पहाड़ सी जिंदगी जीया, खेतों में पसीना बहाकर बेटे की राह की आसान, जानिए पूरा मामला 

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RGAन्यूज़

2021 में पीसीएस क्वालीफाइ करने वाले चौधरी हेमंत चौधरी अपने पिता जगदीश सिंह के साथ

लोधा क्षेत्र के गांव डिगसी निवासी चंद्र किशोर शर्मा के जीवन में भी बड़ा संघर्ष रहा मगर उन्होंने हार नहीं मानी। मात्र 10 बीघा खेती में ही उन्होंने पूरे छह बेटे और बेटियों को पढ़ाया लिखाया। सबसे छोटे बेटे को नरेंद्र कुमार गौड़ को एमबीए के लिए हगरी भेजा

 अलीगढ़ । लोधा क्षेत्र के गांव डिगसी निवासी चंद्र किशोर शर्मा के जीवन में भी बड़ा संघर्ष रहा, मगर उन्होंने हार नहीं मानी। मात्र 10 बीघा खेती में ही उन्होंने पूरे छह बेटे और बेटियों को पढ़ाया लिखाया। सबसे छोटे बेटे को नरेंद्र कुमार गौड़ को एमबीए के लिए हंगरी भेजा।

परिवार की जिम्‍मेदारियों ने रोकी राह

चंद्र किशोर शर्मा ने अर्थशास्त्र से एमए किया है। आगे तैयारी करके सरकारी नौकरी की बहुत इच्छा थी, मगर परिवारिक परिस्थितियां अनुकूल नहीं थी, इसलिए वह सरकारी नौकरी नहीं कर सकें। बाद में शादी-ब्याह हुआ फिर परिवार की जिम्मेदारियों के बोझ तले दब गए। चंद्र किशोर शर्मा के पांच बेटे और एक बेटी है। इनमें से सभी को बीए, एमए कराया। फिर पांचों बच्चों की शादी की। चंद्र किशोर शर्मा बताते हैं कि मात्र 10 बीघे खेती होने के चलते जीवन संघर्ष से भरा रहा, मगर बच्चों को कभी कोई कमी नहीं होने दी। उनकी पढ़ाई-लिखाई ठीक से हाे सके इसके लिए दूध का कारोबार भी किया, जिससे धीरे-धीरे घर की गाड़ी आगे बढ़ती गई। सबसे छोटा बेटा नरेंद्र कुमार गौड़ पढ़ने में काफी अच्छा है। उसे जामिया-मिलिया इस्लामिया विवि, दिल्ली से बीएससी कराया। एएमसी के लिए मुंबई भेजा। इसी बीच नरेंद्र ने मार्च 2021 में एमबीए के लिए हंगरी में इंटरव्यू दिया। सौभाग्य से वो उसमें सफल हो गया। चंद्र किशोर ने कहा कि कभी सोचा भी नहीं था कि बेटा विदेश में पढ़ाई करेगा, मगर मेहनत सफल हुई। नरेंद्र कुमार गौड़ कहते हैं कि पिताजी के संघर्ष को देखकर कई बार मेरी भी आंखें भर आती थीं, मगर उनका आत्मविश्वास कभी नहीं डगमगाया, जिसकी बदौलत मैं आज यहां तक पहुंचा हूं।

खेतों में पसीना बहाकर बेटे को बनाया पीसीएस

अलीगढ़ । वैसे तो पिता संघर्ष की कहानी होते हैं, मगर कई बार यह संघर्ष इतना बड़ा लगता है कि मानों पहाड़ सा लगने गलता है। कुछ लोग इस संघर्ष में टूट जाते हैं तो कुछ मिसाल बन जाते हैं। कमालपुर गांव के जगदीश सिंह भी उनमें से एक हैं। छोटे से खेतिहर जगदीश सिंह ने अपने बेटे को काबिल बनाने के लिए जी-तोड़ मेहनत की। साइकिल से अपनी जिंदगी की गाड़ी खींचते रहे और बेटे को पढ़ाने के लिए पूरी ख्वाहिशें पूरी करते रहें। अपनी जरूरतों को कम किया और बेटे को पढ़ाई में भरपूर सहयोग किया। जगदीश सिंह की मेहनत रंग लाई और उनके बेटे ने फरवरी 2021 में पीसीएस क्वालीफाइ कर लिया।

