जानिए 31 अगस्‍त को पहली बार किस देश में लैंड करेगा इजरायल का कमर्शियल विमान और क्‍य

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RGA :- न्यूज़

 दुबई :- इजरायल और यूएई के इतिहास में 31 अगस्‍त का दिन बेहद खास होने वाला है। ऐसा इसलिए है क्‍योंकि इसी दिन पहली बार इजरायल का कोई कमर्शियल विमान संयुक्‍त अरब अमीरात की राजधानी अबु धाबी की जमीन पर उतरेगा। इजरायल ने बेहद खास होने वाली इस यात्रा के लिए विशेष नामों को आखिरी रूप दे दिया है। सोमवार को जो विमान अबु धाबी जाएगा उसमें कई खास मेहमान होंगे। इसमें अमेरिका के वरिष्‍ठ अधिकारियों के साथ शामिल होंगे राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप के दामाद और वरिष्‍ठ सलाहकार जेयर्ड कुश्‍नर। उनके साथ होंगे नेशनल सिक्‍योरिटी एडवाइजर रॉबर्ट ओ ब्रायन। इसके अलावा इसमें इजरायल के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्‍व वहां के राष्‍ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मीर बेन शबात करेंगे। इजरायल की तरफ से इस यात्रा में वहां के रक्षा, विदेश मंत्रालय के वरिष्‍ठ अधिकारी और नेशनल एविएशन ऑथरिटी से जुड़े वरिष्‍ठ अधिकारी भी शामिल होंगे।

आपको बता दें कि 13 अगस्‍त को इजरायल और संयुक्‍त अरब अमीरात के बीच में एतिहासिक समझौता हुआ था। अंतरराष्‍ट्रीय जगत में इस समझौते का दिल खोलकर स्‍वागत किया गया है। जानकार भी मानते हैं कि इस समझौते का असर दूर तक होगा और ये एक नई अरब राजनीति की नींव भी रखेगा। इस समझौते के बाद जो पहला विमान अबु धाबी जाने वाला है उस विमान को LY971 नंबर दिया गया है। वहीं मंगलवार को जो विमान इजरायल आएगा उसको LY972 नंबर दिया गया है। आपको बता दें कि 971 जहां इजरायल का इंटरनेशनल कालिंग कोड है वहीं 972 यूएई का अंतरराष्‍ट्रीय कालिंग कोड है। सोमवार को जाने वाली इस फ्लाइट पर फिलहाल यूएई और अमेरिका की तरफ से कुछ नहीं कहा गया है।

13 अगस्‍त को हुए समझौते के बाद पहली बार 16 अगस्‍त को दोनों देशो के बीच फोन कॉल की सुविधा शुरू हुई थी। समझौते के मद्देनजर इजरायल ने फिलीस्‍तीन की विवादित भूमि पर कब्‍जे का दावा निलंबित करने का भी फैसला लिया है। इसके बाद ही माना जा रहा था कि ये समझौता इस पूरे क्षेत्र में शांति कायम करने की दिशा में काफी अहम होगा। हालांकि जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एके पाशा मानते हैं कि इन दोनों देशों में पहले भी तनाव नहीं था। न ही यूएई ने कभी अपनी सेना को ही इजरायल के खिलाफ कहीं पर उतारा था। इसके उलट ये दोनों देश बीते करीब पांच वर्षों में कई क्षेत्रों में आपसी सहयोग कर रहे थे। इसलिए ये समझौता एक दस्‍तावेज के तौर पर अब सामने आया है लेकिन ये काफी पुराना है।

प्रोफेसर पाशा का ये भी मानना है कि इस समझौते की सबसे बड़ी वजह ईरान बना है। अमेरिका की मध्‍यस्‍थता में हुआ ये समझौता इसलिए काफी खास हो गया है क्‍योंकि ईरान को आगे बढ़ने से रोकने के लिए अब ये देश लामबंद हो रहे हैं। उनके मुताबिक आने वाले समय में इसी तरह के और समझौते हो सकते हैं और अन्‍य देश इनसे जुड़ सकते हैा। उन्‍होंने ये भी माना है कि ट्रंप ये भी चाहते हैं कि वो ईरान के साथ एक नहीं परमाणु डील साइन करें। प्रोफेसर पाशा के मुताबिक आने वाले समय में यदि ट्रंप दोबारा राष्‍ट्रपति चुने जाते हैं तो मुमकिन है कि ये संभव हो भी जाए।

पाशा की राय में अरब जगत समेत इस समूचे क्षेत्र का कोई भी देश नहीं चाहता है कि ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ाए। ये देश मानते हैं कि इसके परिणाम समूचे क्षेत्र के लिए अच्‍छे नहीं होंगे। वहीं दूसरी तरफ ईरान के अपने बड़े सपने हैं जिसकी वजह से वो इस राह पर आगे जाना चाहता है। ऐसे में भी ये समझौता अपनी एक खास जगह रखता है।

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