आपके अनुरोध पर मैं ये गीत सुनाता हूं अपने दिल की बातों से, आप का दिल बहलाता हूं आप के अनुरोध पे .

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आपके अनुरोध पर मैं ये गीत सुनाता हूं अपने दिल की बातों से, आप का दिल बहलाता हूं आप के अनुरोध पे ...पुस्तक का नाम : ‘नगमे, किस्से, बातें, यादें: द लाइफ एंड लिरिक्स ऑफ आनंद बक्षी’

हर मिजाज का सुघर गीत रचने वाले गीतकार की जिंदगी की यह किताब ‘नगमे किस्से बातें यादें द लाइफ एंड लिरिक्स ऑफ आनंद बक्षी’ फिल्म संगीत प्रेमियों को जरूर पढ़नी चाहिए। इसलिए भी कि गीतों में व्यक्त जीवन के फलसफे को समझा जा सके।

 यतीन्द्र मिश्र। अपने दौर के सफलतम गीतकार और सबसे अधिक संख्या में हिट गीत लिखने वाले आनंद बक्षी के जीवन और गीतयात्रा को उनके बेटे राकेश आनंद बक्षी ने जिस किताब ‘नगमे, किस्से, बातें, यादें: द लाइफ एंड लिरिक्स ऑफ आनंद बक्षी’ में समेटा है, वह जीवनी से अधिक संस्मरणों और गीतों के बनने की कहानी, विश्लेषण की किताब है। यह अलग बात है कि इतने लोकप्रिय इंसान का जीवन खंगालने में बहुत कुछ रोचक और पठनीय भी हाथ में आता है। इसे पढ़ते हुए अनायास ही वो गीतकार भी याद आते हैं, जिन्र्हें हिंदी पट्टी के रचनाकार होने के कारण हिंदी फिल्म गीतों में सम्मान मिलता रहा है।

आनंद बक्षी पर आधिकारिक तौर यह पहली प्रकाशित कृति है, जो इस बात की आश्वस्ति भी रचती है कि कभी हिंदी या अंग्रेजी में पं. भरत व्यास, गोपाल सिंह नेपाली, इंदीवर, राजेंद्र कृष्ण और योगेश जैसे गीतकारों पर भी कुछ बेहतरीन पढ़ने को सुलभ होगा। गीतकारों की एक बड़ी परिपाटी ने हिंदी फिल्म गीतों को समृद्ध बनाते हुए भाषा का व्यवहार भी उन्मुक्त किया है। ऐसी किताबों के प्रकाशन से भाषा और सिनेमा के आपसी सामंजस्य का विमर्श मजबूती पाता है। फौजी आनंद प्रकाश बक्षी का जीवन इतना रंग-बिरंगा होगा, इस किताब को पढ़े बिना जाना ही नहीं जा सकता। आजादी के चंद महीनों के बाद जबलपुर, मध्य प्रदेश में नवंबर, 1947 में सेना में जब वे शामिल हुए, तब उनकी उम्र मात्र 17 साल थी। बाद में उन दिनों को याद करते हुए वे कहते थे, ‘आजकल पचासों नर्तक-नर्तकियों के साथ नायक/नायिका के सम्मुख किसी गीत को पिक्चराइज होते देखने में मुझे फौज के दिनों की याद आती है, जिनमें हम पचासों नौजवान ग्राउंड में एक ट्रेनिंग ऑफिसर के निर्देशन में वर्जिश करते हुए मौजूद रहते थे।’

किताब में गीतकार के जीवन से जुड़ी हुई ढेरों जानकारियां आसानी से रखी गई हैं। लेखक इन पर बिना अतिरिक्त बोझ डाले वो सब बातें सहजता से अपने पाठकों को बता देना चाहता है, जिनके लिए आनंद बक्षी का कद ऐतिहासिक महत्व रखता है। किस तरह एक कवि के रूप में उन पर पहला सबसे गहरा प्रभाव दीनानाथ मधोक जैसे गीतकार का पड़ा, जो के. एल. सहगल के जमाने में स्थापित हो चुके थे। संगीतकार रोशन ने जब उन्हें ‘सी. आई. डी. गर्ल’ के लिए गीत लिखने का मौका दिया, तो वह उनके लिए कॅरियर का बड़ा मौका साबित हुआ। ‘मेंहदी लगी मेरे हाथ’ में उन्होंने कामयाब संगीतकार जोड़ी कल्याणजी-आनंदजी के साथ पहली बार काम किया। बाद में यह गीतकार-संगीतकार जोड़ी 34 सफल फिल्मों में नजर आई।

