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डाक्टरों ने हर मजबूरी को छोड़कर ड्यूटी करना स्वीकार किया।
धरती पर डाक्टर को भी भगवान का दर्जा दिया गया है क्योंकि वह भी मरीजों को बिना भेदभाव के जीवनदान देता है। सालभर से ज्यादा के कोरोना काल में तमाम डाक्टरों ने अपने जीवन को खतरे में डालकर कोविड मरीजों का इलाज किया।
अलीगढ़, जीवन व मृत्यु इंसान नहीं भगवान के हाथ में है, लेकिन धरती पर डाक्टर को भी भगवान का दर्जा दिया गया है, क्योंकि वह भी मरीजों को बिना भेदभाव के जीवनदान देता है। सालभर से ज्यादा के कोरोना काल में तमाम डाक्टरों ने अपने जीवन को खतरे में डालकर कोविड मरीजों का इलाज किया। खुद भी संक्रमित हो गए। वहीं, कुछ निजी डाक्टरों ने कोविड ड्यूटी के बगैर भी मरीजों के प्रति अपना कर्त्तव्य निभाया। तमाम खतरा उठाते हुए गरीब मरीजों की जान बचाई। जो लोग पैसा नहीं दे सकते थे, उनका मुफ्त इलाज तक किया। आइए, ऐसे ही डाक्टरों के बारे में जानें...
वयोवृद्ध सास-ससुर को छोड़कर ड्यूटी
महिला चिकित्साधिकारी ममता सिंह करीब चार साल से दीनदयाल अस्पताल में हैं। पिछले साल कोरोना फैलते ही कोविड वार्ड में ड्यूटी लग गई। तीन बच्चों व वयोवृद्ध सास-ससुर की देखभाल का जिम्मा था, मगर उन्होंने हर मजबूरी को छोड़कर ड्यूटी करना स्वीकार किया। ज्यादातार ईवनिंग व नाइट ड्यूटी थी, संक्रमण का खतरा भी। लिहाजा, ड्यूटी करके स्पताल में प्रवास बनाया। दूसरी लहर में ड्यूटी करना सबसे चुनौतीपूर्ण रहा। वार्डों में डरावना माहौल था। रोजाना ही हर वार्ड में मरीजों की मौत हो रही थी, ऐसे में पास के बेड पर भर्ती मरीज डर जाते थे, जिन्हें डाक्टर की बजाय मां-बहन, बेटी बनकर हौसला देना पड़ता था। अभी संक्रमण खत्म हुआ है, लेकिन नए वैरिएंट के मद्देनजर फिर से कोविड ड्यूटी के लिए तैयार रहने के निर्देश दिए गए हैं। कोई भी हालात हों, मरीजों की जिंदगी बचाने के लिए हम तैयार हैं।
डा. नागेश ने बचाई 30 गरीब बच्चों की जान
कोरोना संक्रमण काल में दूसरी बीमारियों से ग्रस्त मरीजों की जान पर भी बन गई। सरकारी अस्पतालों में ओपीडी व आपरेशन बंद हो चुके थे। ऐसे में गंभीर मरीजों की जान सांसत में आ गई, खासतौर से गरीब तबके के मरीजों की। ऐसे हालात में शहर के वरिष्ठ न्यूरो सर्जन गरीब बच्चों के लिए जीवनदाता बनकर सामने आए। उन्होंने ऐसे करीब 30 बच्चों का मुफ्त आपरेशन किया, जो दिमाग में पानी, जन्मजात रसौली, क्रानिक सबड्यूरल हेमाटोमा समेत न्यूरो व स्पाइन से जुड़ी बीमारियों से जूझ रहे थे। तुरंत आपरेशन की जरूरत थी। सभी आपरेशन अभिश्री हास्पिटल में किए गए। संचालक डा. ऋषभ गौतम व उनकी पत्नी डा आभा गौतम ने सहयोग किया। डा. नागेश की पहल पर कई डाक्टर, समाजसेवी व अन्य लोगों ने सीटी स्कैन, जांच व दवा उपलब्ध कराने में मदद की। डा. नागेश बेहद सरलता से कहते हैं कि बच्चे भगवान का रूप होते हैं, हमें भी उनका ध्यान रखना ही होगा। बच्चों के ठीक होने के बाद उनके माता-पिता की आंखों में कृतज्ञता के भाव ही हमारे लिए पुरस्कार है।
कोविड वार्ड में जाने से रोका, ले ली भोजन की जिम्मेदारी
कोरोना काल में डाक्टरों ने अलग-अलग रूप में मरीजों का ख्याल रखा। इसमें डा. एसके वार्ष्णेय ने बेहद चुनौतियों के बीच दीनदयाल अस्पताल में कोविड मरीजों के बेहतर स्वास्थ्य व देखभाल के लिए स्वच्छता, भोजन, बायो मेडिकल वेस्ट, डाक्टर व अन्य स्टाफ की ट्रेनिंग समेत कई अहम जिम्मेदारियां संभाली। दरअसल, एडी हेल्थ व सीएमओ समेत कई अहम पदों पर रहे डा. एसके वार्ष्णेय ने बताया कि उम्र अधिक होने के कारण कोविड वार्ड में ड्यूटी नहीं कर सकता था, इसलिए मरीजों से जुड़ी व्यवस्था ले लीं। बुधवार को इनरव्हील क्लब मैत्री की अध्यक्ष शिल्पी वार्ष्णेय ने तुलसी के पौधे व सर्टिफिकेट देकर सम्मानित किया। अन्य पदाधिकारी व सदस्य मौजूद रहीं।
कोई सैंपल लेने को तैयार नहीं था...
वर्तमान में भले ही चार से पांच हजार सैंपल रोजाना हो रहे हैं, लेकिन शुरुआत में वायरस के डर से कोई डाक्टर व कर्मचारी सैंपल लेने को तैयार नहीं हुआ था। तब सीएमओ अधिष्ठान में कार्यरत डा. शुएब अंसारी आगे आए। बिना पैथोलाडिस्ट या एलटी के ही घर-घर जाकर संदिग्ध मरीजों के सैंपल लेने शुरू किए। उनके साहस और कर्त्तव्य निष्ठा को जिला प्रशासन और अन्य सामाजिक संस्थाओं ने भी सराहा। डा. शुएब को कोविड कंट्रोल रूम में प्रभारी अधिकारी के नेतृत्व में कांट्रेक्ट ट्रेसिंग, मरीजों को इलाज के लिए अस्पताल या घर पर आइसोलेट कराने की जिम्मेदारी विशेष रूप से दी गई।