भाजपा और राजद दोनों के करीबी थे बिहार के Ex DGP गुप्‍तेश्‍वर पांडेय, राजनीति ने किया ये हाल

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गुप्‍तेश्‍वर पांडेय। पूर्व डीजीपी के एक वीडियो से साभार

बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्‍तेश्‍वर पांडेय बक्‍सर जिले के एक साधारण किसान परिवार से ताल्‍लुक रखते हैं। भारतीय पुलिस सेवा की नौकरी के दौरान बिहार की करीब-करीब हर राजनीतिक पार्टी से उनके गहरे रिश्‍ते रहे। पुलिस महकमे में जब उनका करियर परवान चढ़ा तब राज्‍य के लालू यादव मुख्‍यमंत्री थे।

पटना, बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्‍तेश्‍वर पांडेय बक्‍सर जिले के एक साधारण किसान परिवार से ताल्‍लुक रखते हैं। भारतीय पुलिस सेवा की नौकरी के दौरान बिहार की करीब-करीब हर राजनीतिक पार्टी से उनके गहरे रिश्‍ते रहे। पुलिस महकमे में जब उनका करियर परवान चढ़ा, तब राज्‍य के मुख्‍यमंत्री लालू यादव थे और उनकी तूती बोलती थी। इसके बाद भी शासन राबड़ी का हो या फिर नीतीश कुमार का, पांडेय के सभी से संबंध ठीक ही रहे। हर बार इन्‍हें महत्‍वपूर्ण जिम्‍मेदारियों से नवाजा गया। केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार रहते उन्‍होंने अपने गृह जिले बक्‍सर के किला मैदान में एक बड़ा खेल आयोजन कराया। इसमें उद्घाटन करने के लिए लालू प्रसाद यादव तो समापन समारोह में अटल के चहेते मंत्री सैयद शाहनवाज हुसैन बक्‍सर गए।

बिहार में एनडीए सरकार बनने के बाद बढ़ी भाजपा-जदयू से करीबी

बिहार में एनडीए सरकार बनने के बाद गुप्‍तेश्‍वर पांडेय की भाजपा और जदयू से करीबी बढ़ी। बीएमपी का डीजी रहते उन्‍होंने बिहार के कई हिस्‍सों में शराबबंदी के समर्थन में सभाएं कीं। शराबबंदी बिहार के मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार का काफी महत्‍वपूर्ण फैसला है। माना जाता है कि वे इन सभाओं के जरिये मुख्‍यमंत्री की निगाह में रहना चाहते थे। हालांकि नीतीश कुमार को उनकी कार्यशैली कई बार पसंद नहीं आई और एक बार पटना के एक कार्यक्रम में उन्‍होंने इसे प्रकारांतर से जाहिर भी कर दिया था। हालांकि बाद में उन्‍होंने मुख्‍यमंत्री की पार्टी जदयू का ही दामन थामा। पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान तेजस्‍वी और तेज प्रताप ने कहा कि वे तो पुलिस की वर्दी में रहकर भी राजनीति ही करते थे। बिहार और केंद्र की राजनीति में विपक्षी दलों ने बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत से जुड़े मामले में भी उन पर राजनीति करने के आरोप लगाए थे।

 

बक्‍सर में लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ने की कोशिश

उनकी राजनीति में शुरू से दिलचस्‍पी रही। उनके गृह जिले बक्‍सर में भाजपा का जनाधार मजबूत है। इसलिए वे भाजपा के साथ जुड़ने के लिए अधिक इच्‍छुक रहे। भाजपा के कद्दावर नेता और बक्‍सर की लोकसभा सीट से लगातार चार बार जीतने वाले लालमुनी चौबे जब चुनाव हार गए तो अगली बार भाजपा ने इस सीट पर नया चेहरा तलाशना शुरू किया था। इसके पीछे एक वजह यह भी थी कि तब भाजपा का अटल काल समाप्‍त हो गया था। वाजपेयी के रहते लालमुनी का टिकट कटने की कोई उम्‍मीद भी नहीं करता था। बहरहाल इस वक्‍त में गुप्‍तेश्‍वर पांडेय के भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ने की पूरी चर्चा रही। वे भारतीय पुलिस सेवा की नौकरी से वीआरएस लेने के लिए भी तैयार हो गए, लेकिन भाजपा से टिकट अश्विनी चौबे को मिल गया। बाद में उनका नाम विधानसभा सीट के लिए भी चर्चा में आया।

विधान पार्षद चुने जाने की आस भी नहीं हो सकी पूरी

2020 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले गुप्‍तेश्‍वर पांडेय ने बिहार का डीजीपी रहते नौकरी से वीआरएस लेने का फैसला किया। इसके बाद वे चुनाव लड़ने की पूरी तैयारी में थे। समर्थकों ने बक्‍सर जिले की बक्‍सर सीट या भोजपुर जिले की शाहपुर सीट से उनके चुनाव लड़ने का इरादा जाहिर किया। लेकिन ऐसा हो नहीं सका। दरअसल ये दोनों ही सीटें भाजपा के कोटे की थीं और पार्टी इन्‍हें किसी हाल में छोड़ना नहीं चाहती थी, जबकि पांडेय ने नौकरी छोड़ने के बाद जदयू का दामन थामा था। विधानसभा चुनाव में नाउम्‍मीद होने के बाद उन्‍हें विधान पार्षद के तौर पर जगह मिलने की उम्‍मीद थी, लेकिन यह भी नहीं हो सका। खास बात यह कि इतना सब कुछ होने के बाद भी उन्‍होंने इस पर कभी साफ तौर पर नाराजगी तक जाहिर नहीं की।

अब कथा वाचक की भूमिका में दिख रहे सफल

राजनीति में फेल होने के बाद गुप्‍तेश्‍वर पांडेय अब कथा वाचक की नई भूमिका में आ गए हैं। वे अयोध्‍या के अलावा वृंदावन और मथुरा में अधिक वक्‍त गुजार रहे हैं। संस्‍कृत के अच्‍छे जानकार होने के साथ- साथ वे धर्म - अध्‍यात्‍म पर शुरू से ही अच्‍छी जानकारी रखते हैं। खास बात है कि यूपीएससी की परीक्षा भी उन्‍होंने संस्‍कृत भाषा से पास की थी। वे एक अच्‍छे वक्‍ता शुरू से हैं, इसलिए कथा वाचक के तौर पर उनका स्‍वरूप श्रोताओं को सहज ही बांध रहा है।

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