RGA न्यूज़ लखनऊ सुनील यादव
लखनऊ:- कार्तिक मास की सबसे बड़ी पूर्णिमा पर उत्तर प्रदेश में लोग आज प्रयागराज, वाराणसी, कानपुर, अयोध्या, हापुड़ सहित अन्य जिलों में नदियों में आस्था की डुबकी लगा रहे हैं। देवों का महीना माने जाने वाले कार्तिक में दान, धर्म, जप, तप, दीपदान का खास महत्व है। इसी कारण लोग गंगा, यमुना, सरयू तथा गोमती के साथ अन्य नदियों में स्नान करने के बाद पूजा-पाठ तथा दान करते हैं। कार्तिक में जो लोग पूरे महीने दान व पुण्य नहीं कर पाए हैं, उन्हेंं आज के दिन जरूर दान-पुण्य करना चाहिए। जो लोग ऐसा करते हैं उनके सारे कष्टों का निवारण हो जाता है।
दीपदान का बड़ा महत्व
कार्तिक पूर्णिमा को देव दीपावली भी कहा जाता है। इस दिन दीपदान का बड़ा महत्व है। इससे अक्षय पुण्यफलों की प्राप्ति होती है और भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूर्ण कृपा प्राप्त होने से धन-संपत्ति के भंडार भर जाते हैं।
आज शाम को 5 बजकर 13 मिनट से शाम 5 बजकर 37 मिनट तक शिव परिवार का पूजन करें। इस दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी के अलावा कृतिका नक्षत्र में भगवान शिव का विधि-विधान से पूजन करने से व्यक्ति अत्यंत धनवान बनता है और उसकी सात पीढिय़ों तक गरीबी का साया नहीं पड़ता। इस दिन शिव के मंत्रों का जाप व्यक्ति को ज्ञानवान बनाता है। मान्यता है कि इस दिन संध्या के समय प्रदोषकाल में शिव परिवार का पूजन करना चाहिए।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन सूर्योदय से पहले उठकर पवित्र नदियों में स्नान करना चाहिए। अगर संभव ना हो तो घर पर नहाने के पानी में गंगा जल मिलाकर स्नान करें। फिर भगवान लक्ष्मी नारायण की आराधना करें और उनके समक्ष घी या सरसों के तेल का दीपक जलाकर विधिपूर्वक पूजा करें। कार्तिक पूर्णिमा के दिन यदि आप वर्ष की किसी पूर्णिमा का व्रत नहीं रखते हैं तो कार्तिक पूर्णिमा का व्रत जरूर रखें। इस पूरे दिन अन्न ग्रहण ना करें। पूरे दिन व्रत रखकर रात्रि में बछड़ा दान करने से शिव प्रसन्न होते हैं। इससे वंश वृद्धि होती है। ऐसा करने से उत्तम गुणों वाले, सदाचारी पुत्र-पुत्रियों की प्राप्ति होती है। इस दिन भगवान शिव का अभिषेक करने से समस्त सुखों की प्राप्ति होती है। इस दिन अविवाहित युवक-युवतियां, जिनके विवाह में किसी प्रकार की बाधा आ रही हो, वे इस दिन शिव-पार्वती का पूजन करें। शीघ्र विवाह का मार्ग खुलेगा।
हिंदू धर्म शास्त्रों में कार्तिक पूर्णिमा की बहुत व्यापक महिमा बतायी गई है
कार्तिक पूर्णिमा महिमा व्यापक
हिंदू धर्म शास्त्रों में कार्तिक पूर्णिमा की बहुत व्यापक महिमा बतायी गई है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, स्वर्ग से देवता आकर कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दिवाली मनाते हैं। इसके अलावा यह भी मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन पवित्र नदी में स्नान करने से पाप कर्मों का नाश होता है और मनुष्य के चित्त की शुद्धि होती है। कुछ भक्तों ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन व्रत भी रखा है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, दैत्य तारकासुर के तीन पुत्र तारकाक्ष, कमलाक्ष व विद्युन्माली थे। जब भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया तो उसके पुत्रों को बहुत दु:ख हुआ। उन्होंने देवताओं से बदला लेने के लिए घोर तपस्या कर ब्रह्माजी को प्रसन्न कर लिया। जब ब्रह्माजी प्रकट हुए तो उन्होंने अमर होने का वरदान मांगा। पसोपेश में फंसे ब्रह्माजी ने उन्हेंं इसके अलावा कोई दूसरा वरदान मांगने के लिए कहा। तब उन तीनों ने ब्रह्माजी से कहा कि आप हमारे लिए तीन नगरों का निर्माण करवाईए। हम इन नगरों में बैठकर सारी पृथ्वी पर आकाश मार्ग से घूमते रहें। एक हजार साल बाद हम एक जगह मिलें। उस समय जब हमारे तीनों पुर (नगर) मिलकर एक हो जाएं, तो जो देवता उन्हेंं एक ही बाण से नष्ट कर सके, वही हमारी मृत्यु का कारण हो। ब्रह्माजी ने उन्हेंं यह वरदान दे दिया।
ब्रह्माजी का वरदान पाकर तारकाक्ष, कमलाक्ष व विद्युन्माली बहुत प्रसन्न हो गए। ब्रह्माजी के कहने पर मयदानव ने उनके लिए तीन नगरों का निर्माण किया। उनमें से एक सोने का, एक चांदी का व एक लोहे का था। सोने का नगर तारकाक्ष का था, चांदी का कमलाक्ष का व लोहे का विद्युन्माली का। पराक्रम से इन तीनों ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया। इन दैत्यों से घबराकर इंद्र आदि सभी देवता भगवान शंकर की शरण में गए। देवताओं की बात सुनकर भगवान शिव त्रिपुरों का नाश करने के लिए तैयार हो गए। इसके बाद भगवान विश्वकर्मा ने भगवान शिव के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण किया। चंद्रमा व सूर्य उसके पहिए बने।
इंद्र, वरुण, यम और कुबेर आदि लोकपाल उस रथ के घोड़े बने। हिमालय धनुष बने और शेषनाग उसकी प्रत्यंचा। स्वयं भगवान विष्णु बाण तथा अग्निदेव उस बाण की नोक बने। उस दिव्य रथ पर सवार होकर जब भगवान शिव त्रिपुरों का नाश करने के लिए चले तो दैत्यों में हाहाकर मच गया। दैत्यों व देवताओं में भयंकर युद्ध छिड़ गया। जैसे ही त्रिपुर एक सीध में आए, भगवान शिव ने दिव्य बाण चलाकर उनका नाश कर दिया। त्रित्रुरों का नाश होते ही सभी देवता भगवान शिव की जय-जयकार करने लगे। त्रिपुरों का अंत करने के लिए ही भगवान शिव को त्रिपुरारी भी कहते हैं।