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कानपुर में एक बालक का सरानीय प्रयास।
मूलत बिहार के नवादा निवासी मजदूर परिवार का 11 साल का बेटा दूसरे बच्चों में शिक्षा की मशाल जलाकर बालश्रम का अंधेरा मिटाने में जुट गया है। श्रमिकों के बच्चों को पढऩे के साथ बच्चों को पढ़ाकर टैबलेट पर चित्रों के साथ बारीकियां भी समझाता
कानपुर, कोरोना काल ने बच्चों को इतना हाईटेक कर दिया है कि अब टैबलेट, मोबाइल, लैपटॉप पर आनलाइन पढ़ाई कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन ईंट भट्ठे पर काम करने वाले परिवार का कक्षा छह में पढऩे वाला महज 11 साल का बच्चा टैबलेट पर पढऩे के साथअन्य बच्चों को पढ़ाए तो सुखद आश्चर्य की अनुभूति होती है।
चौबेपुर के मरियानी गांव के पास स्थित कालरा ब्रिकफील्ड (ईंट-भट्ठा) पर रहने वाले 11 साल के गोविंदा की नन्हीं आंखों में बड़े ख्वाब है। आइआइटी व अन्य शिक्षण संस्थानों के शिक्षाविदों के संरक्षण में रहकर अपनी उम्र से ज्यादा समझदार हुए गोविंदा खुद पढऩे के साथ ही बच्चों को एकत्र कर पढ़ाते हैैं। बालश्रम निषेध दिवस पर वह अपने सहपाठियों को यही संदेश देते हैैं कि मजदूरी करने से बचना है तो किताबों से नाता जोडऩा पड़ेगा।
बिहार से आए माता-पिता, यहां हुआ जन्म
गोविंदा कुमार मांझी बिहार के नेवादा जिले के मुसहर समुदाय के रहने वाले हैं। कुछ वर्षों पहले ठेकेदार इनके पिता दुर्गी मांझी और माता आरती देवी को चौबेपुर में ईंट-भट्ठे पर काम करने के लिए ले आए थे। गोविंदा का जन्म भी ईंट-भट्ठों के पास बने घर में हुआ और कुछ साल तक वह अपने माता-पिता के साथ काम में हाथ बंटाते रहे। हालांकि पहले उनका दाखिला 'अपना स्कूल में हुआ, फिर वह मंधना स्थित आशा ट्रस्ट द्वारा संचालित 'अपना घर में रहकर पढऩे लगे। इसके बाद गोविंदा का प्रवेश विन्यास पब्लिक स्कूल में कक्षा तीन में कराया गया। यहां वह अब कक्षा छह में पढ़ रहे हैं।
अधिक से अधिक बच्चों को पढ़ाना चाहते
गोविंदा बताते हैं कि अपना घर के संचालक महेश कुमार के पास रहकर पढ़ाई का मोल समझा। आइआइटी व अन्य शिक्षण संस्थानों के प्रोफेसरों से बहुत सीखा। इसके बाद तय कर लिया कि अब ईंट-भट्ठों पर काम नहीं करना बल्कि सिर्फ पढऩा है और उन बच्चों को पढ़ाना है जो नासमझी के चलते बालश्रम से जुड़ गए हैं।
कक्षा एक से तीसरी तक के बच्चों को पढ़ाते गणित
कोरोना काल में स्कूल बंद हैैं तो वह कक्षा एक से तीन के बच्चों को भट्ठे के पास बुलाकर पढ़ाते हैैं। वह उन्हें गणित, ए से जेड तक की अंग्रेजी वर्णमाला, शहरों व राज्यों के नाम, फलों और जीवों के नाम के साथ ही कई अन्य उपयोगी जानकारी देते हैं और टैबलेट पर चित्र भी दिखाते हैैं। वह कहते हैैं कि ये बच्चे पढ़ लिखकर ही बालश्रम कुप्रथा से दूर होंगे।
मां की तमन्ना,अच्छे से पढ़-लिख जाए बेटा
गोविंदा की मां आरती देवी कहती हैैं। बेटा पढ़ाई में दिल लगा रहा है। अब तो बस यही तमन्ना है कि वह अच्छे से पढ़ लिख जाए ताकि परिवार का सहारा बने।