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लखनऊ। समाज के आध्यात्मिक मार्गदर्शक, वेद-शास्त्रों के अद्वितीय ज्ञानी, मानव कल्याण के प्रचारक, आध्यात्मिकता के प्रसारक, सदैव प्रेरणादायी, संतत्व के क्षितिज के दूत, धार्मिक साम्राज्य के मुखिया, बेदाग-विनम्र-उदार छवि और सौहार्द के संदेशवाहक जैसे एक नहीं अनेक विशेषण जिनके लिए बनें हैं उन्हीं कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती के महाप्रयाण पर आज हर तबका गमगीन है।
योगी ने की शांति की कामना
शंकराचार्य के निधन पर राज्यपाल राम नाईक और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत कई प्रमुख लोगों ने दुख प्रकट किया है। विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय और प्रदेश महामंत्री संगठन सुनील बंसल ने शंकराचार्य के निधन पर दुख प्रकट करते हुए ईश्वर से दिवंगत आत्मा की शांति की कामना की है। योगी आदित्यनाथ ने अपने शोक संदेश में कहा कि शंकराचार्य के निधन से समाज की अपूरणीय क्षति हुई है। ब्रह्मलीन शंकराचार्य प्रकांड विद्वान थे और वह वेदों समेत अनेक धार्मिक ग्रंथों के ज्ञाता थे। शंकराचार्य जी के समृद्ध आध्यात्मिक एवं सामाजिक योगदान के लिए उन्हें सदैव याद किया जाएगा। मुख्यमंत्री ने ईश्वर से दिवंगत आत्मा की शांति की कामना भी की है।
समाज के आध्यात्मिक मार्गदर्शक
राज्यपाल राम नाईक ने अपने शोक संदेश में कहा कि जयेंद्र सरस्वती विद्वान एवं विचारक थे जिन्होंने समाज का आध्यात्मिक मार्गदर्शन किया। वेदों एवं शास्त्रों पर उनका ज्ञान अद्वितीय था। राज्यपाल ने कहा कि उन्हें अनेक अवसरों पर स्वामी जी से आशीर्वाद प्राप्त करने का सौभाग्य मिला है। स्वामी के निधन से समाज की अपूरणीय क्षति हुई है। स्वामी जी के उच्च आदर्श उनके अनुयायियों को सदैव प्रेरित करते रहेंगे। नाईक ने ईश्वर से दिवंगत आत्मा को सद्गति प्रदान करने की कामना की है। कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य स्वामी जयेन्द्र सरस्वती ने 14 दिसंबर, 2014 को मुंबई में आयोजित एक कार्यक्रम में जननेतृत्व के लिये दिये जाने वाले राष्ट्रीय श्रेष्ठता अवार्ड से राज्यपाल राम नाईक को सम्मानित किया था। प्रदेश अध्यक्ष डॉ. महेन्द्र नाथ पाण्डेय एवं प्रदेश महामंत्री (संगठन) सुनील बंसल ने शोक संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि मानव कल्याण एवं अध्यात्मिकता के प्रसार में शंकराचार्य का योगदान सदैव प्रेरणादायी रहेगा।
शोकाकुल हो उठी राम नगरी
शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती के निधन की खबर से रामनगरी शोकाकुल हो उठी। रामजन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष और मणिरामदासजी की छावनी के महंत नृत्यगोपालदास ने कहा, उनका निधन धार्मिक जीवन मूल्यों को क्षति है। उनके उत्तराधिकारी महंत कमलनयनदास ने कहा, उनसे उपजी शून्यता की भरपाई कठिन है। अयोध्या संत समिति के अध्यक्ष महंत कन्हैयादास ने उन्हें युगों तक अविस्मरणीय रहने वाला बताया। विहिप के प्रांतीय मीडिया प्रभारी शरद शर्मा के अनुसार वे सच्चे अर्थों में राष्ट्र संत थे। गुरुद्वारा ब्रह्मकुंड के मुख्यग्रंथी ज्ञानी गुरुजीत सिंह ने उन्हें संतत्व के क्षितिज का महान दूत बताया। शोक व्यक्त करने वालों में सद्गुरुसदन के महंत सियाकिशोरीशरण ने कहा, हमें उन पर नाज रहेगा।
मंदिर विवाद के फलक पर सौहार्द के दूत
चिरनिद्रा में लीन कांची कामकोटि के शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती का रामनगरी से भी गहन सरोकार रहा है। वे न केवल आध्यात्मिक विभूति के तौर पर रामनगरी से जुड़े रहे बल्कि मंदिर-मस्जिद विवाद के समाधान की दिशा में भी उल्लेखनीय पहल की। वह सन 2002 का वर्ष था, जब जयेंद्र सरस्वती ने आपसी सहमति से मंदिर-मस्जिद विवाद के हल का प्रयास शुरू किया। शीर्ष धर्माचार्य, भरे-पूरे धार्मिक साम्राज्य के मुखिया एवं बेदाग, विनम्र और उदार छवि के चलते इस फलक पर जयेंद्र सरस्वती को हाथों-हाथ लिया गया। अमूमन संवाद-समन्वय की उपेक्षा कर किसी भी कीमत पर राममंदिर निर्माण का दावा करने वाली विहिप भी जयेंद्र सरस्वती के आभामंडल से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकी।
अयोध्या विवाद से पैर वापस खींचे
केंद्र की तत्कालीन राजग सरकार का भी रुख जयेंद्र सरस्वती के प्रति आदर और भरोसे का रहा। इन्हीं प्रयासों के बीच उनका यह बयान सूत्र वाक्य की तरह सामने आया कि देश के हिंदू-मुस्लिम बड़े एवं छोटे भाई की तरह हैं। शुरुआती दौर में वे उस विवाद को हल करने की दिशा में पूरी तेजी से आगे बढ़े, जिसके चलते देश सांप्रदायिक विभाजन के मुहाने पर पहुंच चुका था। उनकी छवि सौहार्द के महान दूत की बनी। 2004 में उनके पीछे खड़ी केंद्र की राजग सरकार के सत्ता से वंचित होने और इसके बाद हत्या के एक मामले में लांछित होने के चलते जयेंद्र सरस्वती अपनी समस्याओं में उलझ कर रह गए और उन्हें देश के सबसे बड़े विवाद के समाधान की दिशा से पैर वापस खींचने पड़े। अयोध्या में अपने आश्रम की शाखा एवं कतिपय समाजसेवा का प्रकल्प संचालित करने के उद्देश्य से वे 2008 एवं 2011 में भी आए। यद्यपि इन यात्राओं का उद्देश्य मंदिर-मस्जिद विवाद का हल नहीं था पर लोग इस फलक पर अंत तक उनसे किसी करिश्मे की उम्मीद करते रहे। मंदिर के समर्थन में जागरण अभियान संचालित करने वाले मुस्लिम नेता बब्लू खान के अनुसार वे सच्चे अर्थों में आध्यात्मिक एवं भारतीय थे।