इस बार बांका के महुआ का स्वाद चखने नहीं पहुंचे गजराज... हर साल झारखंड और बंगाल के जंगलों से बहुचता था झूंड

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RGA न्यूज़

इस साल बांका के महुआ का स्‍वाद चखने के लिए हाथियों का झुंड नहीं पहुंचा।

इस साल बांका के महुआ का स्‍वाद चखने के लिए हाथियों का झुंड नहीं पहुंचा। हर साल यहां पर झारखंड और पश्चिम बंगाल के जंगलों से हाथियों का झुंड पहुंचाता है। लेकिन सीमावर्ती इलाके में प्रयाप्‍त भोजन के कारण इस साल हाथियों ने बांका का रुख नहीं किया।

 बांका। इस बार बांका के जंगलों का सारा महुआ टपक गया, मगर गजराज का झुंड बांका से विमुख बना रहा। पांच साल पहले तक झारखंड और बंगाल के जंगलों से भोजन की तलाश में हर साल गजराज (हाथी ) का झुंड बांका आता रहा है। जंगल में इसे भोजन के साथ महुआ खूब भाता था। इस कारण महीने भर तक बांका के जंगलों में मस्ती करता था। गजराज परिवार का एक से लेकर दर्जन भर तक सदस्य बौंसी मतवाला पहाड़ के रास्ते से बांका में प्रवेश कर कई इलाकों में भ्रमण करता है। अंतिम बार 2015 में एक हाथी बांका शहर के करीब दुधारी तक पहुंचा और करीब एक पखवाड़े तक रहा।

वन अधिकारी मानते हैं कि हाथी का दल भोजन की तलाश में बांका आता रहा है। पिछले कुछ साल में बांका सीमा पर ही बांस का जंगल तैयार हुआ है। वन विभाग ने वहां पानी के लिए कई चैकडैम बना दिया है। घना जंगल और पानी की उपलब्धता के कारण वह अब आगे नहीं बढ़ रहा है।

महुआ खाकर मदमस्त होते रहे गजराज

दरअसल, बिहार में महुआ का सर्वाधिक पेड़ बांका के जंगलों में है। चांदन, कटोरिया, बौंसी और बांका वन क्षेत्र में लाखों की संख्या में महुआ का पेड़ है। वनवासी सुरेश सोरेन, शंकर यादव आदि ने बताया कि जंगल में रहने वाला परिवार महुआ चुनकर अपने घरों में सुरक्षित रखता है। हाथी का दल रात के वक्त इन बस्तियों में प्रवेश कर महुआ की बोरी को ही अपना निशाना बनाते रहे हैं। इससे कई बार कई गरीबों का घर भी बर्बाद हुआ है। ग्रामीण रजन मुर्मू ने बताया कि रतजगा कर हाथी को अपने गांव से दूर भगाते रहे हैं। वन विभाग के मुताबिक 2009 में नौ की संख्या में हाथी बांका आया था। इसके पहले और बाद एक से लेकर सात की संख्या में हाथी बांका आता रहा है।

हाथी का झुंड भोजन की तलाश में भटकता है। प्रवेश वाले रास्ते में बांका सीमा पर वृक्षारोपण से घना वन तैयार हो गया है। साथ ही पिछले कुछ साल में पानी के लिए कई चैकडैम वहां बनाया गया है। कुछ हाथी पिछले साल तक जिला सीमा में यहां तक आया है। सीमा पर ही पर्याप्त भोजन-पानी मिल जाने से वह वहीं मस्ती कर वापस लौट जाता है। -राजीव रंजन, डीएफओ, बांका

नर हाथी प्रजनन और गर्भधारण के समय में झुंड से अगल होता है। वह अपने एक बार के रास्ते को कभी भूलता नहीं है। उस पथ पर मानव आबादी के दवाब या कुछ बड़ा निर्माण हो जाने से वह रास्ता भटक जाता है। इस कारण वह वापस लौट जाता है। इससे पर्यावरण को नुकसान वाली कोई बात नहीं है। -दीपक कुमार, पशु-पक्षी विशेषज्ञ

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