Toolkit Case Explained: क्या टूलकिट संवाद-संचार का एक अहम औजार या इसकी कोई सार्थकता-उपयोगिता भी है

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RGA news

ट्विटर ने हाल में ‘मैनिपुलेटेड मीडिया’ यानी गुमराह करने वाली पोस्ट करार दिया है।

Toolkit Case Explained हाल के दिनों में जो बातें इंटरनेट मीडिया के एक अहम मंच ट्विटर के जरिये बनाई गई टूलकिट से कही-सुनी गई हैं और जो विवाद इनसे उठे हैं उनके चलते इसकी राजनीति को समझना जरूरी हो गया  Toolkit Case Explained इंटरनेट मीडिया के बढ़ते प्रभाव के दौर में इसकी संतुलित, तटस्थ और निष्पक्ष भूमिका के आदर्शों के तहत टूलकिट की उन कसौटियों पर जांच करना आज जरूरी हो गया है, जो इसे पूर्वाग्रहों और निहित स्वार्थों से अलग साबित कर सकें और इसके भविष्य के बारे में कोई मानक राय बनाने का मार्ग प्रशस्त कर सकें। टूलकिट की चर्चा का हालिया प्रकरण सत्तारूढ़ दल भाजपा के नेता संबित पात्रा के एक ट्वीट से जुड़ा है, जिसे ट्विटर ने हाल में ‘मैनिपुलेटेड मीडिया’ यानी गुमराह करने वाली पोस्ट करार दिया है। मैनिपुलेटेड मीडिया का अभिप्राय ऐसी तस्वीरों, वीडियो या स्क्रीनशॉट्स से है जिनके बल पर किए जाने वाले दावों की सत्यता पर संदेह हो और माना जाए कि उनके मूल स्वरूप को संपादित करते हुए उनसे छेड़छाड़ की गई है और उनमें मनमुताबिक बदलाव किया गया हो।

भाजपा के नेता संबित पात्रा ने अपने इन ट्वीट्स में दावा किया था कि यह कांग्रेस का टूलकिट है। 18 मई को संबित पात्रा ने जो ट्वीट किया था, उसमें कांग्रेस का लेटरहेड दिखाते हुए दावा किया कि उसमें यह बताया गया था कि इंटरनेट मीडिया पर किस तरह ट्वीट और जानकारी साझा करनी है। संबित पात्रा ने कुछ दस्तावेज और तस्वीरें आदि दिखाते हुए कांग्रेस पर आरोप लगाया था कि यह पार्टी एक कथित टूलकिट के सहारे इंटरनेट मीडिया पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि बिगाड़ने का काम कर रही है। उसमें ‘सुपर स्प्रेडर कुंभ’ और कोरोना वायरस के म्यूटेंट स्ट्रेन के लिए ‘मोदी वैरिएंट’ जैसे शब्दों का उपयोग किया गया है। साथ ही मोदी सरकार को कठघरे में लाने के लिए विदेशी मीडिया की मदद लेने, भारत में शवों और जलती चिताओं आदि की तस्वीर उपलब्ध कराने में उनकी मदद करने, कुंभ के आयोजन को भारतीय जनता पार्टी के हिंदू एजेंडा से जोड़ने, कोरोना काल में राजनीतिक लाभ उठाने की बात कही गई है।

इंटरनेट मीडिया और टीवी चैनलों के जरिये संबित पात्रा ने ऐसे कई सबूत पेश किए जिनमें दावा किया गया कि यह देशविरोधी टूलकिट कांग्रेस रिसर्च विंग से जुड़ी और पार्टी के शीर्ष नेताओं की करीबी सौम्या वर्मा ने तैयार की थी। संबित ने राहुल गांधी के साथ फोटो में खड़ी सौम्या की तस्वीर भी जारी की। जैसा कि स्वाभाविक था, कांग्रेस ने ऐसी कोई टूलकिट तैयार करने से साफ इन्कार किया है। यही नहीं, मामला उजागर होने के बाद सौम्या वर्मा ने अपने इंटरनेट मीडिया अकाउंट भी बंद कर दिए। भले ही कांग्रेस ने खुद को इस मामले से अलग करने की पुरजोर कोशिश की, लेकिन कांग्रेस की इंटरनेट मीडिया टीम की सदस्य संयुक्ता बासु का एक ट्वीट इसमें पार्टी की संलिप्तता का संकेत करता है। इसमें संयुक्ता ने टूलकिट को सही ठहराया है और लिखा है कि विरोधी (भारतीय जनता पार्टी) की छवि को ध्वस्त करना विपक्ष का काम है और कांग्रेस अच्छा काम कर रही है।

 

