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RGA News, भोपाल
मध्यप्रदेश के 152 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में डॉक्टर नहीं, सीएचसी में 1236 की जरूरत, पर सिर्फ 248 विशेषज्ञ।
भोपाल। प्रदेश सरकार लोगों को स्वास्थ्य का अधिकार (राइट टू हेल् देने की तैयारी कर रही है। इसका मकसद प्रदेश के लोगों को तय समय पर संपूर्ण इलाज मिल जाए। ऐसी व्यवस्था की जाएगी कि ओपीडी में समय पर इलाज मिले। तय समय के भीतर जांच रिपोर्ट मिल जाए।
यह सब तभी संभव है जब इलाज करने वाले यानी डॉक्टर और जांच करने वाले लैब टेक्नीशियन छोटे-छोटे से छोटे अस्पतालों में पदस्थ हों। मौजूदा स्थिति में प्रदेश के 1171 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों (पीएचसी)में 152 में डॉक्टर ही नहीं हैं। एक पीएचसी से करीब 30 हजार की आबादी जुड़ी रहती है।
पीएचसी से भी बुुरे हाल सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी) के हैं। इन अस्पतालों में चार विशेष्ाज्ञ व सामान्य ड्यूटी के लिए मेडिकल ऑफिसर के पद होते हैं। प्रदेश की कुल 330 सीएचसी में 22 बिना डॉक्टर की हैं। जरूरत 1236 विशेषज्ञों की है जबकि पदस्थ महज 248 हैं। सीएचसी में विशेषज्ञों की कमी के चलते सबसे बड़ी अड़चन सीजर डिलिवरी में आ रही है। प्रदेश सिर्फ 90 अस्पतालों में सीजेरियन डिलिवरी हो पा रही है।
एनेस्थीसिया, शिशु रोग व गायनी में एक भी डॉक्टर के नहीं होने पर सीजर नहीं किया जा सकता। देश में सबसे ज्यादा शिशु मृत्यु दर (47 प्रति हजार) होने के बाद भी यह स्थिति है। ऐसे में मरीजों को इलाज के लिए सैकड़ों किमी चलकर जिला अस्पताल या मेडिकल कॉलेज जाना होता है या फिर निजी अस्पतालों में इलाज कराना पड़ता है।
केन्द्र सरकार ने कुछ चिन्हित वर्ग के लोगों के नि:शुल्क इलाज के लिए 'आयुष्मान भारत" योजना शुरू की है। इसमें 473 बीमारियों को सरकारी अस्पतालों के लिए आरक्षित किया गया है, पर डॉक्टर, जांच सुविधाएं व अन्य संसाधन नहीं होने की वजह से मरीज परेशान हो रहे हैं। मौजूदा प्रदेश सरकार इसकी जगह 'महाआयुष्मान" योजना लाने की तैयारी कर रही है। इसमें प्रावधान सरल नहीं किए गए तो आम लोगों की दिक्कत हल हो पाना मुश्किल है।
पीएचसी व उप स्वास्थ्य केन्द्र में स्टाफ
पद जरूरत स्वीकृत पदस्थ
डॉक्टर 1171 1771 1112
उप स्वास्थ्य केन्द्रों में एएनएम 11192 11886 10783
उप स्वास्थ्य केन्द्रों में हेल्थ वर्कर (पुरुष) 11192 4260 3248
पीएचसी में स्वास्थ्य सहायक (महिला) 1171 1171 1314
पीएचएसी में स्वास्थ्य सहायक (पुरुष) 1171 1171 543
पीएचसी/सीएचसी में नर्सिंग स्टाफ 3334 4624 330
उप स्वास्थ्य केन्द्र
कुल उप स्वास्थ्य केन्द्र - 11192
बिना एएनएम के- 1018
पीएचसी की स्थिति
कुल पीएचसी 1171
बिना डॉक्टर 152
बिना फार्मासिस्ट 281
बिना लैब टेक्नीशियन 525
चार डॉक्टर पदस्थ 25
तीन डॉक्टर पदस्थ 71
दो डॉक्टर पदस्थ 301
एक डॉक्टर पदस्थ 614
सीएचएसी की स्थिति
कुल सीएचसी 330
पद जरूरत स्वीकृत पदस्थ
सर्जन 309 309 75
स्त्री व प्रसूति रोग विशेषज्ञ 309 309 69
फिजीशियन 309 309 45
शिशु रोग विशेषज्ञ 309 309 59
कुल विशेषज्ञ 1236 1236 248
जनरल ड्यूटी डॉक्टर .... 1854 881
नोट: सभी आंकड़े केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के रूरल हेल्थ स्टेटैटिक्स (आरएचएस) 2018 के अनुसार हैं।
प्रदेश में डॉक्टरों की इतनी कमी
पद स्वीकृत रिक्त
विशेषज्ञ 3278 2249
