![Praveen Upadhayay's picture Praveen Upadhayay's picture](https://bareilly.rganews.com/sites/bareilly.rganews.com/files/styles/thumbnail/public/pictures/picture-4-1546617863.jpg?itok=SmNXTJXo)
RGA न्यूज़ उत्तर प्रदेश लखनऊ
समाजवादी पार्टी से गठबंधन तोडऩे के बाद अब मायावती ने उनके मूल वोट बैंक में सेंध लगाने की तैयारी कर ली है। मायावती ने =प्रदेश अध्यक्ष की कमान एक मुसलमान को दी है...
लखनऊ:- लोकसभा चुनाव 2019 में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन के बाद भी अपेक्षित सफलता न मिलने पर बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने ट्रैक बदल दिया है। समाजवादी पार्टी से गठबंधन पीड़ित के बाद अब मायावती ने उनके मूल वोट बैंक में सेंध लगाने की तैयारी कर ली है। मायावती ने इसी क्रम में अपने पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की कमान एक मुसलमान को दी है। इतना ही नहीं मायावती ने यादव तथा ब्राह्मणों को भी साधा है। लोकसभा में श्याम सिंह यादव को संसदीय दल का नेता तथा रितेश पांडेय को उप नेता की कमान दी गई है।
विधानसभा उप चुनाव की जोरदार तैयारी में लगीं मायावती का बसपा संगठन में उलटफेर जारी है। मायावती ने मुस्लिम वोट कार्ड चलते हुए पुराने वफादार मुनकाद अली को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया। इतना ही नहीं गठबंधन तोड़ने के बाद समाजवादी पार्टी के यादव वोटबैंक पर भी निगाहें लगी है। लोकसभा चुनाव के बाद मायावती ने सपा से गठबंधन तोड़ा और यह भी आरोप लगाया कि अखिलेश यादव का अपने कोर यादव वोटर पर पकड़ कमजोर हुई है। लिहाजा मायावती अब यादवों को अपने पाले में लाने की जुगत में हैं। यादवों मेें सेंध लगाने के लिए नौकरशाह से सांसद बने श्याम सिंह यादव को लोकसभा में दलनेता नियुक्त किया है।
इसके साथ ही अन्य पिछड़ा वर्ग को साधने के लिए प्रदेश अध्यक्ष आरएस कुशवाहा को प्रोन्नत कर राष्ट्रीय महासचिव बनाया है। सोशल इंजीनियङ्क्षरग की मजबूती के लिए रितेश पांडेय लोकसभा में उपनेता बनाए गए जबकि सांसद गिरीश चंद्र जाटव लोकसभा में मुख्य सचेतक बने रहेंगे।
पहली बार बसपा ने मुस्लिम चेहरे को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। अब से पहले अति पिछड़ों को प्रदेश की कमान दी जाती रही है। राज्यसभा के पूर्व सदस्य मुनकाद अली को बसपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के पीछे उनकी वफादारी को भी प्राथमिकता पर लिया जा रहा है। दरअसल, मुनकाद अली ने अपनी राजनीतिक शुरुआत बसपा से ही की और पार्टी में हर उतार-चढ़ाव के बावजूद पार्टी से जुड़े रहे। इसके अलावा मुस्लिमों को साधने के लिए भी बसपा का यह कार्ड है, क्योंकि पूर्व मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी के बाद बसपा का बड़ा मुस्लिम चेहरा मुनकाद अली को ही माना जा रहा है।
लोकसभा चुनाव में हारने के बाद से प्रदेश अध्यक्ष आरएस कुशवाहा की कुर्सी खतरे में दिख रही थी। इसी कारण कुशवाहा को हटाकर मायावती ने मुनकाद अली को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर अर्से बाद किसी मुस्लिम नेता की ताजपोशी चौंकाने वाली है। मेरठ निवासी मुनकाद अली को प्रदेश संगठन की कमान सौंप मायावती ने पश्चिम उत्तर प्रदेश में मजबूती बढ़ाने का प्रयास किया है। पश्चिम में दलित मुस्लिम गणित के अलावा अन्य क्षेत्रों में पिछड़ा- दलित समीकरण को पुनर्जीवित करने की कोशिश की है।
समाजवादी पार्टी से गठबंधन पीड़ित व विधानसभा के उपचुनावों में उतरने की घोषणा के बाद बसपा प्रमुख मायावती ने बुधवार को संगठन में फेरबदल करते हुए सामाजिक समीकरण साधने की कोशिश की है। संगठन में बदलाव को तीन तलाक मुद््दे पर खामोशी और अनुच्छेद 370 को खत्म करने पर सरकार के समर्थन में खड़े दिखने से भी जोड़कर देखा जा रहा है। इस उलटफेर के जरिए दलित-मुस्लिम गठजोड़ को मजबूती देेने के साथ वफादार व मिशन से जुड़े कार्यकर्ताओं को भी संदेश दिया है। श्याम सिंह यादव जैसे नए चेहरे को तरजीह देकर एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश की है। बसपा सुप्रीमो के जारी बयान में संगठन में बदलाव को सर्वजन हिताय व सर्वजन सुखाय नीति पर अमल को जरूरी तब्दीली बताया गया है।
मजबूत होती भाजपा से टक्कर लेने की जोरदार कोशिश
उत्तर प्रदेश में मजबूत होती भाजपा से टक्कर लेने की कोशिश में जहां एक ओर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी (सपा) पिछड़ते नजर आ रहे हैं। वहीं मायावती सूबे की सियासी नब्ज को पकड़ते हुए लगातार पार्टी में फेरबदल कर रही हैं। मायावती ने अब अपनी निगाहें समाजवादी पार्टी के कोर वोटर कहे जाने वाले यादवों की तरफ मोड़ दी है। इसके साथ ही मुसलमान और ब्राह्मणों को भी साधने का प्रयास है। मायावती का संदेश सदेश साफ है कि वह यादवों को पार्टी से जोडऩा चाहती हैं। श्याम सिंह यादव को नेता बनाकर उन्होंने यह संदेश दिया है कि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) में यादवों को तवज्जो दी जाएगी।
लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद से ही मायावती को इस बात का एहसास हो गया था कि खुद के वोटबैंक के अलावा अन्य क्षेत्रीय दलों के कोर वोटर इतने मजबूत नहीं रह गए हैं। ऐसे में पार्टी को मजबूत करने और 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव की चुनौती से निपटने के लिए उन्हें सभी जातियों और वर्गों के समर्थन की जरूरत होगी। बड़ा यादव वोटर आज भी सपा के साथ खड़ा है, लेकिन लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद जिस तरह से सपा के मुखिया अखिलेश यादव निराश हुए तो बसपा ने यादव वोटरों में हताशा को ताड़ लिया। लिहाजा मायावती अब पार्टी में यादवों को नेतृत्व देकर उन्हें अपने पाले में करना चाहती हैं।