यह मामला कई वजहों से बेहद बड़ा हो गया है। खास तौर से जिस तरह से ट्विटर ने पात्रा के ट्वीट को टैग किया (उसे मैनिपुलेटेड मीडिया वाली पोस्ट बताया), उससे केंद्र सरकार ने अपनी असहमति प्रकट की। सरकार ने कहा कि ट्विटर की भूमिका मीडिया के एक माध्यम की है, जबकि इस पर एक्शन लेकर उसने एक फैसला देने की कोशिश की है, जो गलत है। सरकार ने यह भी साफ किया कि ट्विटर की ओर से ऐसी टैगिंग उसके पूर्वाग्रह को दर्शाती है और यह समानता व पक्षपात के मूल्यों का उल्लंघन है। यही नहीं, इस मामले में कानूनी एजेंसियां जांच में लगी हुई हैं। इसी क्रम में 24 मई को ट्विटर की भारतीय इकाई को इस संबंध में एक नोटिस भेजा गया। इसी दिन दिल्ली पुलिस की एक स्पेशल टीम ने ट्विटर इंडिया के दिल्ली और गुड़गांव स्थित दफ्तरों में पहुंचकर अपने हाथों से नोटिस थमाया। इस बीच टूलकिट का मामला सुप्रीम कोर्ट तक चुका है। सर्वोच्च अदालत में दाखिल एक याचिका में कहा गया है कि टूलकिट मामले में कांग्रेस पर जो आरोप लगाया गया है उसकी जांच की जाए। अगर जांच में पाया जाता है कि कांग्रेस पार्टी राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में संलिप्त है तो पार्टी का रजिस्ट्रेशन निलंबित किया जाए। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अर्जी में कांग्रेस, केंद्र और चुनाव आयोग को प्रतिवादी बनाया गया है।

 

 

 

कृषि कानून विरोधी आंदोलन और ग्रेटा थनबर्ग की टूलकिट : टूलकिट से जुड़ा मौजूदा प्रसंग निश्चय ही काफी चर्चा में आ गया है, लेकिन इससे जुड़ा एक बड़ा किस्सा इस साल की शुरुआत में घटित हो चुका है। दरअसल कृषि कानून विरोधी आंदोलन के दौरान फरवरी में स्वीडन की पर्यावरण कार्यकर्ता किशोरी ग्रेटा थनबर्ग ने ट्विटर पर एक टूलकिट साझा करते हुए लिखा था कि अगर आप किसानों की मदद करना चाहते हैं तो आप इस टूलकिट की मदद ले सकते हैं। यह टूलकिट सामने आई तो इससे जुड़े कई मामलों का पर्दाफाश भी हुआ। जैसे यह पता चला कि इसे बनाने और प्रसारित करने में मुख्य भूमिका भारत की युवा पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि की है। यह जानकारी भी सामने आई कि इसके निर्माण में खालिस्तान समर्थक संगठन उस पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन का भी हाथ है, जिसके सह-संस्थापक धालीवाल कनाडा के वैंकूवर में रहते हैं।

इन जानकारियों के सामने आने पर भाजपा ने दावा किया कि किसानों के आंदोलन के पक्ष में जारी की गई टूलकिट से खालिस्तान समर्थकों का जुड़ाव साबित करता है कि यह आंदोलन एक प्रायोजित कार्यक्रम है और भारत को तोड़ने वाले खालिस्तान समर्थक इस आंदोलन का हिस्सा हैं। हालांकि इस मामले में दिशा रवि की गिरफ्तारी भी हुई, लेकिन दिल्ली की एक अदालत ने उन्हें यह कहते हुए तिहाड़ से रिहा करवाया कि इंटरनेट मीडिया पर एक वाट्सएप ग्रुप बनाना और कोई नुकसान नहीं पहुंचाने की नीयत से बनाई गई टूलकिट का संपादक होना कोई जुर्म नहीं है। हालांकि दिल्ली पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में इस टूलकिट को ‘लोगों में विद्रोह पैदा करने वाले दस्तावेज’ के रूप में दर्ज किया था और इसी आधार पर अपनी जांच के दायरे में लिया था।

सूचना पर नियंत्रण : इसमें संदेह नहीं है कि जब से देश और दुनिया में इंटरनेट मीडिया के विभिन्न मंचों का इस्तेमाल बढ़ा है, उस पर कही-सुनी-लिखी और दिखाई जाने वाली बातों के नियमन का मसला काफी पीछे छूट गया है। फेसबुक, ट्विटर, वाट्सएप, इंस्टाग्राम के दौर से पहले की दुनिया में सूचनाएं और जानकारी पहुंचाने के रूप में जो मीडिया (अखबार और टीवी चैनल) सक्रिय थे, उन पर सूचनाओं के प्रवाह और नियंत्रण की कमान इसके यानी मीडिया के जानकारों के हाथ में थी। ऐसे में आम जनता तक पहुंचने वाली कोई भी सूचना संपादन के काफी सख्त नियम-कायदों के चरणों से होकर गुजरती थी। लेकिन इंटरनेट मीडिया के प्रादुर्भाव ने यह कंट्रोल खत्म कर दिया है।