मेडिकल ऑफीसर 4895 1677
दंत चिकित्सक 162 43
ज्वाइन करने के बाद नौकरी छोड़कर चले जाते हैं
2010 में मेडिकल ऑफीसर्स के 1090 पदों के विरुद्ध 570 डॉक्टर ही मिले थे। इसके बाद करीब 200 डॉक्टर पीजी करने चले गए या फिर मनचाही पोस्टिंग नहीं मिलने पर नौकरी छोड़ दी। 2013 में 1416 पदों पर भर्ती में 865 डॉक्टर मिले, लेकिन करीब 200 ने ज्वाइन नहीं किया और उतने ही नौकरी छोड़कर चले गए। यानी करीब 400 डॉक्टर ही मिले। इसी तरह से 2015 में 1271 पदों में 874 डॉक्टर मिले हैं। इनमें भी 218 डॉक्टरों ने ज्वाइन नहीं किया। कुछ पीजी करने चले गए और कुछ ने नौकरी छोड़ दी। करीब 400 डॉक्टर ही मिल पाए। 2015 में ही 1871 पदों के भर्ती में वेटिंग वालों को कई बार मौका मिलने के बाद करीब 800 पद ही भरे। अब 1398 पदों के लिए पीएससी से भर्ती की जा रही है। ज्वाइन करने के बाद मौका मिलने पर डॉक्टर पीजी डिग्री करने चले जाते हैं या फिर सरकारी अस्पतालों से अनुभव हासिल करने के बाद बड़े शहरों के निजी अस्पतालों में ज्वाइन कर लेते हैं। काउंसिलिंग के बाद इन डॉक्टरों की पहली पोस्टिंग दूरस्थ अस्पतालों में जाती है। ऐसे जैसे ही अच्छा अवसर मिलता है। वह नौकरी छोड़ देते हैं।
छह साल बाद सुधर सकती है स्थिति, बशर्ते डॉक्टरों का पलायन न हो
पिछले साल तक प्रदेश के कुल छह सरकारी मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस 800 सीटें थी। 2018-19 में चार नए मेडिकल कॉलेज खुले। 2019-20 में तीन और नए सरकारी मेडिकल कॉलेज खुले। मौजूदा स्थित में इन 13 कॉलेजों व एक सरकारी डेंटल कॉलेज मिलाकर में एमबीबीएस व बीडीएस की 1920 सीटें हैं। 2021-22 तक 2951 सीटें करने की तैयारी है। अभी हर साल 800 एमबीबीएस डॉक्टर निकल रहे हैं। 2026-27 तक हर साल 2951 डॉक्टर तैयार होंगे। इसमें बड़ी चुनौती यह है कि यहां पढ़ाई करने के बाद डॉक्टर दूसरे राज्यों में नौकरी के लिए न चले जाएं। मौजूदा स्थिति में हर साल करीब 800 डॉक्टर मप्र मेडिकल काउंसिल से एनओसी लेकर दूसरे राज्यों में जा रहे हैं।
इनका कहना है
'राइट टू हेल्थ" में कई प्रावधान किए जा रहे हैं। सुपरस्पेशलिस्ट डॉक्टरों से राय ली जा रही है कि स्वास्थ्य सेवाओं को कैसे बेहतर किया जा सकता है। पीएससी से 2800 डॉक्टर इसी साल मिलने वाले हैं, जिससे पीएचसी, सीएचसी में डॉक्टरों की कमी दूर जो जाएगी। पैरामेडिकल स्टाफ के पद भी भरे जा रहे हैं।
तुलसी सिलावट स्वास्थ्य मंत्री
'राइट टू हेल्थ" सरकार की अच्छी योजना है। इसके लागू होने के बाद अस्पतालों में मरीज बढ़ेंगे। ज्यादा मरीज होने से मरीजों के साथ न्याय नहीं हो पाता। दूसरे राज्योंं के मुकाबले मप्र में वेतन कम है। डॉक्टरों में असुरक्षा की भावना है, इसलिए वह ग्रामीण क्षेत्र के अस्पतालों में जाना नहीं चाहते। पीएससी से भर्ती में एक साल लग जाते हैं। सरकार को चाहिए कि मेडिकल कॉलेजों से निकलने वाले डॉक्टरों को सीधे नियुक्ति दे ।
डॉ. देवेन्द्र गोस्वामी अध्यक्ष, मप्र मेडिकल ऑफिसर्स एसो.
जब तक डॉक्टरों को सुविधाएं, अच्छा वेतन, सुरक्षा व्यवस्था नहीं देंगे डॉक्टर ग्रामीण क्षेत्र के अस्पतालों में नहीं जाएंगे। ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले डॉक्टरों को बच्चों की शिक्षा में भी दिक्कत आती है। 'राइट टू हेल्थ" लागू करने के पहले सरकार को डॉक्टरों को भरोसे में लेना होगा।
डॉ. सचेत सक्सेना स्टेट, प्रेसीडेंट जूनियर डॉक्टर्स एसो.