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RGA न्यूज़ उत्तर प्रदेश आगरा ब्यूरो चीफ सोनू शर्मा
वृंदावन आए उज्जैन के धर्म विज्ञान शोध संस्थान के निदेशक डॉ जेजे सर ने वैज्ञानिक शोध के आधार पर बताया धार्मिक महत्व।...
आगरा:- मन को शांति मिलती है ईश्वर तेरे दर पर आकर। जीवन को मंजिल मिलती है ईश्वर तेरे दर पर आकर। दुनियावी थकान जब चूर कर देती है मेरा रोम- रोम, फिर से जीने की ऊर्जा मिल जाती है मुझे हे ईश्वर तेरे दर पर आकर। ईश्वर का दर यानि मंदिर। पवित्रता का घर, ईश्वर का घर। जहां की दर और दीवारें ही नहीं छत तक देती है ऊर्जा। हममें से बहुत से लोग जब जीवन की निराशाओं से घिर जाते हैं तो मंदिर की ओर दौड़ लगाते हैं। लेकिन क्या कभी सोचा है कि जो सुकून किसी और चार दीवारी में नहीं मिलता वो आखिर एक मंदिर में जाकर कैसे मिल जाता है। कैसे एक अदृश्य शक्ति मन के साथ तन को भी करोड़ों तरंगों से झंकृत कर देती है। बहुत से सपने, मनोकामनाएं ईश्वर के इस घर में नियम से जाने भर से पूर्ण हो जाती हैं। मंदिर में शक्ति, ईश्वर का वास। यह महज मान्यता नहीं है। इसके पीछे छुपा है वैज्ञानिक रहस्य। इस बाबत जागरण डॉट कॉम ने वृंदावन आए उज्जैन के धर्म विज्ञान शोध संस्थान के निदेशक डॉ जेजे सर से चर्चा की। डॉ जेजे सर ने बताया कि सनातन धर्म में मंदिर एक प्रयोगशाला है। इस प्रयोगशाला की हर वस्तु अपने आप में विशेष महत्व रखती है। देव प्रतिमाओं की विशेष स्थापना के अलावा मंदिर के कलश और गुंबद विशेष ऊर्जा देने वाले होते हैं।
उन्होंने कहा कि मंदिर में कलश विधि पूर्वक स्थापना के बाद ही लगते हैं। जब कोई मंदिर में आकर प्रतिदिन मंत्र जाप करता है या नाद का स्वर करता है तो उस मंत्र शक्ति का लगातार घर्षण होता है। उससे कलश और गुंबद के अंदर घूम घूमकर मंत्रशक्ति की एक ऊर्जा बनती है। वाेे ऊर्जा संबंधित व्यक्ति जो मंत्र कर रहा है उस पर सीधा प्रहार करके उसका उपचार करती है। इसके आलावा जो उसके आसपास किसी तरह की कोई नकारात्मक शक्ति होती है वो कलश के द्वारा समाप्त हो जाती है।
सकारात्मक ऊर्जा का भंडर होते हैं कलश के चक्र
डॉ जेजे सर के अनुसार मंदिर के कलश में चक्र हो होते हैं। जोकि सात, तीन, दो, एक चक्र होते हैं। ये चक्र अलग- अलग ऊर्जाओं के लिए होते हैं। जैसे जो कठिन मंत्र होते हैं उनके अनुसार अलग ऊर्जा मिलती है। मंदिर की स्थापना अलग अलग राज्यों में अलग अलग प्रकार की होती है। जैसे उत्तर भारत के मंदिरों की बनावट अलग और दक्षिण के मंदिरों की अलग होती है। हर स्थान पर मंत्र अलग- अलग स्वर के साथ गूंजते हैं और गूंजने के बाद एक माइक्रो पावर बनता है जोकि शरीर के आकर्षण के लिए लाभदायक होता है। माइक्रो पावर गुंबद या कलश के चक्र में जाकर सीधा नीचे की ओर चलता है और शरीर पर सीधा अपना प्रभाव छोड़ता है।
एक व्यक्ति से पूरे परिवार में पहुंचती है ऊर्जा
मंदिर में मंत्र के उच्चारण और कलश के चक्र से मिलने वाली ऊर्जा जाप करने वाले व्यक्ति के साथ उसके परिवार को भी मिलती है। ये ऊर्जा जींस के द्वारा उसके परिवार को लाभांवित करती है। परिवार में कोई भी परेशानी हो वो दूर होती है।
आकाशीय किरणें अपने अंदर समाहित करता है कलश
बड़ी बड़ी इमारतों को आकाशीय बिजली से बचाने के लिए त्वरित चालक लगाए जाते हैं। मंदिर भी एक बड़ी इमारत होती है। तो जरूरी है कि उसकी रक्षा के लिए भी त्वरित चालक लगाए जाएं। इस विद्युत से बचाव मंदिर का गुंबद करता है।
धातु के कलश समाहित करते हैं किरणों की ऊर्जा
डॉ जेजे सर कहते हैं कि कलश चांदी और सोने के होते हैं। सूर्य से पृथ्वी पर पराबैंगनी किरणों के साथ अन्य विभिन्न ऊर्जावान किरणें भी गिरती हैं लेकिन पृथ्वी पर सिर्फ .0 फीसद ही रुक पाती हैं। बाकि सब वापस चली जाती हैं। लेकिन कलश के व्यूह में जब िकिरणें पड़ती हैं तो विद्युत ऊर्जाचक्र बनकर शरीर को शक्ति प्रदान करने के लिए फिर से कोमल ऊर्जा के रूप में मंदिर में प्रवेश कर जाती हैंं। इस प्रवेश के कारण व्यक्ति जिस ध्येय या कार्य को लेकर मंत्र,आरती, प्रार्थना या प्रणाम करता हैं उसे इष्ट जल्दी स्वीकार कर लेते हैं।