ओबीसी को राजकीय आरक्षण नहीं दिला सके तो राजनीति छोड़ देंगेः देवेंद्र फडणवीस

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RGA न्यूज़

ओबीसी को राजकीय आरक्षण नहीं दिला सके तो राजनीति छोड़ देंगेः देवेंद्र फडणवीस। 

 देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि या तो महाविकास अघाड़ी सरकार ओबीसी का राजकीय आरक्षण बहाल करवाए या फिर सत्ता मुझे सौंपे। यदि हम चार महीने में ओबीसी को पुनः राजकीय आरक्षण नहीं दिलवा सके तो राजनीति छोड़ देंगे।

 मुंबई। महाराष्ट्र में भाजपा इन दिनों अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के अधिकारों को लेकर आक्रामक है। शनिवार को इसी मुद्दे पर भाजपा ने राज्यव्यापी चक्काजाम किया। चक्काजाम के दौरान नागपुर में पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि या तो महाविकास अघाड़ी सरकार ओबीसी का राजकीय आरक्षण बहाल करवाए या फिर सत्ता मुझे सौंपे। यदि हम चार महीने में ओबीसी को पुनः राजकीय आरक्षण नहीं दिलवा सके तो राजनीति छोड़ देंगे। मई के अंतिम सप्ताह में सर्वोच्च न्यायालय ने स्थानीय निकायों में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का आरक्षण रद कर दिया था। उसने इस संबंध में उद्धव ठाकरे सरकार द्वारा दायर याचिका ठुकरा दी थी।

देवेंद्र फडणवीस का कहना है कि ठाकरे सरकार के नकारापन के कारण ओबीसी का राजकीय आरक्षण रद हो गया है। यदि वह इसे बहाल नहीं करवा पाती तो सत्ता के सूत्र हमें सौंप दे। हम यदि चार महीने में ओबीसी को पुनः राजकीय आरक्षण नहीं दिलवा सके तो राजनीति से ही संन्यास ले लेंगे। फडणवीस नागपुर में पार्टी द्वारा आयोजित राज्यव्यापी चक्काजाम को संबोधित कर रहे थे। फडणवीस ने कहा कि हमने न्यायालय में भी 50 फीसद से ज्यादा आरक्षण मान्य करवा लिया था। पूर्व मुख्यमंत्री के अनुसार, उन्होंने ओबीसी आरक्षण के लिए रात में अध्यादेश निकाला। उसे तुरंत राज्यपाल के पास भी भेजा। किंतु महाविकास अघाड़ी सरकार 15 महीने तक हलफनामा भी नहीं दायर कर सकी। जिसके कारण महाराष्ट्र में ओबीसी को राजकीय आरक्षण गंवाना पड़ा है।

राज्य सांख्यिकी विभाग के 2015 में जारी आंकड़ों के अनुसार, महाराष्ट्र में ओबीसी की कुल आबादी 41 फीसद है। 2011 की जनगणना के अनुसार भी राज्य में ओबीसी की जनसंख्या (कुणबी छोड़कर) 27 फीसद है। यही अन्य पिछड़ा वर्ग एक समय भाजपा का मजबूत जनाधार रहा है। गोपीनाथ मुंडे, ना.सा.फरांदे, एकनाथ खडसे जैसे अन्य पिछड़ा वर्ग के नेताओं ने भाजपा को मजबूत करने में बड़ी भूमिका निभाई है। अब भाजपा को अपना यह जनाधार कमजोर होता दिखाई दे रहा है। खासतौर से गोपीनाथ मुंडे के निधन के बाद भाजपा के पास अन्य पिछड़ा वर्ग का कोई बड़ा नेता नहीं रह गया है। मुंडे गुट के ही समझे जानेवाले एकनाथ खडसे को भी भाजपा अपने साथ नहीं रख सकी। वह अब राकांपा में जा चुके हैं। इसलिए भाजपा अपने इस पुराने जनाधार को फिर संभालना चाहती है।

हाल ही में पांच जिलों के स्थानीय निकाय चुनावों की घोषणा भी हो चुकी है। ओबीसी का राजनीतिक आरक्षण रद हो जाने के कारण वहां अब ओबीसी यह लाभ नहीं ले सकेगा। दो दिन पहले भाजपा की प्रदेश कार्यकारिणी में देवेंद्र फडणवीस ने कहा था कि ये चुनाव स्थानीय निकायों में ओबीसी का राजनीतिक आरक्षण बहाल होने तक रोके जाएं। यदि ऐसा नहीं होता तो भाजपा इन चुनावों में सभी सीटों पर सिर्फ ओबीसी उम्मीदवार ही खड़े करेगी। चाहे हारे, चाहे जीते। लेकिन ओबीसी के प्रति भाजपा के इस प्रेम पर भाजपा से ही निकले ओबीसी नेताओं के प्रहार भारी पड़ रहे हैं। राकांपा में जा चुके ओबीसी नेता एकनाथ खडसे की बेटी रोहिणी खडसे ने आज ट्वीट कर सवाल उठाया है कि ये आंदोलन करना था तो पंकजा मुंडे, एकनाथ खडसे एवं चंद्रशेखर बावनकुले जैसे ओबीसी नेताओं की बलि क्यों ली गई? 

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