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गहन संकट के समय भी किस तरह संकीर्णता का परिचय देने और नकारात्मकता का प्रदर्शन करने से बाज नहीं आया जाता, इसका ही उदाहरण पेश कर रहे हैं वे लोग जो इस या उस बहाने रविवार रात नौ बजे नौ मिनट तक दिया, मोमबत्ती या मोबाइल की फ्लैश लाइट जलाने की प्रधानमंत्री की अपील का विरोध करने के लिए आगे आ गए। छद्म लिबरल जमात के लोगों, विपक्षी दलों और खासकर कांग्रेस के नेताओं ने यह माहौल बनाने में तनिक भी देर नहीं की कि प्रधानमंत्री तो कोरोना वायरस के संक्रमण को थामने के बजाय लोगों का ध्यान बंटाने के लिए दिया-मोमबत्ती जलाने का आग्रह कर रहे हैं।
ऐसा माहौल बनाने की कोशिश तब की गई जब प्रधानमंत्री ने साफ तौर पर यह रेखांकित किया था कि अंधेरे में उजाले के इस अनोखे आयोजन का एकमात्र उद्देश्य देश की सामूहिक संकल्प शक्ति का जागरण करना और हर भारतीय को यह अनुभूति कराना है कि इस कठिन समय वे अलग-थलग होते भी अकेले नहीं हैं। इसके अतिरिक्त देशवासियों में यह भाव भी भरना है कि कोरोना रूपी संकट के इस घने अंधेरे को परास्त किया जाएगा।
आखिर देश के लोगों का मनोबल बढ़ाने, उनमें आशा का संचार करने और एक-दूसरे का ख्याल रखने के साथ एकजुटता की भावना पैदा करने की पहल के विरोध का क्या औचित्य? यह नकारात्मकता की हद ही है कि इस आयोजन को लेकर यह शरारत भरा दुष्प्रचार करने में भी संकोच नहीं किया गया कि घरों की सारी लाइट बंद करने से तो ग्रिड फेल हो जाएगी। इसे मूर्खता के चरम प्रदर्शन के अलावा और कुछ नहीं कहा जा सकता, क्योंकि घरों के फ्रिज, एसी और अन्य उपकरणों के साथ रोड लाइट बंद करने की तो कोई बात ही नहीं है।
हैरानी इस पर है कि इस मूर्खता का परिचय यह जानते हुए भी दिया गया कि हर वर्ष अर्थ आवर के मौके पर देश- दुनिया में कुछ क्षणों के लिए बत्तियां बुझा दी जाती हैं और फिर भी कहीं ग्रिड फेल नहीं होती। इस तथ्य से भली तरह अवगत होने के बावजूद मूर्खतापूर्ण बातों का सिलसिला इतना तेज हुआ कि बिजली मंत्रालय को यह स्पष्ट करने के लिए आगे आना पड़ा कि ग्रिड फेल होने का अंदेशा आधारहीन है। जिन्हें यह लगता है कि अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का संकल्प लेने वाली इस अनूठी पहल से कुछ नहीं होना वे इससे भी परिचित होंगे कि इसमें भाग लेना अनिवार्य नहीं किया गया है। इस सकारात्मक पहल से असहमत होने में कोई हर्ज नहीं, लेकिन ऐसे लोगों को कम से कम नकारात्मक माहौल बनाने से तो बाज आना ही चाहिए।