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पर्वतीय क्षेत्रों में गूल निर्माण से पहले चाल-खाल के जरिए ही पानी एकत्र किया जाता था।
एसएसबी अब सीमा क्षेत्र में सूख चुके जल स्रोतों को पुनर्जीवन देगी। बल के जवानों ने इसके लिए मुहिम शुरू कर दी है। जल संरक्षण की इस मुहिम से नेपाल सीमा से जुड़े ग्रामीणों को खेती के लिए पर्याप्त पानी मिल सकेगा।
पिथौरागढ़ : भारत-नेपाल सीमा पर तैनात सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) अब सीमा क्षेत्र में सूख चुके जल स्रोतों को पुनर्जीवन देगी। बल के जवानों ने इसके लिए मुहिम शुरू कर दी है। जल संरक्षण की इस मुहिम से नेपाल सीमा से जुड़े ग्रामीणों को खेती के लिए पर्याप्त पानी मिल सकेगा
पर्वतीय क्षेत्रों में गूल निर्माण से पहले चाल-खाल के जरिए ही पानी एकत्र किया जाता था। इसके लिए गांवों के ऊपरी हिस्से में खाली पड़ी भूमि में तालाब के आकार के गड््ढे बनाकर उनमें वर्षा जल का संग्रहण किया जाता है। गूलों का निर्माण शुरू हो जाने के बाद यह पहाड़ में जल संरक्षण की यह परंपरा लगभग विलुप्त हो गई।
भारत नेपाल सीमा का नदी घाटी क्षेत्र बेहद ऊपजाऊ माना जाता है, लेकिन अब यहां पानी की कमी के चलते लोग खेती से मुंह मोड़ रहे हैं। एसएसबी ने इस क्षेत्र के जल संकट को एक चुनौती के रू प में लिया है। बल ने अपने क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले गांवों में चाल-खाल को पुनर्जीवित करने का निर्णय लिया है। पिथौरागढ़ में तैनात एसएसबी की 55 वीं वाहिनी के कार्यवाहक कमांडेंट रवींद्र कुमार राजेश्वरी के निर्देश पर राउतगढ़ गांव में इसकी शुरू आत की गई। कमांडेंट राजेश्वरी ने कहा है कि जल संरक्षण इस समय एक बड़ी चुनौती है। पानी बचाने के लिए सामूहिक पहल के साथ जल संरक्षण की पुरानी तकनीक को पुनर्जीवित किया जाना जरू री है।
राउतगढ़ा में पहुंची एसएसबी की टीम ने वर्षा जल संरक्षण के लिए चाल-खाल का निर्माण शुरू किया। इस दौरान ग्रामीणों को जल संरक्षण का महत्व समझाया गया। ग्रामीणों ने पानी बर्बाद न कर हर बूंद को सहेजने के लिए प्रेरित किया गया।