हैट्रिक लगाने का था मौका, लेकिन पहले ही छोड़ दिया मैदान 

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RGA न्यूज़

बसपा के पास इस बार जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव में हैट्रिक लगाने का मौका था।

बसपा के पास इस बार जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव में हैट्रिक लगाने का मौका था। पिछले दाे चुनावों से लगातार अध्यक्ष पद पर बसपा का ही प्रत्याशी काबिज होता आ रहा था लेकिन इस बार चुनाव लड़ने से पहले ही बसपा ने मैदान छोड़ दिय

अलीगढ़, बसपा के पास इस बार जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव में हैट्रिक लगाने का मौका था। पिछले दाे चुनावों से लगातार अध्यक्ष पद पर बसपा का ही प्रत्याशी काबिज होता आ रहा था, लेकिन इस बार चुनाव लड़ने से पहले ही बसपा ने मैदान छोड़ दिया। अब सपा व भाजपा में सीधा मुकाबला है। अध्यक्ष किसका होगा, यह कहना अभी मुश्किल है, लेकिन इतना जरूर है कि दोनों ही दल जीत के लिए पूरी ताकत झोंके हुए हैं। अगर भाजपा का अध्यक्ष बनती हैं तो यह संगठन के लिए दूसरा मौका होगा। वहीं, अगर सपा की अर्चन यादव जीतती हैं तो यह सपा के लिए पहला मौका है। यह पार्टी अब तक जिले में जीत का खाता नहीं खोल सकी है।

1995 में पहली बार जिला पंचायत अध्‍यक्ष के हुए थे चुनाव

पंचायती राज व्यवस्था लागू होने के बाद 1995 में पहली बार जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुए थे। इसमें भाजपा की उमेश कुमारी ने बंपर वोटों से जीत दर्ज की थीं। यह अलीगढ़ की पहली जिला पंचायत अध्यक्ष थीं। इसके बाद 2000 में दूसरी बार चुनाव हुए थे। इसमें राष्ट्रीय क्रांति पार्टी से तेजवीर सिंह गुड्डे अध्यक्ष बने थे। 2006 में रालोद से राखी कठेरिया अध्यक्ष चुनी गई थीं। दूसरी बार जिले में कोई महिला प्रत्याशी इस पद पर काबिज हुई थीं। इसके बाद 2010 में बसपा प्रत्याशी सुधीर चौधरी ने जीत हासिल की। 2015 के अंतिम चुनावों में बसपा से चुनाव लड़ने वाले उपेंद्र सिंह नीटू ने धमाकेदार जीत दर्ज की थी। ऐसे में इस पद पर अब तक बसपा ही सबसे मजबूत पार्टी रही है। सत्ता के साथ ही विपक्ष में भी इस पार्टी ने अपना अध्यक्ष बनाया है। हालांकि, इस बार यह दल चुनाव लड़ने से ही पहले ही मैदान छोड़ गया है। अलीगढ़ समेत पूरे प्रदेश में कहीं भी बसपा चुनाव नहीं लड़ रही हैं। अब भाजपा व सपा के दावेदार मैदान में हैं। दोंनाे दल अपने-अपने प्रत्याशियों को जिताने के लिए पूरी ताकत झोंके हुए हैं।

इस तरह बने हैं अब तक अध्यक्ष

वर्ष,  अध्यक्ष

1995,  उमेश कुमारी

2000,  तेजवीर सिंह गुड्डू

2006,  रामसखी कठेरिया

2010,  सुधीर चौधरी

2015,  उपेंद्र सिहं नीटू

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