आनंद बक्षी के तीन प्रमुख संगीतकारों में एस. डी. बर्मन, आर. डी. बर्मन और लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल शामिल रहे हैं। जब वे बंबई (अब मुंबई) में नए-नए थे, तो उन्हें इस बात के लिए बड़ी मेहनत करनी पड़ी कि कैसे भी सचिन देव बर्मन उनकी कविता सुन लें। एस. डी. बर्मन के साथ दो गीत उन्होंने 1964 में रिकॉर्ड किए, जिन्हें लता मंगेशकर की आवाज मिली। हालांकि ‘अनजाने में इन होठों पे’ और ‘धन वालों का ये जमाना’ दुर्भाग्य से कभी रिलीज नहीं हो सके। उन्होंने 1969 में ‘आराधना’ में साथ काम किया और इस फिल्म की अपार सफलता ने आनंद बक्षी को चोटी का गीतकार बना दिया। इसी तरह के ढेरों तथ्यों और उनसे रागात्मक संबंध बनाती हुई इस किताब में ऐसे कितने ही मुकाम तलाशे जा सकते हैं, जहां एक सादगीपसंद गीतकार का जीवन उनके गीतों के माध्यम से मुखरित होता है।

आनंद बक्षी कवि के रूप में भी अपनी पहचान कराते हैं। उनके बेटे ने बड़ी इज्जत और भावना के साथ उनके किस्सों, बयानों को इस तरह समेटा है कि गीतकार की सूक्तियों में कही गई बात भी नए ढंग से पढ़ने पर कविता की परिभाषा सरीखी लगती हैं। उन्होंने कहा था, ‘कविता से अलग, फिल्मी गीत फिल्मों के लिए लिखे जाते हैं, जिनके बनने में लाखों रुपए खर्च होते हैं। इसलिए हर एक गाने को लोकप्रिय होना चाहिए ताकि वह फिल्म को मुनाफा देने में मदद कर सके, ताकि जो पैसा उसे बनाने में लगाया गया है, उसकी वसूली हो सके। इस अर्थ में फिल्मों के लिए गाने लिखना एक चुनौती से कम नहीं है।’ इसी तरह वे दूसरी जगह कहते हैं, ‘एक कवि अकेला ही सामने आता है, जबकि एक गीतकार अपने ऑर्केस्ट्रा के साथ सामने आता है।’ उन्होंने अपने फिल्मी गीतों की सफलता के लिए कम ही फिल्मों को रेखांकित किया है, जिसमें ‘जब-जब फूल खिले’, ‘फर्ज’, ‘आराधना’, ‘अमर प्रेम’, ‘आए दिन बहार के’ और ‘मिलन’ शुमार हैं। वे स्वीकारते हैं कि ‘मिलन’ फिल्म के प्रदर्शन और उसके गीतों की बेशुमार सफलता के बाद उन्हें काम की कमी फिर कभी नहीं हुई- ‘मेरे आराध्य कृष्ण ने मेरा दामन भरा और मेरे सारे सपने पूरे किए।’ ऐसे हरफनमौला, हर मिजाज का सुघर गीत रचने वाले गीतकार की जिंदगी की यह किताब फिल्म संगीत प्रेमियों को जरूर पढ़नी चाहिए। इसलिए भी कि गीतों में व्यक्त जीवन के फलसफे को समझा जा सके।

पुस्तक का नाम : ‘नगमे, किस्से, बातें, यादें: द लाइफ एंड लिरिक्स ऑफ आनंद बक्षी’

लेखक : राकेश आनंद बक्षी

प्रकाशक : पेंगुइन रेंडम हाउस इंडिया, गुरुग्राम

मूल्य: 599 रुपए

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