हिमाचल की इस झील में अर्पित होता है लाखों का सोना-चांदी पर निकालने के बारे में कोई सोचता भी नहीं

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मंडी जनपद के आराध्य देव कमरुनाग के दर हर वर्ष हजारों भक्‍त लाखों रुपये के आभूषण व नकदी अर्पित करते हैं लेकिन इसे निकालने के बारे में कोई सोचता तक नहीं।...

गोहर/मंडी:-मंडी जनपद के आराध्य देव कमरुनाग के दर हर वर्ष हजारों भक्‍त लाखों रुपये के आभूषण व नकदी अर्पित करते हैं, लेकिन इसे निकालने के बारे में कोई सोचता तक नहीं। शनिवार को मंदिर में सरनाहुली मेला मनाया गया। मन्नत पूरी होने पर हजारों लोगों ने कमरुनाग झील में लाखों रुपये के स्वर्ण आभूषण व नकदी विसर्जित की। चच्योट तहसील की ज्यूणी घाटी की हसीन वादियों पर स्थित कमराह नामक स्थान पर मेला मनाया गया। लोग इस मेले में हाजिरी भरने मीलों पैदल चलकर पहुंचे। इस पवित्र स्थान तक पहुंचने के लिए सड़क की व्यवस्था खुंडा तक हो गई है। यहां से मंदिर करीब एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सड़क के अलावा मंदिर पहुंचने के लिए सरोआ, रोहांडा तथा देवीदढ़ से होकर पैदल सफर करना पड़ता है।

लोगों ने इस तीर्थस्थान पर मेले से एक दिन पूर्व यहां ठहरकर रातभर अलग-अलग समूहों में अलाव जलाकर भजन-कीर्तन किया। सुबह होते ही देव कमरुनाग की पूजा-अर्चना शुरू हो गई। इसमें हजारों लोगों ने देवता को मन्नत रूपी भेंट अर्पित की। लोग अपने व परिवार की सुख-समृद्धि के लिए मन्नत मांगकर सोने-चांदी के आभूषणों को बांधे के रूप में रखते हैं। इतना ही नहीं इससे पूर्व के इतिहास में लोग मन्नत को देवता के चरणों में बकरे को बांधे के रूप में रखकर देव कमरुनाग से मनवांछित फल की कामना किया करते थे। लेकिन हाईकोर्ट के आदेशानुसार इस परंपरा को बंद कर दिया गया है। अब यहां बकरों के स्थान पर नारियल, फल-फूल, सोने-चांदी के आभूषण, सिक्के व भारतीय करंसी के नोटों को झील में विसर्जित किया जाता है। हालांकि भारतीय करंसी के नोट झील में न डालने के लिए सूचना पट्ट भी लगाया गया है, लेकिन आस्था के आगे सूचना पट्ट बौना नजर आता है।

पशु बलि रोकने के लिए पुलिस कर्मी तैनात

पुलिस ने सुरक्षा को लेकर पुख्ता इंतजाम किए थे। पशु बलि रोकने के लिए पुलिस जवान तैनात किए गए। शरारती तत्वों पर सीसीटीवी कैमरों की मदद से नजर रखी गई।

झील में आभूषण देख डोल गया था अंग्रेज अधिकारी का मन

1911 में सीसी गारवेट मंडी राज्य के अंग्रेज अधिकारी ने कमरुनाग की गाथा सुनने पर इस क्षेत्र का भ्रमण किया था। उसने देखा कि लोग बहुमूल्य वस्तुएं झील में डाल रहे हैं। झील में वस्तुएं डालते देख अंग्रेज अधिकारी दंग रह गया तथा सोचने लगा कि लोग व्यर्य में ही इतना धन व आभूषण झील में फेंकते हैं, क्यों न इस झील से सारा धन निकालकर राज्य कोष में डाल कर इसका उपयोग गरीबों के हित में किया जाए। अंग्रेज अधिकारी की बात राजा ने भी मान ली, लेकिन पुजारी व भक्त सहमत नहीं हुए तथा इस राय को अस्वीकार कर दिया। विरोध करने पर राजा व अंग्रेज अधिकारी अपने कार्यकर्ताओं सहित झील की ओर चल पड़े। झील की तरफ बढ़ते ही भयंकर बारिश शुरू हो गई। बारिश इतनी तेज हुई कि उन्हें मजबूरन चच्योट तहसील के खलाहर नामक स्थान पर ही रुकना पड़ा। वहां अंग्रेज अधिकारी ने फल खाया और वह बीमार पड़ गया और उसे दस्त लग गए। स्थानीय लोगों ने जब उन्हें कमरुनाग की शक्ति के बारे में जानकारी दी तो वे घबरा गए। अंग्रेज अधिकारी सीसी गारवेट को अपनी गलती का अहसास हो गया।

महाभारत के नायक भी रहे हैं देव कमरुनाग

प्राचीन भारतीय कथा महाभारत के अनुसार श्रीकृष्ण ने रतनयक्ष योद्धा को मारकर उसका धड़ युद्ध क्षेत्र में अपने रथ की भुजा से टांग दिया था, ताकि वह महाभारत का युद्ध देख सके लेकिन हुआ यूं कि जिस ओर भी रजयक्ष का चेहरा घूमता कौरवों व पांडवों की सेना डर के मारे उसके हुंकार से भागने लग जाती। इस पर कृष्ण ने उनसे प्रार्थना की कि वे युद्ध में एक ही दिशा की ओर तटस्थ रहें ताकि पांडव युद्ध में जीत जाएं। श्रीकृष्ण ने रतनयक्ष को आश्वासन दिया कि वे पांडवों के पूज्य ठाकुर रहेंगे तो इस बात पर रतनयक्ष मान गए। बाद में वही हुआ और पांडव युद्ध जीतने के बाद उसे करंडू यानी बांस की पिटारी में उठाकर हिमालय की ओर ले गए। मंडी जिला के नलसर में पहुंच कर वहां घोड़ों की ध्वनि के कारण पांडवों को एकांत स्थान में ले जाने का आग्रह किया। अंतत: वे उन्हें कमरुघाटी में ले गए और वहां एक भेड़पालक की सादगी से रतनयक्ष प्रभावित हुआ और वहीं ठहरने की जिद की। रतनयक्ष ने उस भेड़पालक व पांडवों को बताया कि वह इसी प्रदेश में त्रेतायुग में पैदा हुए थे और मैंने एक नाग भक्तिनी नारी के गर्भ में नौ पुत्रों के साथ जन्म लिया था। हमारी मां हमें एक पिटारी में रखती थी और एक दिन पिटारा यह जानकर अतिथि महिला के हाथ से गिर गया कि इसमें सांप के बच्चे हैं और हम आग में गिर गए और जान बचाने के लिए झील के किनारे कुंवर घास यानी झाड़ियों में छिपे रहे। अंत में माता ने मुझे वहां ढूंढ लिया तो मेरा नाम कमरूनाग रख दिया। मैं वही कमरुनाग इस युग में रतनयक्ष बन गया हूं।

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