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(प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने विधेयक को लोकसभा में पेश करने की बुधवार को मंजूरी दी) .
नई दिल्ली: (समाचार सेवा) मानव तस्करी पर कड़ी सजा और पीड़ित को सुरक्षा व पुनर्वास का प्रावधान करने वाले मानव तस्करी (रोकथाम, सुरक्षा और पुनर्वास) विधेयक 2018 को मंत्रिमंडल ने मंजूरी दे दी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने विधेयक को लोकसभा में पेश करने की बुधवार को मंजूरी दी।
मानव तस्करी मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वाला तीसरा सबसे बड़ा संगठित अपराध है। इस अपराध से निबटने के लिए अभी तक कोई विशेष कानून नहीं है। इसीलिए मानव तस्करी (रोकथाम सुरक्षा और पुनर्वास) 2018 तैयार किया गया है। यह विधेयक मानव तस्करी पर लगाम लगाने और पीडि़त को सुरक्षा और पुनर्वास के लिहाज से महत्वपूर्ण है। यह प्रस्तावित कानून हर तरह की मानव तस्करी पर लागू होगा जिसमें जबरदस्ती मजदूरी कराना, भीख मंगवाना, समय से पहले यौन परिपक्वता के लिए हारमोन व रासायनिक पदार्थ देना, शादी या शादी के झांसे में फंसा कर महिलाओं व बच्चों की तस्करी शामिल है। इतना ही नहीं विधेयक में तस्करी को बढ़ावा देने और तस्करी में सहायता करने के लिए जाली कागजात बनवाने अथवा छापने व बांटने वालों के लिए भी सजा का प्रावधान है। इसमें न्यूनतम 10 वर्ष के सश्रम कारावास से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है। इसके अलावा कम से कम एक लाख रुपये के दंड का भी प्रावधान है।
कानून समयबद्ध अदालती सुनवाई के साथ पीडि़तों, गवाहों और शिकायतकर्ता की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उनकी पहचान उजागर नहीं किये जाने की बात करता है। इसके अलावा पीडि़त की गोपनीयता बनाए रखने के लिए उसके बयान वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिये रिकार्ड करने की व्यवस्था है। इससे सीमा पार व अंतरराज्यीय अपराधों के निपटारे में भी मदद मिलेगी। मुकदमें की तेजी से सुनवाई के लिए प्रत्येक जिले में विशेष अदालतें होंगी। मानव तस्करी रोकने के लिए जिला राज्य व केन्द्र स्तर पर ढांचागत तंत्र होगा जो तस्करी रोकने के साथ ही पीडि़त के पुनर्वास, सुरक्षा और जांच के लिए भी उत्तरदायी होगा। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) राष्ट्रीय स्तर पर तस्करी विरोधी ब्यूरो की तरह काम करेगी। यह कानून अपराध से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निपटने की भी व्यवस्था करता है।
प्रस्तावित कानून में विशेष तौर पर पीडि़त के पुनर्वास और सुरक्षा का ध्यान रखा गया है। पहली बार पुनर्वास कोष बनाया गया है जिसका उपयोग पीडि़त के शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक देखभाल के लिए होगा। इसमें उसकी शिक्षा, कौशल विकास, स्वास्थ्य देखभाल, मनोवैज्ञानिक सहयोग, कानूनी सहायता और सुरक्षित निवास शामिल है। इस कानून में बचाए गए पीडि़त को शारीरिक, मानसिक आघात से निपटने के लिए 30 दिन के भीतर अंतरिम सहायता और आरोपपत्र दाखिल होने की तिथि से 60 दिन के भीतर उचित मदद देने का प्रावधान किया गया है।