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श्री राममूर्ती स्मारक इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, भोजीपुरा बरेली के रक्त कोष विभाग में नैट लैब शुरू हो गई। इसका शुभारंभ एसआरएमएस के चेयरमैन देव मूर्ति ने किया। इस लैब के बनने के बाद एचआईवी और हेपेटाइटिस बी और सी संक्रमित रक्त की काफी शीघ्रता से पहचान हो सकेगी।
न्यूक्लिक एसिड एम्पलीफिएशन टेस्टिंग (नैट लैब) के ब्लड ट्रांसफ्यूजन इंचार्ज डॉ. मिलन जयसवाल ने बताया कि देश में ब्लड ट्रांसफ्यूजन के दौरान एचआईवी और हेपेटाइटिस बी और सी संक्रमित रक्त दिए जाने के कारण यह बीमारियां बढ़ रही हैं। नैट टेस्टिंग के जरिये एचआईवी और हेपेटाइटिस बी और सी संक्रमित रक्त की पहचान की जा सकेगी जो अभी तक सिरोलैजिकल टेस्ट, एलाइजा टेस्ट के जरिए की जाती थी।
सिरोलैजिकल टेस्टिंग का विंडो पीरियड अधिक होने के कारण एचआईवी और हेपेटाइटिस बी और सी का संक्रमण कम समय में पता नहीं किया जा सकता था। जिसके कारण मरीजों को संक्रमित रक्त चढ़ाए जाने की संभावना अधिक रहती है। नैट टेस्टिंग एक बेहद संवेदनशील और उन्नत तकनीक है।
जिसके द्वारा संक्रमित रक्त चढ़ाए जाने की संभावना बहुत ही कम है। पीजीआई लखनऊ से आए डॉ. राहुल कठारिया ने नैट लैब के बारे में बताया कि ब्लड ट्रांन्सफ्यूजन के दौरान एचआईवी एवं हेपेटाइटिस बी और सी जैसे वायरस का संक्रमण का खतरा इस तकनीक के द्वारा लगभग शून्य हो जाता है। डॉ. मिलन जायसवाल के अनुसार थैलेसीमिया और हिमोफीलिया के मरीजों को बार-बार ब्लड की आवश्यकता पड़ती है इस स्थिति में उन्हें सदैव रक्त संक्रमण का खतरा बना रहता है जो इस नैट लैब के बाद लगभग समाप्त हो जायेगा।
डॉ एसके हाण्डा ने बताया कि यदि कोई व्यक्ति डोनर हेपेटाइटिस संक्रमण के 56 दिनों के भीतर व एचआईवी संक्रमण के 25 दिनों के अस्पताल में रक्तदान करने आता है तो जांचों द्वारा यह पता नहीं लगाया जा सकता है कि उसके खून में यह वायरस मौजूद है या नहीं परंतु नैट लैब से इसका पता लगभग 5-15 दिन के भीतर किया जा सकता है। मेडिकल डॉयरेक्टर डॉ निर्मल यादव, मेडिकल सुप्रिन्टेंटेड डॉ एसके हांडा और प्रशासनिक निदेशक श्री आदित्य मूर्ति मौजूद थे।