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RGA News, मेरठ
किन्नू को पश्चिम उत्तर प्रदेश की धरती रास नहीं आई। यहां ना तो फलों का आकार बढ रहा है व उनमें गंध नहीं है।...
मेरठ:- किन्नू को पश्चिम उत्तर प्रदेश की धरती रास नहीं आई। यहां ना तो फलों का आकार बढ़ा और ना ही इसका रंग बदला। किन्नू की खेती के लिए अर्द्ध शुष्क वायु जरूरी है। न तो ज्यादा पाला और न ही अधिक गर्मी की जरूरत होती है। सिंचाई का उचित प्रबंधन भी होना चाहिए। किन्नू को न्यूनतम 13 और अधिकतम 37 डिग्री तापमान की जरूरत होती है।
चिकनी दोमट या तेजाबी मिट्टी की होती है आवश्यकता
पश्चिमी उत्तर प्रदेश जलवायु का यह क्रम नहीं पाया जाता। इसके लिए रेतीली-दोमट, चिकनी दोमट, गहरी-चिकनी दोमट या तेजाबी मिट्टी की जरूरत होती है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यह भी नहीं मिलती। फसल के उचित विकास के लिए मिट्टी का पीएच तापमान 5.5 से 7.5 होना चाहिए। आइआइएफएसआर में शोध हुआ फेल भारतीय कृषि प्रणाली अनुसंधान संस्थान में चल रहे शोध में किन्नू की फसल उगाने में सफलता नहीं मिली। चार साल पहले लगाए गए किन्नू के पेड़ों पर फल तो आए, लेकिन उनमें रस नहीं था। फलों का आकार छोटा ही रहा। पेड़ों पर आए फलों का रंग ग्रीनिया रोग के कारण हरा ही रहा।
वेस्ट यूपी की मिट्टी मुफीद नहीं
फलों में अम्ल तत्व ज्यादा से ज्यादा होता गया, जिससे फल मीठे के बजाय गहरे खट्टे होते गए। फल अपना पूरा आकार नहीं ले पाए और ज्यादा से ज्यादा नींबू के आकार के ही रहे। प्रधान वैज्ञानिक डॉ. पूनम ने बताया कि अभी तक किए गए शोध में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किन्नू की खेती के लिए उपयुक्त परिणाम नहीं मिले हैं। आइआइएफएसआर के निदेशक डॉ. आजाद सिंह पंवार ने बताया कि संस्थान किसानों को उन्हीं फल, सब्जी और अनाजों की खेती करने की सलाह देता है, जो शोध में सफल हो जाते हैं। अभी तक के परिणामों के अनुसार किन्नू की खेती के लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश की मिट्टी मुफीद नहीं मिली।