RGA न्यूज़ अयोध्या फैजाबाद
अयोध्या नगरी में आध्यात्म का रस लेना है तो पैदल घूमिए। साधू संतों के दर्शनों के साथ दूर दराज से आई भक्तों की टोली के संकीर्तन के साथ अयोध्या भ्रमण करती नजर आएगी। यहां राम लला के दर्शनों के बाद भक्तगण हनुमानगढ़ी जरूर आते हैं। कहा जाता है कि त्रेता युग में लंका विजय के बाद श्रीराम ने हनुमान जी को अयोध्या की सुरक्षा के लिए यह स्थान चौकी स्वरूप दिया था। रामजी के जल समाधि लेने के बाद उन्होंने ही अयोध्या की देख रेख की।
अवध पर नवाबों का शासन होने के समय तक ये स्थान बिलकुल जर्जर हो चुका था। 18वीं शताब्दी के मध्य अवध के नवाब मंसूर अली खां का शासन आते ये जगह (हनुमानगढ़ी) मिट्टी के टीले के रूप में रह गई थी। संत अभयराम दास के कहने पर नवाब ने इसे फिर से तैयार कराया साथ ही 52 बीघा जमीन भी दी, जिसमें आज गौशाल, उद्यान, संतों के निवास हैं। मुस्लिम नवाब के हिन्दू मंदिर के रख रखाव की ये कहानी तो सब जानते हैं। अयोध्या में बिताए 2 दिनों में हिंदू मुस्लिम कौमी एकता के ढेरों उदाहरणों में हमें एक और अनूठी नजीर मिली। वो है यहां कि आलमगिरी मस्जिद।
मस्जिद अशरफी भवन चौक से कुछ मीटर की दूरी पर स्थित है। तकरीबन चार पांच साल पहले अयोध्या में 181 इमारते चिन्हिंत हुईं, जो जीर्ण शीर्ण हालत में थी। प्रशासन का फरमान था कि या तो इन्हें गिराओ या इनकी तुरंत मरम्मत कराओ। वरना कोई भी हादसा होगा तो भूमि मालिक जिम्मेदार होगा। आलमगिरी मस्जिद जिस भूमि पर बनी है, वो हनुमानगढ़ी की सागरिया पट्टी की भूमि है। यहां के महंत ज्ञान दास ने अनूठी पहल की। बाबरी मस्जिद और राम मंदिर विवाद के मामले में पहले भी महंत ज्ञान दास कई बार बातचीत से ही हल के पक्षधर रहे हैं।
बहरहाल आलमगिरी मस्जिद के मसले में उन्होंने मुस्लिम प्रतिनिधियों से मिलकर इसे बचाने के लिए तुरंत मरम्मत कराए जाने की बात कही। स्थानीय लोगों का कहना है कि उन्होंने मस्जिद पुनर्निमाण के लिए आर्थिक मदद भी करवाई। अयोध्या के स्थानीय बाशिंदों का कहना है कि एक 1992 को छोड़ दिया जाए तो कभी अयोध्या नगरी में हिंदू मुस्लिम के बीच तनाव के हालात नहीं रहे। यहां ईद और दीपावली साथ मिलकर मनाई जाती हैं। हर रोज हर धर्म के लोग चौराहों, चौक पर साथ में चाय पीते हैं, सर्दी में मूंगफली खाते हैं।