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RGA News, बांदा
बांदा:- मुसीबत का सामना हारकर नहीं, बल्कि हिम्मत से होता है। इसे साबित किया है, बांदा के पडुई गांव के नवल ने। सूखा पड़ने पर 2009 में जब, एक के बाद एक, सात दिन में आठ किसानों ने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली थी, तब नवल ने जल संकट दूर करने का संकल्प लिया और अपनी हिम्मत से इसे साकार भी किया। आज जब बुंदेलखंड का बड़ा इलाका जलसंकट की विभीषिका झेल रहा है, तब पडुई और आसपास के डेढ़ सौ गांव में बिना किसी सरकारी सहायता के हरियाली और खुशहाली की फसल लहलहा रही है। अपने संकल्प को पूरा करने के लिए उन्होंने निजी खर्चे पर तालाब खोदवाया और मोनो ब्लॉक से पानी खेतों में पहुंचाया। वह डेढ़ सौ से अधिक गांवों में लोगों को प्रेरित कर 1800 से अधिक तालाब खोदवा चुके हैं।
महुआ ब्लॉक के पड़ुई गांव के 58 वर्षीय किसान नवल किशोर ने खेतों की सिंचाई के लिए वर्ष 2009-10 में बिना सरकारी मदद लिए तालाब बनवाया और वर्षा जल संचय किया। इस पानी को मोनो ब्लॉक से खेतों तक पहुंचाया। नवल कहते हैं, प्रयोग सफल रहा, लेकिन ग्रामीण हंसी उड़ाते रहे। 2016-17 में संसाधन जुटाकर अपने और अपने भाई के खेत में दो और तालाब बनवाए। लगातार फसल और सुधरती आर्थिक स्थिति से ग्रामीणों को तालाब की महत्ता समझ में आने लगी। लोग आए और तालाब खोदवाने की बात कही। तब नवल ने इसे अभियान के रूप में शुरू किया और गांव- गांव किसानों से संपर्क कर जलसंकट और सिंचाई की जरूरत का हवाला देकर तालाब बनवाने के लिए जागरूक किया।
पडुई के बदले हालात देखकर ग्रामीणों को बात समझ में आई और उन्होंने भी तालाब खोदकर उसके पानी का प्रयोग सिंचाई के लिए किया। पडुई में अब लबालब भरे पांच तालाब और आसपास के डेढ़ सौ से अधिक गांवों में 1800 तालाब बन चुके हैं। नवल ने इस वर्ष 300 से अधिक तालाब खोदवाने का लक्ष्य रखा है।
भू-जल भी सुधरा : नवल के प्रयास से खेत ही नहीं, जमीन की भी प्यास बुझी। तीन साल पहले गांव में जलस्तर 90 से 100 फीट था। अब 60 से 70 फीट है।
नवल किशोर तमाम किसानों के लिए प्रेरणास्नोत हैं। उनके मॉडल पर काम करें तो बुंदेलखंड में सूखे के प्रभाव खत्म किया जा सकता है। मैंने खुद नवल को पुरस्कृत किया था।
- डॉ. यूएस गौतम, कुलपति, कृषि एवं
प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय बांदा, उत्तर प्रदेश