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औरंगाबाद जिला परिषद चुनाव में तो एक शिवसेना विधायक खुलकर भाजपा के साथ आ भी चुके हैं। भविष्य में ऐसे और भी उदाहरण देखने को मिल सकते हैं।...
मुंबई:- महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने अपनी सरकार की अनिश्चितता पर हो रही टिप्पणियों को खारिज करते हुए दावा किया है कि उनकी 'तिपहिया सरकार' बिल्कुल ठीकठाक चल रही है। उनका मानना है कि किसी भी वाहन की सवारी में उसके पहियों से ज्यादा उसका संतुलन महत्व रखता है।
पूर्व सीएम फड़णवीस ने सरकार की तुलना ऑटो रिक्शा से करते हुए स्थिरता पर सवाल उठाया था
शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने सोमवार को पूर्व मुख्यमंत्री एवं नेता प्रतिपक्ष देवेंद्र फड़णवीस के बयान पर पलटवार किया है। फड़णवीस ने महाविकास अघाड़ी सरकार को तीन पहियों की गाड़ी बताया था। उन्होंने सरकार की तुलना ऑटो रिक्शा से करते हुए इसकी स्थिरता पर सवाल उठाया था।
मंत्री के पिता ने कहा था- यदि मंत्री बंगले के लिए लड़ते रहे तो ठाकरे तंग आकर इस्तीफा दे देंगे
इससे एक दिन पहले ही शिवसेनानीत सरकार में मंत्री बनाए गए निर्दलीय विधायक शंकरराव गडाख के पिता यशवंतराव गडाख ने बयान दिया था कि यदि सरकार के सारे मंत्री पद और बंगले के लिए ही लड़ते रहे तो उद्धव ठाकरे तंग आकर इस्तीफा दे देंगे। शिवसेना के ही नेता रहे नारायण राणे ने भी दावा किया है कि शिवसेना के 56 में से 35 विधायक पार्टी नेतृत्व से असंतुष्ट चल रहे हैं।
मंत्री विजय वडेट्टीवार ने अपनी जिद पर लिया मनमाफिक मंत्रालय
बता दें कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं उद्धव सरकार में मंत्री विजय वडेट्टीवार तबतक मंत्रालय नहीं आए, जबतक उन्हें उनके मनमाफिक मंत्रालय नहीं मिल गया। शायद यशवंतराव गडाख का इशारा इसी ओर था। देवेंद्र फड़णवीस का बयान भी सरकार में शामिल तीनों दलों की इसी खींचतान को लेकर था। हालांकि, उद्धव ठाकरे अपनी सरकार को कहीं से कमजोर नहीं दिखाना चाह
शिवसेना गृह मंत्रालय अपने पास चाहती थी, लेकिन खींचतान में राकांपा ने बाजी मार ली
बता दें कि शिवसेना-कांग्रेस-राकांपा की महाविकास अघाड़ी सरकार ने 28 नवंबर को शपथ ली थी। इसके बाद मंत्रिमंडल विस्तार में उद्धव को एक महीना लग गया। मंत्रिमंडल बंटवारे में भी शिवसेना की जूनियर पार्टनर राकांपा ने बाजी मार ली है। शिवसेना गृह मंत्रालय अपने पास चाहती थी, लेकिन खींचतान में वह भी उसके हाथ नहीं आ सका।
शिवसेना में आंतरिक असंतोष
शिवसेना में आंतरिक असंतोष का एक बड़ा कारण जमीनी स्तर पर पार्टी कार्यकर्ताओं का असमंजस भी है। शिवसेना के विधायकों को अपने ही कार्यकर्ताओं को जवाब देते नहीं बन रहा है। पिछले 30 वषरें से कांग्रेस-राकांपा के कार्यकर्ताओं के साथ हर तरह की लड़ाई लड़ते आ रहे शिवसैनिक अब उनके साथ मन नहीं मिला पा रहे हैं।
शिवसेना विधायक कार्यकर्ताओं के असंतोष को लेकर नेतृत्व के सामने बोल नहीं पा रहे
शिवसेना विधायक अपने कार्यकर्ताओं के इस असंतोष से भविष्य में होनेवाला नुकसान साफ देख रहे हैं, लेकिन अभी वे अपने नेतृत्व के सामने खुलकर बोल नहीं पा रहे हैं। यह असंतोष कब फूट पड़े, कहा नहीं जा सकता। हाल ही में औरंगाबाद जिला परिषद चुनाव में तो एक शिवसेना विधायक खुलकर भाजपा के साथ आ भी चुके हैं। भविष्य में ऐसे और भी उदाहरण देखने को मिल सकते हैं।