उठ रही थीं।

''हमें लगा कि हमारे घर भी जल जाएंगे। कुछ सिलेंडर भी फटे।एक सिलेंडर फटा तो उड़कर नाले में गिरा। हमें लगा कि हम भी नहीं बचेंगे। बगल के नल से पानी भरकर तिरपाल पर फेंकते रहे।

आग कितनी तेज़ रही होगी, इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि सड़क के दूसरी ओर खड़ी दो गाड़ियों के पिछले हिस्से पिघल चुके थे और लगभग 60-70 फुट दूर पीपल के पेड़ के पत्ते तक झुलस चुके थे।

इस जगह से वापस मुड़कर शामियाने तले बैठे लोगों के पास पहुंचा तो एक बुज़ुर्ग महिला कुछ कहने लगीं।इतने में एक लड़का वहां आया, जिसने कहा कि मैं इनका बेटा हूं और ये बता रही हैं कि आग ने हमारा सबकुछ छीन लिया है।

आग के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा, "रात लगभग तीन बजे जब किसी को आग की तपिश महसूस हुई तो वह चिल्लाया। उस समय सभी सो रहे थे। इसी से उन्हें पता चला कि आग लगी है।

आग कैसे लगी, "किसी को नहीं पता. इस तरफ़ किसी का ध्यान ही नहीं गया. सब पागल से हो गए थे, बच्चों को बचाने के लिए भाग रहे थे। बस्ती में सब जलकर राख हो गया है।

घटनास्थल पर राहत कार्य में शामिल सामाजिक कार्यकर्ता उबैस सैनुलाब्दीन बताते हैं कि रोहिंग्या शरणार्थियों को शक़ है कि आग बाहर से किसी ने लगाई है।

वह कहते हैं, "रात लगभग तीन बजकर दस मिनट पर कोने में आग लगी। रिफ्यूजी कहते हैं कि किसी ने बाहर से आग लगाई। इसके बाद सभी रिफ्यूजी बाहर आ गए. समय पर पुलिस और फायरब्रिगेड को सूचना दे दी गई थी मगर वे समय पर नहीं पहुंचे."

शरणार्थी इस बात को खुलकर नहीं बोल रहे। "लगभग दस परिवारों ने कहा कि बाहर से लोग आए थे ।मगर वे आधिकारिक रूप से बोलने को तैयार नहीं हैं। उन्हें डर है कि बोलने के बाद दिक्कत आएगी। वे कहते हैं कि हम कहां जाएंगे।

 रोहिंग्या शरणार्थियों के पास बाक़ायदा संयुक्त राष्ट्र का कार्ड है और लंबा वीज़ा भी है. मगर इस आग में वीज़ा रिकॉर्ड के साथ-साथ अन्य दस्तावेज़ भी जल गए हैं।

वह कहते हैं, "सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों से पूछा है कि स्टडी करके बताएं कि रोहिंग्या शरणार्थियों की हालत कैसी है। इसमें पहला कैंप कालिंदी कुंज है और यहां सर्वे हो ही रहा है।

क्या कहती है पुलिस

इस मामले में पुलिस का कहना है कि उसके पास अभी तक ऐसी कोई शिकायत नहीं आई है कि आग किसी शख़्स ने लगाई है।

मौके पर मौजूद एक पुलिसकर्मी ने जल चुके बिजली के तारों की तरफ़ इशारा करते हुए कहा कि हो सकता है कि आग शॉर्ट सर्किट से लगी हो।

वहीं इस मामले पर डीसीपी दक्षिण-पूर्व चिन्मय बिस्वाल ने कहा, "आग लगने की घटना पर संबंधित धाराओं में लापरवाही का मामला दर्ज कर रहे हैं। एफ़एसल टीम और बिजली विभाग ने घटना स्थल की जांच की है। फ़ायर डिपार्टमेंट भी जांच करके रिपोर्ट जमा करेगी कि आग कैसे लगी. सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए जांच की जाएगी."

हालांकि घटनास्थल पर राहत कार्य में लगे कुछ सहायता समूहों के सदस्यों का कहना था पुलिस ने दस बजे के बाद यहां आकर बैरिकेडिंग की, उससे पहले कोई भी आग वाली जगह जा रहा था और वहीं से रिपोर्टिंग भी की जा रही थी।

सुबह की कुछ तस्वीरें भी मिली हैं, जिसमें रोहिंग्या शरणार्थी आग बुझ जाने के बाद राख में बचा-खुचा सामान तलाशते नज़र आ रहे हैं।

ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि इस देरी की वजह से आग लगने के असली कारणों का पता भला कैसे लग पाएगा।

बहरहाल, इस बीच रोहिंग्या शरणार्थी कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं हैं। वे आनन-फानन में बच्चों को साथ लेकर बाहर भाग आए। कपड़े भी वही हैं जो पहने हुए हैं। बैंक अकाउंट न होने के कारण वे बचत का पैसा भी घर के अंदर रखा करते थे, वो भी जल गया है।

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