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मन की उस पीर का कोई पैमाना ही नहीं था, जिसके साथ कभी मंडप में अग्निदेव को साक्षी मानकर सात फेरे लिए थे, हमसफर बने थे, आज चिता की मुखाग्नि के साथ उसे अंतिम विदाई दे रही थी।
कैंसर पीड़ित पति की आखिरी इच्छा थी, जिसका जिंदगी भर के लिए हाथ थामा था, वही हाथ चिता को मुखाग्नि देकर उसे आखिरी सफर पर रवाना करे। ममता रो रही थी, हाथ कांप रहे थे लेकिन पति की आखिरी इच्छा पूरी करने की खातिर उसने कलेजा पत्थर सा बना लिया था। हर आंख नम थी, हर दिल उदास।
मलूकपुर में रहने वाले दीपक सैनी गुलाब के फूलों का कारोबार करते थे। उनके पिता बाबूराम रेलवे से रिटायर हैं और बड़े भाई राजीव सैनी क्रिकेट कोच हैं। दीपक की शादी करीब 16 साल पहले ममता से हुई थी। शादी के कई साल तक दोनों को कोई बच्चा नहीं हुआ। शायद कोई संतान नहीं होने की वजह से दोनों की जिंदगी में एक-दूसरे की अहमियत, प्रेम का रंग गाढ़ा होता गया था।
लेकिन किस्मत को उनका साथ अधिक दिनों तक मंजूर नहीं था, दीपक को गले का कैंसर हो गया था और डाक्टरों ने साफ बता दिया था, वक्त अधिक नहीं है जिंदगी में। इस बीच दीपक और ममता ने एक बच्ची भी गोद ले ली थी।
दीपक का इलाज चलता रहा, कई अस्पतालों में दिखाया। आखिर दो-तीन माह पहले ही डाक्टर ने बता दिया था कि अब सांसें अधिक नहीं बची हैं। दीपक ने परिवार के सामने इच्छा जताई, जिसके साथ जिंदगी के सुख-दुख देखे, अग्नि को साक्षी मानकर हाथ थामा और जीवनसंगिनी बनाई, उनकी चिता को वही मुखाग्नि दे।