रंग लाई पिता का मेहनत

जगदीश सिंह अतरौली तहसील क्षेत्र के गांव कमालपुर के रहने वाले हैं। इनके दो बेटियां और एक बेटा हेमंत चौधरी हैं। मात्र 12 बीघे खेती है। जगदीश सिंह बताते हैं कि किसान का जीवन संघर्ष में ही व्यतीत होता है। खेत में पसीना बहाता है, जी-तोड़ मेहनत करके अनाज पैदा करता है। इसके बाद आंधी-बारिश और आग से बच जाए तो किसान का अनाज, वरना तो कई बार फसल घर तक नहीं आ पाती है। बेटा हेमंत चौधरी बचपन से पढ़ने में तेज था, मगर किसान होने के चलते उसे अच्छे स्कूल में शिक्षा नहीं दे सकें। प्रारंभिक शिक्षा सरकारी स्कूलों में हुई। बीए नहल में श्रीराम महाविद्यालय से किया। हेरीटेज इंटरनेशनल से बीएड और एमए वाष्र्णेय कालेज से कराया। हेमंत एएम गोल्ड मेडलिस्ट है। उसे जब यह सफलता मिली तो मेरी आंखे भर आईं थीं। 2017 में उसने पीसीएस की तैयारी शुरू कर दी। 2019 में पहली ही बार में उसने मेन और इंटरव्यू क्वालीफाइ कर लिया। हालांकि, इसका परिणाम 21 फरवरी 2021 को आया। उसे नायब तहसीलदार के पद पर ज्वाइनिंग मिली है।

संघर्ष से कभी नहीं घबराए

हेमंत चौधरी कहते हैं कि सिर्फ 12 बीघे खेती में घर का खर्चा चलना मुश्किल होता है। उसपर पिताजी ने बड़ी बहन की शादी की। वर्ष 2014 में मैं अलीगढ़ आ गया था। उस समय किराए के कमरे में रहा करता था। पढ़ाई आदि का कुल खर्च मिलाकर चार हजार रुपये होते थे, वो किस तरह मुझे पैसे देते थे मैं समझ सकता हूं। कई बार उनके सामने विषम परिस्थितयां आईं। मैंने पिताजी से मना भी किया कि आप पैसे मत भेजा करिए, मैं किसी तरह से व्यवस्था कर लूंगा, मगर उन्होंने मुझसे कहा कि तू सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान दे। वो अधिकांश साइकिल से ही चलते थे, जिससे बचत करके पैसे हमारी पढ़ाई में लगा सकें। उन्होंने हमेशा अपनी जरूरतों को समेटा और हमारी पढ़ाई के लिए पैसे देते रहें। वह पिता के संघर्ष भरे जीवन को कभी नहीं भूलेंगे।

पिता की मेहनत से फर्श से अर्श पर पहुंचे मनु

पिता एक पेड़ की तरह होते हैं, जिनकी छांव में हमारा पूरा जीवन सुरक्षित होता है। पिता के होने पर हमें किसी का ना तो डर होता है और ना ही हम अपने सामने आने वाली परेशानियों को बड़ा समझते हैं। अमेरिका की स्टैनफोर्ड यूनिविर्सटी से सौ फीसद स्कालरशिप पाने वाले अकराबाद निवासी मनु चौहान की सफलता के पीछे भी पिता प्रमोद कुमार चौहान का संघर्ष ही है। वे एक बीमा विक्रेता हैं। परिवार की आय सीमित है, लेकिन प्रमोद चौहान ने कभी बेटे के सपनों को सीमित नहीं रहने दिया। दिन की कड़ी मेहनत से जहां मनु को अचछी शिक्षा दिलाई, वहीं वहीं अच्छे संस्कारों से समाज के लिए कुछ करने का पाठ भी पढ़ाया। प्रमोद चौहान ने गांव में रहने के बाद भी बेटे को बुलंदशहर के विद्याज्ञान स्कूल में प्रवेश के लिए प्रेरित किया। मनु ने जब पिता के सामने स्टैनफोर्ड यूनिविर्सटी के बारे में प्रस्ताव रखा तो उन्होंने तुरंत हामी भर दी। मनु चार साल तक अमेरिका में जाकर पढ़ाई करेगा।

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