RGA न्यूड लखनऊ आजमगढ़ हरिहरपुर
आजमगढ़ के हरिहरपुर में सदियों से फल फूल रहा संगीत। पद्मविभूषण पं.छन्नू लाल मिश्रा को मिली संगीत में महारत...
लखनऊ :- कहते हैं संगीत की कोई भाषा नहीं होती है। बस आपको इसके प्रति समर्पण की जरूरत होती है। जाति, धर्म और समुदाय से ऊपर उठकर इसकी साधना आपके जीवन को एक नई पहचान देती है। कुछ ऐसी ही मंशा को लेकर सदियों पहले एक गांव में संगीत की साधना शुरू हुई और अब तक लगातार जारी है। संगीत के विद्वानों वाले इस गांव में वैसे तो हर जाति धर्म के लोग रहते हैं, लेकिन ब्राह्मण परिवार को संगीत को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी दी गई है। यहां रहने वाले 40 से अधिक ब्राह्मण परिवार सुर संगीत से जुड़ा हुआ है। उप्र के आजमगढ़ जिले के इस अनोखे हरिहरपुर गांव के युवा कलाकार राष्ट्रीय युवा उत्सव में पहला स्थान पर हासिल कर रहे हैं।
राजधानी में आयोजित तीन दिवसीय राज्यस्तरीय संगीत प्रतियोगिता में भागीदारी करके उन्होंने न केवल अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया बल्कि पुरस्कार की प्राप्त कर अपनी उत्कृष्टता का भी परिचय दिया।
1936 में पद्मविभूषण पं.छन्नू लाल मिश्रा जी का भी जन्म इसी गांव में हुआ था। क्लासिकल गायन के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाने वाले पं.छन्नूलाल मिश्रा को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है। संगीत की खेती वाले इस गांव के पूर्व प्रधान कमलेश कुमार मिश्रा ने बताया कि 'हरिहरपुर संगीत घराना' के नाम से प्रसिद्ध इस गांव में ब्राह्मण परिवार में बच्चे को पढ़ाई के साथ ही घर में ही संगीत की शिक्षा दी जाती है। बच्चे के पिता और दादा से मिलती यह शिक्षा आगे चलकर गांव का नाम रोशन करती है। सुर-ताल की नर्सरी कहे जाने वाले इस गांव की आबादी करीब ढाई हजार है।
ईश्वर की वंदना से शुरू हुई साधना
करीब 400 वर्ष पूर्व गांव में ईश्वर की वंदना से सुर संगीत की साधना का सूत्रपात हुआ और फिर नहीं रुका। पूर्व प्रधान कमलेश कुमार मिश्रा ने बताया कि संगीत के माध्यम से ही गांव में 989 बीघे जमीन दान में मिली है। कई पीढिय़ों से फलफूल रहे इस संगीत को बढ़ाने में गांव के अन्य जातियों का सहयोग मिलता है, लेकिन उनके घर का कोई सदस्य सीखता नहीं है।
हर घर में संगीत के गुरु
गांव की खास बात यह है कि यहां के युवा संगीत सीखने के लिए बाहर नहीं जाते। इसी गांव के कई ऐसे संगीत गुरु हैं जो देश के विविध संगीत संस्थानों में संगीत की शिक्षा दे रहे हैं। राजधानी के भातखंडे संगीत महाविद्यालय (सम विश्वविद्यालय) में इसी गांव के पं.रामदास मिश्रा, पं.नौरतन मिश्रा,पं. गिरजा मिश्रा, पं.गुरु सहाय मिश्रा, पं.बुलबुल महाराज, पं.राम अधार मिश्रा, पं.श्यामलाल मिश्रा उर्फ जोखू मिश्रा, प्रो.मनोज मिश्रा तबले के प्रोफेसर हैं। इसके अलावा पं.अंबिका मिश्रा, पं.दीनानाथ मिश्रा, पं.शिवजी मिश्रा, पं.वीरेंद्र मिश्रा, पं.संतलाल मिश्रा, पं.हनुमान मिश्रा, पं.रविलाल मिश्र, पं.सोहनलाल मिश्रा, पं.मोहनलाल मिश्रा, पं.शंभूनाथ मिश्रा, पं.राजेश मिश्रा व पं.सुदर्शन मिश्रा समेत गांव के कई संगीत के महारथी देश के कोने-कोने में संगीत को बुलंदी दे रहे हैं।
प्रदेश में रहे अव्वल
युवा कल्याण एवं प्रांतीय रक्षक दल की ओर से आयोजित प्रदेश स्तरीय प्रतियोगिता में यहां के युवाओं ने एक बार फिर अपना परचम लहराया है। लोकगीत में पं.विजय प्रताप, पं.आलोक मिश्रा, पं.आशीष कुमार, पं.ऋषिकेश मिश्रा, पं.रंजीत, पं.रजनीश, पं.आदर्श मिश्रा व पं.दिवाकर मिश्रा ने पहला स्थान हासिल किया तो शास्त्रीय गायन में आदर्श कुमार, हारमोनियम लाइट में श्रीकांत मिश्रा और तबले में सूरज मिश्रा ने प्रदेश में पहला स्थान हासिल किया है। अब सभी 12 से 16 जनवरी के बीच होने वाले राष्ट्रीय युवा उत्सव में देशभर के कलाकारों के साथ संगीत की जंग में शामिल होंगे।
युवा के नाम से बना संगीत महाविद्यालय
गांव के युवा पं.प्रमोद कुमार मिश्रा के नाम से यहां तत्कालीन जिलाधिकारी सुभाषचंद्र शर्मा की ओर से यहां पं.प्रमोद कुमार मिश्रा संगीत महाविद्यालय की स्थापना की गई। सपा से राज्यसभा सांसद अमर सिंह और तत्कालीन जिलाधिकारी आरएन त्रिपाठी ने भी संगीत के इस गांव के विकास और संगीत को आगे बढ़ाने में अपना योगदान दिया है। आरएन त्रिपाठी ने बताया कि ऐसा अनोखा गांव प्रदेश ही नहीं देश में मैने कभी नहीं सुना है। ब्राह्मण परिवार के हर घर में सुबह शाम संगीत के सुर सनाई पड़ते हैं।