

RGAन्यूज़
पशुपति कुमार पारस, चिराग पासवान, राम विलास पासवान
लोजपा में ऐसा भी सकता है इसका अंदाज लगाना मुश्किल था। पशुपति कुमार पारस ने अपने भाई स्व राम विलास पासवान की विरासत पर कब्जा जमा लिया। चिराग पासवान अलग-थलग पड़ गए हैं। सबकी निगहों लगी हुई है।
जमुई। लोजपा में टूट के बाद सबकी निगाहें चिराग पासवान पर लगी है। पहले संसदीय दल के नेता से उन्हें हटाया गया और एक ही दिन बाद अध्यक्ष पद की कुर्सी से भी मुक्त कर दिया गया। सूरज भान लोजपा के कार्यकारी अध्यक्ष बनाए गए हैं। लोजपा के पांच सांसदों ने पशुपति कुमार पारस के प्रति अपनी निष्ठा जताई है। लोजपा में चिराग को लगाकर छह सांसद हैं। चिराग पासवान जमुई लोकसभा से सांसाद है।
अब प्रश्न यह है कि चिराग क्या करेंगे। चिराग को राजद ने पार्टी में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया है। भारतीय जनता पार्टी इस पूरे प्रकरण का चुप है। जदयू चिराग के खिलाफ आग उगल रह है। चिराग पासवान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थक हैं। प्रधानमंत्री से चिराग पासवान काफी प्रभावित हैं। लेकिन चिराग को जदयू पसंद है, खासकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार। उसी प्रकार जदयू को भी चिराग पसंद नहीं है। जदयू और भाजपा में गठबंधन है। चिराग भी केंद्र में नरेंद्र मोदी के साथ हैं। अकेले पड़े चिराग का अब क्या भविष्य होगा, इसपर सबकी नजर है।
यह सर्वविदित है कि पूर्व मंत्री स्व रामविलास पासवान ने अपने दोनों भाईयों पशुपति कुमार पारस और स्व रामचंद्र पासवान को राजनीति का ककहरा सिखाया। खुद राम की तरह लक्ष्मण भाइयों को फर्श से अर्स तक पहुंचाया। उसी राम के चिता की आग ठंडी भी नहीं हुई और एक साल में उसकी विरासत लक्ष्मण पारस ने ही छीन ली। वह भी तब जब बड़े भाई की मौत के बाद परिवार और पार्टी को देखभाल की जिम्मेवारी साथसद पारस पर थी।
यहां बता दें कि स्व रामविलास पासवान ने अपने जीते जी अपनी विरासत अपने पुत्र चिराग को सौंप दी थी। फिल्मी दुनिया के चकाचौंध से लौटे चिराग ने भी उस विरासत को आगे बढ़ाया और पार्टी को युवा विचारधारा के साथ आगे बढ़ाने की रणनीति अपनाई। यही बात चाचा पारस की नागवार गुजरी, क्योंकि वह पुराने विचारधारा के साथ पार्टी को लेकर चलना चाहते थे।
पिता का अपमान सह नहीं पाए थे चिराग
बात उस वक्त की है जब लोजपा सुप्रीमो जिंदा थे। लोकसभा चुनाव के दौरान अपनी हाजीपुर सीट अपने लक्ष्मण भाई पशुपति पारस को सौंप दी। उस वक्त भी लोगों ने समझाया कि पारस जी कभी भी बदल सकते हैं। इसलिए यहां से चिराग अपनी मां रीना पासवान को चुनाव लड़ाएं। उस समय भी रामविलास पासवान को अपने लक्ष्मण भाई पर भरोसा जताया। अस्वस्थ रहने के कारण बीजेपी ने रामविलास पासवान के लिए राज्यसभा की सीट छोड़ दी। गठबंधन में रहने के कारण जदयू सुप्रीमो नीतीश कुमार की सहमति भी जरूरी थी। उस वक्त स्व रामविलास पासवान को नीतीश से मिलने के लिए टाइम लेने में काफी मशक्कत करनी पड़ी थी। नामांकन पत्र दाखिल करने से पहले भी जदयू सुप्रीमो ने उन्हें काफी नसीहत दी थी। दूसरी बारी आई थी,जब रामविलास पासवान बीमार पड़े। उस वक्त भी जदयू सुप्रीमो ने 15 दिनों तक हालचाल जानना भी मुनासिब नहीं समझा।
यह दोनों बात चिराग के मन में घर कर गया। बात चाचा पारस के कानों तक भी पहुंची, लेकिन उन्होंने अनसुना कर दिया। लेकिन पुत्र तो पुत्र ही होता है। पिता के अपमान को कैसे बर्दाश्त कर लेता। उसी वक्त चिराग ने जदयू सुप्रीमो से दो-दो हाथ करने की ठान ली। विधानसभा चुनाव में इसका परिणाम सामने आ गया।
पासवान समाज चिराग को ही मानते हैं नेता
पूरे बिहार में पासवान जाति का वोट बैंक से लगभग सात प्रतिशत है। दलित सेना अध्यक्ष रविशंकर पासवान की बात मानें तो पासवान समाज आज भी रामविलास पासवान का उत्तराधिकारी चिराग पासवान को मानते हैं। वह जिधर जाएंगे,जनता उधर ही रहेगी। पारस जी का यह फैसला क्षणिक है। लंबा रेस का नेता तो चिराग जी हैं। उन्होंने बताया कि परिवार को संभालने की बारी आई तो लक्ष्मण जैसे भाई ही दगा दे गए।