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लखनऊ: RGA न्यूज
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) द्वारा गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीट पर समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रत्याशियों का समर्थन की सम्भावना बढ़ गई है। माना जा रहा है कि बसपा की ओर से सपा प्रत्याशियों को समर्थन देने की घोषणा रविवार को दोपहर बाद स्थानीय स्तर पर की जा सकती है।
बसपा सूत्रों के अनुसार, इस संबंध में बसपा सुप्रीमो मायावती की ओर से गोरखपुर और इलाहाबाद के जोनल को-ऑर्डिनेटरों को निर्देश भी दे दिए गए हैं। राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि देशभर में लगातार बढ़ रहे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विजय रथ को रोकने के लिए उत्तर प्रदेश में यह दोनों बड़े दल एक बार फिर साथ आ सकते हैं।
प्रेक्षक मानते हैं कि दोनों दलों के एक साथ आने पर पिछड़े, दलित और मुसलमानों का बेहतरीन 'कॉम्बिनेशन' बनेगा। इन तीनों की आबादी राज्य में करीब 70 फीसदी है। तीनों एक मंच पर आ जाएंगे तो भाजपा के लिए मुश्किल हो सकती हैं।
ज्ञात हो कि 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा को एक भी सीट नहीं मिली थी, जबकि सपा मात्र पांच सीटों पर जीत सकी थी। वर्ष 2०17 के विधानसभा चुनाव में सपा केवल 47 सीटों पर जीती थी, जबकि बसपा 19 सीटों पर ही सिमट गई थी। उत्तर प्रदेश विधानसभा में कुल 403 और लोकसभा की 80 सीट हैं।
30 अक्टूबर और दो नवम्बर 1990 को अयोध्या में हुए गोलीकांड के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की काफी किरकिरी हुई थी। उसके कुछ महीने बाद 1991 में हुए विधानसभा के चुनाव में मुलायम सिंह यादव को करारी शिकस्त मिली थी। भाजपा ने राज्य में पहली बार सरकार बनाई थी। कल्याण सिंह को मुख्यमंत्री बनाया गया था।
छह दिसम्बर 1992 को कारसेवकों ने विवादित ढांचा ढहा दिया था। कल्याण सिंह सरकार बर्खास्त कर दी गई थी। वर्ष 1993 में बसपा के तत्कालीन अध्यक्ष कांशीराम और मुलायम सिंह यादव की पार्टी सपा ने मिलकर चुनाव लड़ा। इसका नतीजा रहा कि 1993 में सपा-बसपा गठबंधन ने सरकार बनाई और मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री चुने गए।
सरकार करीब डेढ़ साल चली कि इसी बीच दो जून 1995 को लखनऊ में स्टेट गेस्ट हाऊस कांड हो गया। बसपा अध्यक्ष मायावती के साथ सपा कार्यकर्ताओं ने दुर्व्यवहार किया था। इसके बाद गठबंधन टूट गया और भाजपा के सहयोग से मायावती पहली बार मुख्यमंत्री बन गईं, तभी से सपा और बसपा के सम्बंधों में खटास आ गई थी।
लोकसभा की दो सीटों पर हो रहे उपचुनाव में यदि बसपा समर्थन देती है तो राज्य की राजनीति में इसके दूरगामी परिणाम होने की सम्भावना है। राजनीतिक मामलों के जानकार राजेंद्र प्रताप सिंह का कहना है कि बसपा उपचुनाव में अपने उम्मीदवार नहीं खड़ा करती है, इसलिए उपचुनाव में यदि बसपा सपा को समर्थन देती है तो अभी से इसका यह मतलब नहीं निकाला जाना चाहिए कि 2०19 में दोनों दल एक साथ रह सकते हैं।