हर साल बाढ़ के बाद उफान मारती यह बीमारी, लेकिन इलाज की नहीं कोई तैयारी

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RGA News, पटना बिहार

Bihar Flood बिहार के 12 जिलों की बाढ़ग्रस्‍त आबादी बाढ़ के बाद एक गंभीर मनोवैनिक बीमारी पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर से जूझेगी। क्‍या है यह बीमारी जानिए इस खबर में।...

पटना/ कटिहार:- बाढ़ से जान-माल की तात्‍कालिक क्षति तो होती ही है, इसका दूरगामी मनोवैज्ञानिक असर भी गंभीर होता है। बाढ़ के बाद प्रभावित लोगों के 'पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर' (PTS Disorder) की चपेट में आने का खतरा बढ़ जाता है। शुरुआती दौर में इसके लक्षणों का पता नहीं चल पाता है। साल 2017 में मनोवैज्ञानिकों की एक टीम द्वारा किए गए सर्वे में समस्‍या की गंभीरता उजागर हुई थी। हैरत की बात यह है कि बाढ़ग्रस्‍त इलाकों में इस ओर सरकार व प्रशासन का ध्‍यान नहीं है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि बीमारी से प्रभावित लेकिन इससे अनभिज्ञ ग्रामीण आबादी का इलाज कैसे होगा?

क्‍या है पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर, जानिए

बाढ़ या किसी अन्‍य आपदा के बाद प्रभावित लोगों के मन पर होने वाले असर के कारण पैदा होने वाला मनोविकार पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस (पीटीएस) डिसऑर्डर है। आपदा में जानमाल एवं खेती के नुकसान से इसका गहरा असर होता है। खास तौर पर प्रभावित इलाकों की महिलाएं इसकी चपेट में अधिक आतीं हैं। बाढ़ या किसी आपदा में हुई बर्बादी के कारण बेटियों की शादी, बच्चों की पढ़ाई आदि की चिंता के कारण पीटीएस डिसऑर्डर होता है। इसे नींद में कमी, झुंझलाहट, उदासी तथा व्यवहार परिवर्तन आदि के शुरुआती लक्षणों से पहचाना जा सकता है।

बाढ़ग्रस्‍त इलाकों में अभी से दिखने लगे मामले

मुजफ्फरपुर की तेतरी देवी का आशियाना बाढ़ का पानी लील गया। सड़क पर शरण लिए उनके परिवार के पास कुछ भी नहीं बचा। कहतीं हैं, 'जिंदगी बोझ लगने लगी है।' मोतिहारी के रवि साव की जीवन भर की कमाई घर के साथ पानी में बह गई। अब उन्‍हें जवान बेटी की शादी की चिंता खाए जा रही है। बाढ़ की त्रासदी झेल रहे सुपौल के रतन सादा व सहरसा के मृत्‍युंजय यादव दिन-रात बड़बड़ाते दिख रहे हैं। डॉक्‍टरों ने इसे 'सदमा' का असर बताया है। बिहार के बाढ़ प्रभावित एक दर्जन जिलों में त्रासदी के मनोवैाज्ञानिक असर के ऐसे सैकड़ों उदाहरण अभी से मिल रहे हैं। ऐसे मामले ही कालांतर में गंभीर हो जाएं तो आश्‍चर्य नहीं।

तब सीमांचल में डॉक्‍टरों को मिले थे 180 पीडि़त

कटिहार के क्लिनिकल साइकोलोजिस्‍ट डॉ. राकेश कुमार बताते हैं कि ऐसे मामलों में काउंसेलिंग एवं मनोवैज्ञानिक विश्लेषण के आधार पर इलाज जरूरी होता है, लेकिन सरकारी स्‍तर पर ऐसी कोई की कोई योजना नहीं है। उन्‍होंने बताया कि साल 2017 में आई प्रलंयकारी बाढ़ के बाद कटिहार मेडिकल कॉलेज व अस्‍पताल में इलाज के लिए पहुंचे मरीजों के विश्‍लेषण से तब चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए थे।

तब कटिहार मेडिकल कॉलेज व अस्‍पताल में पदस्‍थापित रहे (अब पटना में) डॉ. आसिफ अली के अनुसार अस्‍पताल पहुंचे सीमांचल के प्रभावित इलाकों के मरीजों में 180 को मानसिक रोगी पाया गया था। इनमें महिलाओं की संख्या अधिक थी। यह आंकड़ा अक्टूबर से दिसंबर 2017 के बीच इलाज एवं काउंसेलिंग के लिए पहुंचे बाढग़्रस्त इलाकों के लोगों के आधार पर तैयार किया गया था।

धीरे-धीरे गंभीर होती जाती है यह बीमारी

पटना की क्लिनिकल साइकोलोजिस्‍ट डॉ. बिंदा सिंह कहतीं हैं कि इस बीमारी के साथ खास बात यह है कि प्रारंभिक अवस्‍था में इसे यह सोचकर नजरअंदाज किया जाता है कि समय के साथ सब ठीक हो जाएगा। लेकिन ऐसे मामलों में सालों तक इलाज जरूरी है। लंबे समय तक मनोवैज्ञानिक सलाह व उपचार नहीं मिलने के कारण बीमारी धीरे-धीरे यह गंभीर रूप ले लेती है।

मानसिक इलाज की भी हो व्यवस्था

बाढ़ से निपटने के लिए आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा राहत कार्य चलाने के साथ अनुदान राशि का भुगतान तो किया जाता है, लेकिन बाढ़ जैसी आपदा से प्रभावित इलाकों के लोगों को मानसिक दबाव से उबारने के लिए सरकार की कोई विशेष रणनीति नहीं दिखती है। हालांकि, अन्‍य केरल, महाराष्ट्र सहित अन्य राज्यों में किसी आपदा के आने के बाद प्रभावित लोगों को राहत मुहैया कराने के साथ आपदा के कारण मानसिक दबाव से उबरने के लिए काउंसेलिंग की व्यवस्था भी की जाती है। क्लिनिकल साइकोलोजिस्‍ट डॉ. बिंदा सिंह कहतीं हैं कि सरकार को बाढ़ राहत व सामान्‍य शारीरिक बीमारियों के इलाज के साथ मनोवैज्ञानिक इलाज पर भी फोकस करना चाहिए।

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