संपादकीय : जीएसटी की कठिन डगर

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संदेह इसलिए भी गहराए हैं क्योंकि नोटबंदी के बाद बने हालात में जीएसटी लागू करने को लेकर राज्यों का उत्साह घटा है।

क्या वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) पूर्व घोषित समयसीमा के अनुरूप आगामी एक अप्रैल से लागू हो पाएगा? केंद्र ने अभी भी ये महत्त्वाकांक्षा छोड़ी नहीं है, हालांकि ऐसा होना फिलहाल कठिन लगता है। केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पिछले हफ्ते ध्यान दिलाया था कि अगले वर्ष 16 सितंबर तक जीएसटी लागू करने की संवैधानिक अनिवार्यता है और राजनीतिक गतिरोध के बावजूद यह लक्ष्य हासिल किया जाएगा। मगर इस बयान में यह अंतर्निहित था कि सरकार अब अगले सितंबर तक की समयसीमा पर सोचने लगी है।

बेशक सियासी विरोध इसका एक प्रमुख कारण है। खासकर नोटबंदी के बाद बने माहौल में सरकार व विपक्ष का तनाव और बढ़ गया है। संसद का शीतकालीन सत्र इस टकराव की भेंट चढ़ गया, जिससे जीएसटी लागू करने के लिए जरूरी केंद्रीय जीएसटी (सीजीएसटी) विधेयक पारित नहीं हो सका। मगर एक दूसरी हकीकत यह भी है कि इस नई परोक्ष कर व्यवस्था से संबंधित कुछ अहम मुद्दों पर केंद्र एवं राज्यों में सहमति बनने में देर हुई है। 22-23 दिसंबर को नई दिल्ली में हुई जीएसटी परिषद की सातवीं बैठक में हालांकि कई नई सहमतियां बनीं, लेकिन कुछ मसलों पर मतैक्य नहीं बन पाया। इनमें एकीकृत जीएसटी (आईजीएसटी) कानून का मसला भी है। इसका संबंध एक से दूसरे राज्य में आने-जाने वाली वस्तुओं व सेवाओं पर कर लगाने से है। इस पर तथा ऐसे अन्य बिंदुओं पर अब जनवरी में होने वाली बैठक में प्रगति की आशा जताई गई है।

वैसे इस बैठक की यह बड़ी उपलब्धि रही कि प्रस्तावित सीजीएसटी के 197 में से अधिकांश प्रावधानों को परिषद की हरी झंडी मिल गई। अब ये देखने की बात होगी कि क्या अगले महीने शुरू हो रहे संसद के बजट सत्र में केंद्रीय बिल पर्याप्त समय रहते पारित हो पाएगा, जिससे जीएसटी अगले वित्त वर्ष के आरंभ में ही लागू हो जाए? इस संबंध में संदेह इसलिए गहराए हैं, क्योंकि नोटबंदी के बाद बनी स्थितियों में जीएसटी लागू करने को लेकर राज्यों का उत्साह घटा है। पश्चिम बंगाल के वित्त मंत्री अमित मित्रा खुलेआम मांग कर चुके हैं कि फिलहाल जीएसटी लागू करने का इरादा छोड़ दिया जाए। आम अनुभव है कि जीएसटी लागू होने के बाद पहले वर्ष में कई वित्तीय अवरोध खड़े होते हैं। नोटबंदी से खड़ी हुई मुश्किलों के साथ मिलकर ये बाधाएं आम आर्थिक गतिविधियों के लिए हानिकारक हो सकती हैं। मगर इस बहस का दूसरा पहलू यह है कि जीएसटी से परोक्ष करों की चोरी कठिन हो जाएगी, जो काला धन उत्पन्न् होने का बड़ा स्रोत है। जब केंद्र सरकार ने काले धन के खिलाफ मुहिम में नोटबंदी जैसा जोखिम उठाया, तो जीएसटी को टालने का कोई औचित्य नहीं बनता। इसलिए अपेक्षित है कि केंद्र इस बारे में नोटबंदी जैसे ही साहस का परिचय दे और यथाशीघ्र जीएसटी को लागू करने के अपने निश्चय पर कायम रहे।

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