हालांकि इसका सबसे सकारात्मक पहलू यह है कि जिस सूचना को सत्ता-प्रशासन दबाना चाहता है, वह भी फौरन जनता तक पहुंच जाती है। सूचना के इस लोकतांत्रिकरण की वजह से हालत यह हो गई है कि आज के दौर में बहुतेरे टीवी चैनल सरकार के पैरोकार के रूप में कुख्यात हो गए हैं और जनता में एक बड़ा वर्ग उन चैनलों की बजाय इंटरनेट मीडिया पर आई सूचनाओं में ज्यादा यकीन करने लगा है। पर इस दौर में भी अखबारों की सत्यता और विश्वसनीयता उस तरह खंडित नहीं हुई, जैसा टीवी न्यूज चैनलों के संबंध में हुआ है। पर यहां प्रश्न है कि क्या इंटरनेट मीडिया के संचालकों को उसी तरह किसी तथ्य या सूचना पर अपना फैसला थोपने या राय बनाने का हक मिलना चाहिए, जैसा अधिकार अखबार या टीवी न्यूज चैनलों के संपादकों को होता है। असल में यही वह मूल प्रश्न है, जहां आकर इंटरनेट मीडिया के मंचों की जवाबदेही का धरातल तैयार होता है। इसी सवाल के साथ वे चिंताएं उठने लगती हैं कि अगर फेसबुक और ट्विटर जैसे मंच कुछ मामलों में अपने पूर्वाग्रहों से ग्रसित होकर किसी व्यक्ति के ट्वीट की टैगिंग या किसी के अकाउंट को बाधित (ब्लॉक) करने जैसे एक्शन लेंगे तो क्या उन्हें इसकी इजाजत मिलनी चाहिए

आंदोलन को बढ़ाने का सहायक दस्तावेज : हमारे देश के संदर्भ में वर्तमान में इंटरनेट मीडिया पर प्रचारित-प्रसारित टूलकिट का किस्सा जरा नया है, लेकिन बीते कुछ अरसे से दुनिया के कई हिस्सों में विशेष तौर पर आंदोलनों के परिप्रेक्ष्य में यह एक नया टूल बन गया है। अमेरिका में चले ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ और ‘एंटी-लॉकडाउन प्रोटेस्ट’ जैसे आंदोलनों में देखा गया कि इंटरनेट मीडिया की सहायता से अपने आंदोलनों को बढ़ाने वाले लोग और संचालक अपनी अगली कार्रवाइयों, योजनाओं और किए जाने वाले कार्यों का ब्यौरा बतौर ‘एक्शन पॉइंट्स’ एक खास किस्म के दस्तावेज यानी टूलकिट में दर्ज करते रहते हैं।

असल में जो दस्तावेज भावी कार्रवाइयों और योजनाओं को दर्ज करते हुए आंदोलन से जुड़े एक से दूसरे शख्स के पास पहुंचता रहता है, वह आंदोलन को बढ़ाने में सहायक टूलकिट बन जाता है। भले ही टूलकिट का सीधा वास्ता इंटरनेट मीडिया से हो, पर इसमें जिस तरह से आंदोलन को सक्रिय करने और आंदोलन की रूपरेखा तैयार करने के साथ-साथ वास्तविक रूप में विरोध प्रदर्शन करने की भावी योजनाओं को पेश किया जाता है, उससे ये किसी आंदोलन को असरदार बनाने में काफी सहायक साबित होती हैं

ये टूलकिट ठीक वैसा ही काम करती हैं, जैसा आंदोलन से जुड़े पोस्टर, नारे और उनके नेताओं के उग्र भाषण कभी आंदोलनकारियों में जोश भरते थे और भावी योजनाएं व रणनीतियां बनाते थे। इसकी रणनीति विशेषत: आंदोलन से जुड़े लोगों के बीच समन्वय स्थापित करने तक सीमित है, लेकिन इंटरनेट मीडिया के बढ़ते प्रभाव के मद्देनजर आंदोलन में धार पैदा करने के लिए हैशटैग के इस्तेमाल, फेसबुक-ट्विटर पर की जाने वाली टिप्पणियों की रूपरेखा आदि का निर्धारण भी अब इनके जरिये होने लगा है। अभी भले ही हम टूलकिट को कुछ आंदोलनों की रूपरेखा तैयार करने के औजार के रूप में देख पा रहे हैं, लेकिन राजनीतिक पार्टियों से लेकर सामाजिक संगठन और बड़ी कंपनियां तक अपने कार्यों, उत्पादों और सेवाओं के लिए ऐसी ही टूलकिट बनाने की दिशा में तेजी से बढ़ रहे हैं। हो सकता है कि आने वाले वक्त में ये टूलकिट नकारात्मक बातों की बजाय कुछ सार्थक और सकारात्मक कार्यों में अपने योगदान के लिए ज्यादा जानी जाएं।

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