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RGA न्यूज़
फतेहगढ़ साहिब [धरमिंदर सिंह]। गुरु गोबिंद सिंह जी के साहिबजादों और माता गुजरी जी की शहादत की याद में फतेहगढ़ साहिब के हजारों परिवार आज भी पौष (दिसंबर) की कड़ाके की ठंड में जमीन पर सोते हैं। इस माह वे न तो कोई शादी करते हैं और न ही खुशी का समागम। और तो और, घर में स्वादिष्ट पकवान बनाने से भी बचते हैं। परंपरा 315 साल से चली आ रही है।
1704 में दशम पिता के छोटे साहिबजादों बाबा जोरावर सिंह व बाबा फतेह सिंह और 80 वर्ष से अधिक उम्र की माता गुजरी जी को सरहिंद के नवाब वजीर खान ने हंसला नदी के किनारे 140 फीट ऊंचे ठंडे बुर्ज में कैद करके सजा दी थी। तब से सिख परिवार जमीन पर सोते आ रहे हैं। कड़ाके की ऐसी सर्दी में वैराग करने, शहीदों को नमन करने और शहादत के उन दिनों की कल्पना करने के मकसद से ऐसा किया जाता है।
गुरुद्वारा फतेहगढ़ साहिब के मुख्य ग्रंथी हरपाल सिंह ने कहा कि जमीन पर सोने की संगत की कोई हठ नहीं है। वे ऐसा कर उस समय दी गई तकलीफ को महसूस करना चाहते हैं। तीन सदी पहले तो पंजाब का हर सिख परिवार पौष में जमीन पर सोकर शहीदों को नमन करता था। मगर, आज भी फतेहगढ़ साहिब में 70 फीसद सिख परिवार जमीन पर सोते हैं। इनमें विधायकों समेत एसजीपीसी सदस्य भी शामिल हैैं। मुख्य ग्रंथी हरपाल सिंह ने बताया कि सिख इतिहास में पौष को सबसे बुरा माना जाता है। यही कारण है कि सदियों से ऐसी परंपरा चली आ रही है। शहादत की छाप सिखों के मन पर इस प्रकार है कि वे घरों में पकवान भी नहीं बना
भारत के विभिन्न राज्यों व विदेश से आने वाली अधिकतम सिख संगत गुरुद्वारा श्री फतेहगढ़ साहिब और गुरुद्वारा श्री ज्योति स्वरूप की सराय में भी जमीन पर ही सोती है। रविवार देर रात तापमान चार डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था। सर्दी के इस कहर में भी गुरुद्वारा साहिब के पास बच्चों से लेकर महिलाओं तक सारी संगत जमीन पर सोई दिखी। शहादत को नमन करने की श्रद्धा में किसी को सर्दी का अहसास तक नहीं था।
शहीदी सभा 26 दिसंबर से शुरू हो रही है। शहीदों को नतमस्तक होने के लिए लाखों श्रद्धालु देश-विदेश से आएंगे। 27 दिसंबर को मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह समेत कई कैबिनेट मंत्रियों के अतिरिक्त शिअद अध्यक्ष सुखबीर बादल, केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल समेत कई शख्सियतें पहुंचें
दुनिया की सबसे महंगी जमीन भी फतेहगढ़ साहिब में है। इस जमीन को 315 वर्ष पहले बाबा जोरावर सिंह, बाबा फतेह सिंह और माता गुजरी जी का अंतिम संस्कार करने के लिए हिंदू समुदाय के दीवान टोडर मल ने खरीदा था। टोडर मल ने 78 हजार सोने की मोहरें चार वर्ग मीटर जमीन पर बिछाकर खरीदी थी। अब इस जमीन पर गुरुद्वारा श्री ज्योति स्वरूप साहिब बना है। गुरुद्वारा साहिब में जहां पालकी साहिब सुशोभित है, वहां छोटे साहिबजादों व माता गुजरी जी का अंतिम संस्कार किया गया था। पास ही अस्थियां जमीन में दबाई गई थीं, उस जगह पर शस्त्र सुशोभित हैं