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भाजपा की सदस्यता मुफ्त में है। बाकी दलों की सदस्यता के लिए भुगतान करना होता है। वामदलों की सदस्यता मुश्किल से मिलती है। राजद जदयू व कांग्रेस की सदस्यता को भी जानें इस खबर में।...
पटना:- सत्तारूढ़ भाजपा की सदस्यता यूं ही नहीं बढ़ रही है। बाकी दलों की सदस्यता के लिए भुगतान करना होता है। भाजपा की सदस्यता मुफ्त में है। वामदलों की सदस्यता मुश्किल से मिलती है। शुल्क अधिक है और सदस्यता के लिए काफी जांच परख भी होती है। राज्य में इन दिनों प्रमुख दलों की ओर से सदस्यता अभियान चलाया जा रहा है।
भाजपा में ऐसे बनाये जाते हैं सक्रिय सदस्य
भाजपा आम लोगों को मुफ्त में सदस्य बनाती है, लेकिन सक्रिय सदस्य बनने के लिए 200 रुपये जमा करने होते हैं। 25 साधारण सदस्य बनाने वाले को ही सक्रिय सदस्य बनाया जाता है। किसी भी तरह के पदधारण के लिए सक्रिय सदस्य होना जरूरी है। सदस्यता अभियान के प्रभारी राधामोहन शर्मा के मुताबिक इस समय राज्य में पार्टी के सक्रिय सदस्यों की संख्या 80,200 है। इसे सवा लाख तक पहुंचाने का लक्ष्य है। यह लक्ष्य हासिल हो जाए तो राज्य में भाजपा के साधारण सदस्यों की संख्या 31-32 लाख तक पहुंच जाएगी।
जानें जदयू के बारे में
जदयू का सदस्यता अभियान अभी चल रहा है। साधारण सदस्य के लिए शुल्क पांच रुपये है। जदयू में भी 25 साधारण सदस्य बनाने वाले को सक्रिय सदस्य बनाना पड़ता है। नवीकरण में भी यही प्रक्रिया चलती है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तक इसी प्रक्रिया से सक्रिय सदस्य बनते हैं। मौजूदा अभियान में जदयू के सदस्यों की संख्या 50 लाख तक ले जाने का लक्ष्य है। यह पूरे देश के लिए है। लक्ष्य हासिल हो गया तो उसके सक्रिय सदस्यों की संख्या दो लाख हो जाएगी। यह किसी दल के बड़े आकार का सूचक है।
राजद का सदस्यता अभियान
सदस्यता की जदयू वाली प्रक्रिया ही राजद में लागू है। पांच रुपया साधारण सदस्यता शुल्क और 25 सदस्य बनाने के बाद सक्रिय सदस्यता। पार्टी के नेता चितरंजन गगन कहते हैं कि अभी राजद के साधारण सदस्यों की संख्या 30 लाख है। जुलाई-अगस्त में सदस्यता अभियान शुरू होगा। कोशिश होगी कि साधारण सदस्यों की संख्या 50 लाख पार कर जाए। राजद की यह सदस्य संख्या बिहार के अलावा दूसरे राज्यों को जोड़कर है।
कांग्रेस के हैं 16 लाख सदस्य
किसी को यह जानकर ताज्जुब होगा कि प्रदेश कांग्रेस के रिकार्ड में 16 लाख सामान्य सदस्य दर्ज हैं। यह आंकड़ा 2014 का है। उसके बाद अभियान नहीं चला। कांग्रेस की सदस्यता किसी भी समय हासिल की जा सकती है। इसमें गड़बड़ी की भी गुंजाइश है। सदस्यता की रसीद दो हिस्से में बंटी रहती है। एक हिस्सा सदस्य के पास रह जाता है। दूसरा हिस्सा शुल्क के साथ कार्यालय में जमा हो जाता है। गड़बड़ी इसी दूसरे हिस्से में होती है। आरोप है कि पद और टिकट चाहने वाले नेता जेब से सदस्यता शुल्क जमा करा देते हैं। लेकिन, रसीद के दूसरे हिस्से की प्रति नहीं जमा करते। लिहाजा, पार्टी कोष में धन तो जमा हो जाता है, सरजमीन पर उसके सदस्य नजर नहीं आते हैं।
भाकपा की सदस्यता सबसे महंगी
सबसे पुरानी कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता सबसे महंगी है। पहली बार सदस्य बनने में 25 रुपये का भुगतान करना पड़ता है। सदस्यता शुल्क पांच रुपये ही है। अन्य शुल्क हैं:-शिक्षा शुल्क-दो रुपये, केंद्रीय पार्टी कोष-सात रुपये, विशेष कोष-10 रुपये और लाल झंडा एकजुटता कोष-एक रुपया। साल भर बाद नवीकरण के दौरान सदस्यों से लेवी लिया जाता है। श्रमिकों से एक दिन की न्यूनतम मजदूरी और संगठित क्षेत्र के कामगारों से आमदनी का एक फीसदी हिस्सा। राज्य में भाकपा सदस्यों की संख्या 80 हजार है। माकपा की सदस्य संख्या 25 हजार है। सदस्यता शुल्क है पांच रुपये।